महाभारत में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को बहुत ही चतुर और सभी कलाओं का जानकार बताया गया है। श्रीकृष्ण ने कई बार चतुराई का उपयोग करते हुए ऐसे काम किए, जिन्हें छल माना जाता है। यहां जानिए 5 ऐसे प्रसंग जब श्रीकृष्ण ने अपनी इस चतुराई का प्रयोग महाभारत युद्ध में पांडवों को जिताने में किया-
1. अर्जुन को ऐसे बचाया कर्ण के दिव्यास्त्र से
महाभारत युद्ध से पहले देवराज इंद्र को यह डर था कि उनका पुत्र अर्जुन कर्ण से जीत नहीं पाएगा, जब तक कि कर्ण के पास कुंडल और कवच हैं। इसीलिए इंद्र ने ब्राह्मण का वेश धारण करके कर्ण से उसके कुंडल और कवच दान में मांग लिए। कर्ण के इस दानी स्वभाव से इंद्र प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे एक दिव्यास्त्र दिया था। इंद्र ने कर्ण से कहा था कि ये दिव्यास्त्र सिर्फ एक बार चल सकता है और जिस पर भी इसका उपयोग किया जाएगा, वह इंसान हो या देवता बच नहीं सकेगा। कर्ण ने ये दिव्यास्त्र अर्जुन के लिए संभाल कर रख लिया था। कर्ण चाहता था कि इस दिव्यास्त्र से ही अर्जुन को युद्ध में पराजित करेगा। श्रीकृष्ण ये बात जानते थे कि कर्ण के पास जब तक ये दिव्यास्त्र है पांडव कौरवों को हरा नहीं सकते हैं और इस दिव्यास्त्र के रहते अर्जुन भी कर्ण का सामना नहीं कर पाएगा। इसीलिए श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध में भीम के विशालकाय पुत्र घटोत्कच को ले आए। घटोत्कच के युद्ध में आते ही कौरव सेना में हाहाकार मच गया। कोई भी यौद्धा घटोत्कच का सामना नहीं कर पा रहा था। तब दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने इंद्र के दिव्यास्त्र का उपयोग किया और घटोत्कच को मार दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कर्ण के दिव्यास्त्र का उपयोग करवा दिया और अर्जुन को बचा लिया।
2. श्रीकृष्ण की चतुराई से दुर्योधन की जांघ नहीं बन पाई लोहे की
महाभारत युद्ध के समय गांधारी ने अपने पुत्र दुर्योधन को पूरी तरह नग्न अवस्था में बुलवाया था। माता की आज्ञा का पालन करने के लिए दुर्योधन भी नग्न अवस्था में ही जा रहा था, तब श्रीकृष्ण दुर्योधन को नग्न देखकर हंसने लगे। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि इस अवस्था में माता के सामने जाओगे तो तुम्हें शर्म नहीं आएगी। ये बात सुनकर दुर्योधन ने अपने पेट के नीचे जांघ वाले हिस्से पर केले का पत्ता लपेट लिया और इसी अवस्था में गांधारी के सामने पहुंच गया। गांधारी ने अपनी आंखों पर बंधी पट्टी खोलकर दुर्योधन के शरीर पर दिव्य दृष्टि डाली। इस दिव्य दृष्टि के प्रभाव से दुर्योधन की जांघ के अलावा पूरा शरीर लोहे के समान हो गया। जांघ लोहे की तरह इसलिए नहीं हुई, क्योंकि दुर्योधन ने जांघ पर केले का पत्ता लपेट लिया था।
श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि गांधारी ने नग्न दुर्योधन पर दिव्य दृष्टि डाल दी तो उसका पूरा शरीर लोहे के समान हो जाएगा। इसके बाद कोई भी दुर्योधन को पराजित नहीं कर पाएगा। श्रीकृष्ण ने चतुराई से दुर्योधन की जांघ को केले के पत्ते से ढकवा दिया था। इसी कारण दुर्योधन की जांघ लोहे के समान नहीं हो पाई और शेष पूरा शरीर लोहे का हो गया था।
3. दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करने के लिए श्रीकृष्ण ने उकसाया भीम को
युद्ध में भीम और दुर्योधन का आमना-सामना हुआ। तब भीम दुर्योधन को किसी भी प्रकार पराजित नहीं कर पा रहा था, क्योंकि दुर्योधन का शरीर लोहे की तरह बन चुका था और भीम की गदा के प्रहारों का कोई असर उस पर नहीं हो रहा था। यह देखकर श्रीकृष्ण ने दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करने के लिए भीम को इशारों में उकसाया। इसके बाद भीम ने दुर्योधन की जांघ पर प्रहार किया, जिससे दुर्योधन घायल हो गया। सिर्फ दुर्योधन की जांघ ही लोहे की तरह नहीं बन पाई थी। गदा युद्ध का एक नियम यह भी था कि योद्धा एक-दूसरे पर सिर्फ कमर के ऊपर ही प्रहार कर सकते थे, लेकिन श्रीकृष्ण के उकसाने पर भीम ने दुर्योधन की कमर के नीचे जांघ पर गदा से प्रहार किया था। जिससे बलराम श्रीकृष्ण पर क्रोधित भी हुए थे।
4. जयद्रथ को इस चतुराई से लेकर आए अर्जुन के सामने
महाभारत युद्ध में जयद्रथ के कारण अकेला अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया था और दुर्योधन आदि योद्धाओं ने एक साथ मिलकर उसे मार दिया था। जब ये बात अर्जुन को पता चली तो उसने प्रतिज्ञा कर ली थी कि अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध कर दूंगा, यदि ऐसा नहीं हुआ तो स्वयं अग्नि समाधि ले लूंगा। इस प्रतिज्ञा के बाद अगले दिन पूरी कौरव सेना जयद्रथ की रक्षा के लिए तैनात कर दी गई। सभी जानते थे कि किसी भी प्रकार जयद्रथ को सूर्यास्त तक बचा लिया तो अर्जुन खुद ही अपने प्राणों का अंत कर लेगा। अर्जुन के बिना कौरव आसानी से पांडवों को हरा सकते थे। जब काफी समय तक अर्जुन जयद्रथ तक नहीं पहुंच पाया तो श्रीकृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को कुछ देर के लिए छिपा लिया, जिससे ऐसा लगने लगा कि सूर्यास्त हो गया। सूर्यास्त समझकर जयद्रथ खुद ही अर्जुन के सामने आ गया और हंसने लगा। ठीक उसी समय सूर्य पुन: निकल आया और अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया।
5. श्रीकृष्ण की चतुराई से अर्जुन ने ऐसे हराया भीष्म को
महाभारत युद्ध की शुरुआत में ही कौरव सेना के सेनापति पितामह भीष्म ने पांडवों की सेना में तबाही मचा दी थी। उस समय पांडवों के लिए ये जरूरी हो गया कि किसी भी तरह पितामह भीष्म को पराजित किया जाए। भीष्म को पराजित करना बहुत मुश्किल था, इसीलिए श्रीकृष्ण युद्ध में शिखण्डी को लेकर आए। शिखण्डी पूर्व जन्म में अंबा थी जो भीष्म से बदला लेना चाहती थी। भीष्म ये बात जानते थे कि शिखण्डी स्त्री से पुरुष बना है, इसीलिए भीष्म उसे स्त्री ही मानते थे। युद्ध में श्रीकृष्ण ने शिखण्डी को अर्जुन की ढाल बनाया। शिखण्डी को सामने देखकर भीष्म ने शस्त्र रख दिए, क्योंकि वे किसी भी स्त्री के सामने शस्त्र नहीं उठा सकते थे। इसका फायदा उठाकर अर्जुन ने शिखण्डी के पीछे से भीष्म पर बाणों की बारिश कर दी और भीष्म बाणों की शय्या पर पहुंच गए।