भारत के विभिन्न राज्यों में दशहरा और विजयादशम कैसे मनाया जाता है

विजयादशमी का पर्व हमारे लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आता है। इसका धार्मिक महत्त्व तो है ही, साथ ही इस दिन हमारा मनोरंजन भी खूब होता है। मेला देखने का आनंद मिलता है। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। रावण तेज आवाज के साथ धूं-धूं कर जलता है, जैसे वह अट्टहास कर रहा हो। यह भी कहा जाता है कि रावण जलने के साथ ही असत्य पर सत्य की विजय होती है। दस पाप यानी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी की प्रवत्ति का नाश हो जाता है। 

विजयादशमी को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। कहीं इसे दशहरा कहते हैं तो कहीं विजयादशमी। इसी पर्व को बिजोया, आयुध पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। कहा जाता है कि भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसे बहुत खुशी होती है। इस खुशी में वह जश्न मनाता है। 

धार्मिक मान्यता 

यह भी कहा जाता है कि इस पर्व को भगवती के विजया नाम पर भी विजयादशमी कहते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास भोगकर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुंचे थे, इसलिए भी इस पर्व को विजयादशमी कहा जाता है। अयोध्या में इसका विशेष उत्सव होता है। वहां दुर्गापूजा के बजाय रामलीला का विशेष आयोजन होता है। ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं। 

ऐसा माना गया है कि शत्रु पर विजय पाने के लिए इसी समय प्रस्थान करना चाहिए। इस दिन श्रवण नक्षत्र का योग और भी अधिक शुभ माना गया है। महाभारत में दुर्योधन ने पांडवों को जुएं में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुन: बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के यहां नौकरी कर ली थी। 

जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र धृष्टद्युम्न ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने हथियार उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। विजयादशमी के दिन भगवान रामचंद्रजी के लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान करते समय शमी वृक्ष ने भगवान की विजय का उद्घोष किया था। विजयकाल में शमी पूजन इसीलिए होता है। 

विभिन्न प्रांतों में दशहरे का जश्न 

दशहरा पर्व पूरे देश में मनाया जाता है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि मनाने का तरीका सब जगह अलग है। हर इलाके के लोग अपनी संस्कृति एवं परंपरा के अनुरूप इस पर्व को मनाते हैं। लेकिन इस पर्व के केंद्र में खुशहाली ही होती है। 

हिमाचल का दशहरा 

हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा प्रसिद्ध है। यहां दस दिन अथवा एक सप्ताह पूर्व इस पर्व की तैयारी आरंभ हो जाती है। महिला व पुरुष तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बांसुरी आदि लेकर बाहर निकलते हैं। पहाड़ी इलाके के लोग अपने ग्रामीण देवता का धूमधाम से जुलूस निकाल कर पूजन करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है। साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं। इस जुलूस में प्रशिक्षित नर्तक नटी नृत्य करते हैं। इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं। दशमी के दिन इस उत्सव की शोभा निराली होती है। 

पंजाब का दशहरा 

पंजाब में दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहां आगंतुकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं व मैदानों में मेले लगते हैं। 

उत्तर प्रदेश का दशहरा 

उत्तर प्रदेश में दशहरा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। अयोध्या में पूरे माहभर का विशेष उत्सव होता है। इसी तरह बनारस के पास स्थित रामनगर में रामलीला होती है। यहां की रामलीला देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है। यही वजह है कि बनारस पूरे नौ दिन तक विदेशी पर्यटकों से भरा रहता है। उत्तर प्रदेश के हर गली एवं गांव में नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना की जाती है। मंदिरों के साथ ही कुछ लोग अपने घरों में भी आकर्षक पंडाल बनाते हैं, जिसमें दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिकेय की मूर्ति स्थापित की जाती है। नौ दिन तक पूजा अर्चना के बाद मूर्ति को नदियों में विसर्जित किया जाता है। दसवें दिन दशहरा मेला लगता है। इस दिन रावण का पुतला दहन किया जाता है। 

यही वजह है कि बनारस पूरे नौ दिन तक विदेशी पर्यटकों से भरा रहता है। उत्तर प्रदेश के हर गली एवं गांव में नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना की जाती है। मंदिरों के साथ ही कुछ लोग अपने घरों में भी आकर्षक पंडाल बनाते हैं, जिसमें दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिकेय की मूर्ति स्थापित की जाती है। नौ दिन तक पूजा अर्चना के बाद मूर्ति को नदियों में विसर्जित किया जाता है। दसवें दिन दशहरा मेला लगता है। इस दिन रावण का पुतला दहन किया जाता है। 

बिहार एवं झारखंड का दशहरा 

बिहार एवं झारखंड में भी उत्तर प्रदेश की तरह ही दशहरा मनाया जाता है। यहां भी नौ दिन तक देवी उपासना होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां रावण के पुतला दहन का चलन कम है। 

छत्तीसगढ़ का दशहरा 

छत्तीसगढ़ में दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है। राज्य के हर गांव में दशहरा को लेकर नवरात्र के पहले दिन से ही तैयारी शुरू हो जाती है, लेकिन बस्तर का दशहरा प्रसिद्ध है। यहां दशहरे को राम की रावण पर विजय पाने के रूप में नहीं मनाया जाता है। बल्कि यहां के लोग इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी है, जो दुर्गा का ही रूप है। 

यहां यह पर्व ढाई महीने तक चलता है। यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस से आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है। प्रथम दिन देवी से समारोहारंभ की अनुमति ली जाती है। देवी एक कांटों की सेज पर विराजमान होती हैं, जिसे काछिन गादि कहते हैं। यह समारोह लगभग 15वीं शताब्दी से शुरू हुआ था। इसके बाद जोगी-बिठाई होती है, इसके बाद भीतर रैनी(विजयादशमी) और बाहर रैनी (रथ यात्रा) और अंत में मुरिया दरबार होता है। इसका समापन आश्विन शुक्ल त्रयोदशी को ओहाड़ी पर्व से होता है। 

बंगाल का दुर्गा पूजा पर्व 

पश्चिम बंगाल में दशहरा पर्व को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूरे पश्चिम बंगाल में पांच दिनों तक चलता है। दुर्गा की भव्य मूर्तियां बनाई जाती हैं। पंडाल में सुबह से शाम तक पूजा अर्चना चलती है। सुबह एवं शाम की आरती का विशेष महत्त्व होता है। यहां षष्ठी के दिन दुर्गा देवी का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण-प्रतिष्ठा आदि का आयोजन किया जाता है। उसके बाद सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं। दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। 

प्रसाद वितरण के बाद पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं और देवी को विदाई देती हैं। इसके साथ ही वे आपस में भी सिंदूर लगाती हैं, व सिंदूर से खेलते हैं। इस दिन यहां नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके बाद शोभायात्रा के रूप में देवी की प्रतिमा विसर्जित की जाती है। 

तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश का दशहरा 

इन दोनों राज्यों में दशहरा पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन लक्ष्मी की पूजा होती है। इसके बाद सरस्वती और अंत में तीन दिन शक्ति की देवी दुर्गा की विशेष पूजा होती है। इस दौरान आकर्षक पंडाल बनाए जाते हैं। लोग एक दूसरे को मिठाइयां व कपड़े देते हैं। यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने के लिए शुभ समय होता 

कर्नाटक का दशहरा 

कर्नाटक में मैसूर का दशहरा महत्त्वपूर्ण है। मैसूर में दशहरे के समय पूरे शहर की गलियों को रोशनी से सज्जित किया जाता है और हाथियों का श्रृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुल्हन की तरह सजाया जाता है। इसके साथ शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभा यात्रा का आनंद लेते हैं। 

राजस्थान का दशहरा 

राजस्थान में पहले दुर्गा पूजा नहीं होती थी, लेकिन अब कुछ बंगाली परिवारों की ओर से दुर्गा पूजा भी शुरू की गई है। नौ दिन तक लोगों के घरों में रामायण का पाठ होता है। प्रथम व नवमी के दिन बच्चियों को देवी का अवतार मानते हुए उन्हें भोजन कराने के साथ ही उपहार भी दिया जाता है। दशहरे के दिन विभिन्न स्थानों पर मेला भरता है। इस दौरान रावण के पुतले का दहन होता है। कुछ स्थानों पर भारी-भरकम रावण का दहन होता है, तो कुछ जगह छोटे-छोटे रावण बनाकर जलाए जाते हैं। जोधपुर के कुछ लोग रावण पुतला दहन नहीं करते। उनका मानना है कि रावण यहां का जंवाई था, क्योंकि रावण की पत्नी मंदोदरी को मंडौर की राजकुमारी बताया जाता है। 

गुजरात का दशहरा 

गुजरात में दशहरा पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां भी नौ दिन तक पूजन चलता है। यहां के डांडिया नृत्य की विशेष मान्यता है। देवी के प्रतीक स्वरूप मिट्टी के रंगीन घड़े सिर पर रखकर कुंवारी लड़कियां नृत्य करती हैं। गरबा नृत्य इस पर्व की शान है। पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम-घूम कर नृत्य करते हैं। इस अवसर पर भक्ति , फिल्म तथा पारंपरिक लोक-संगीत सभी का समायोजन होता है। पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात होता रहता है। 

महाराष्ट्र में दशहरा 

महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है। दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नया घर खरीदने का शुभ मुहूर्त मानते हैं। 

कश्मीर में दशहरा 

कश्मीर के अल्पसंख्यक हिंदू नवरात्रि के पर्व को काफी श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सारे वयस्क सदस्य नौ दिनों तक सिर्फ पानी पीकर उपवास पर रहते हैं। बहुत ही पुरानी परंपरा के अनुसार नौ दिनों तक लोग माता खीर भवानी के दर्शन करने के लिए मंदिर जाते हैं। यह मंदिर एक झील के बीचोंबीच बना हुआ है। 

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