भाई दूज या यम द्वितीया त्यौहार की कथा
सूर्य देव की पत्नी का नाम संज्ञा हैं। उससे उन्हें यमराज रूप में सबसे बड़े पुत्र व यमुना रूप में सबसे बड़ी पुत्री प्राप्त हुई। यमराज मृत्यु के देवता बने जबकि यमुना धरती पर एक नदी के रूप में रहने लगी। दोनों भाई-बहन में बहुत लगाव था लेकिन यमराज अपने कार्यो में इतना व्यस्त रहते थे कि उन्हें अपनी बहन से मिलने का अवसर ही नही मिल पाता था।
एक दिन अपनी बहन के बार-बार आग्रह करने पर यमराज अपने कार्य में से समय निकाल कर यमुना के घर चले गए। अपने भाई यमराज को आया देखकर यमुना माता बहुत प्रसन्न हुई और उसने उनकी बहुत आवाभगत की। माता यमुना ने यमराज के माथे पर रोली चंदन से तिलक किया तथा उनके सुखद भविष्य की कामना की।
इसके बाद माता यमुना ने उन्हें कई प्रकार के पकवान बनाकर खिलाए। अपनी बहन के द्वारा इतनी आवाभगत होने पर यमराज अत्यधिक प्रसन्न हो गए तथा यमुना से एक वर मांगने को कहा। इस पर यमुना ने यह वर मांग लिया कि आज के दिन वे हमेशा अपनी बहन के घर आयेंगे व उनका आतिथ्य स्वीकार करेंगे। यमराज ने अपनी बहन को यह वर दे दिया और वहां से चले गए।
भाई दूज क्यों मनाया जाता हैं?
अब बात आती हैं कि हम आज तक इस पर्व को क्यों मनाते हैं व यह पर्व रक्षाबंधन की तरह भाई-बहन के बीच इतना लोकप्रिय क्यों है? दरअसल यमराज ने अपनी बहन यमुना को वर देने के साथ-साथ यह भी कहा था कि पृथ्वी पर जो भाई अपनी व्यस्तता से समय निकाल कर आज के दिन अपनी बहन के घर जाएगा तो उसे अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलेगी।
इसी के साथ उन्होंने यह भी वरदान दिया कि यदि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में डुबकी लगाएंगे तो वे यमराज के प्रकोप से बच पाएंगे। तब से इस पर्व की महत्ता बहुत बढ़ गयी व इसे सभी भाई-बहन के बीच मनाया जाने लगा।
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भाई दूज की पूजा विधि
इस दिन सभी भाई अपनी बहन के घर जाते है। वैसे तो यह त्यौहार विवाहिता बहनों का अपने भाई के साथ मनाया जाता है लेकिन अविवाहित बहने भी इसे मना सकती है।
इसलिये यदि आपकी बहन का विवाह हो चुका हैं तो इस दिन आप अपनी बहन के घर जाए। बहने अपने भाई के स्वागत के लिए पूजा की थाली तैयार करे व उसमे सभी आवश्यक वस्तुएं रखे। जब भाई आपके घर आए तब उनका रोली-चंदन से तिलक करे और उनकी लंबी आयु व सुखद स्वास्थ्य की कामना करे। भाई को कुछ मीठा खिलाए व उनका आशीर्वाद प्राप्त करे।
बदले में भाई भी अपनी बहन की रक्षा का वचन दे तथा जीवन में उसे कोई भी कष्ट आने पर उसकी सहायता करने को तैयार रहे। अपनी बहन को आशीर्वाद देकर उसे शगुन रूप में कुछ पैसे या उपहार भी अवश्य दे। इसके बाद दोनों भाई-बहन मिलकर स्वादिष्ट पकवानों का आनंद ले।
यही बात माँ को आकर बताई तो वह बावड़ी सी हो कर भाई के पीछे भागी। रास्ते भर लोगों से पूछती की किसी ने मेरा गैल बाटोई देखा, किसी ने मेरा बावड़ा सा भाई देखा। तब एक ने बताया की कोई लेटा तो है पेड़ के नीचे, देख ले वही तो नहीं। भागी भागी पेड़ के नीचे पहुची। अपने भाई को नींद से उठाया। भैया भैया कहीं तूने मेरे लड्डू तो नही खाए!!
भाई बोला- ये ले तेरे लड्डू, नहीं खाए मैने। ले दे के लड्डू ही तो दिए थे, उसके भी पीछे पीछे आ गयी।
बहिन बोली- नहीं भाई, तू झूठ बोल रहा है, ज़रूर तूने खाया है| अब तो मैं तेरे साथ चलूंगी।
भाई बोला- तू न मान रही है तो चल फिर।
चलते चलते बहिन को प्यास लगती है, वह भाई को कहती है की मुझे पानी पीना है।
भाई बोला- अब मैं यहाँ तेरे लिए पानी कहाँ से लाउ, देख ! दूर कहीं चील उड़ रहीं हैं,चली जा वहाँ शायद तुझे पानी मिल जाए।
तब बहिन वहाँ गयी, और पानी पी कर जब लौट रही थी तो रास्ते में देखती है कि एक जगह ज़मीन में 6 शिलाए गढ़ी हैं, और एक बिना गढ़े रखी हुई थी। उसने एक बुढ़िया से पूछा कि ये शिलाएँ कैसी हैं।