एक बार की बात है, राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। कोई भी धार्मिक कार्य करना मुश्किल हो गया था। राक्षसों ने पूरी पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था। राक्षस स्वर्ग पर भी अपना अधिकार जमाना चाहते थे। देवराज इंद्र उस समय स्वर्ग के राजा थे, वो स्वर्ग के सभी देवतागणों को लेकर भगवान विष्णु के पास गए। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। देवता बोले “हे प्रभु! आप हमें राक्षसों के प्रकोप से मुक्ति दीजिए।” भगवान विष्णु को पता था कि भगवान शिव ही इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।
विष्णु भगवान, महादेव के बड़े भक्त थे। विष्णु भगवान ने राक्षसों के विनाश के लिए शिव की तपस्या करने का निर्णय लिया। भगवान विष्णु हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों पर शिव जी की तपस्या करने लगे। विष्णु जी, भगवान शिव के एक हजार नामों का जाप करने लगे। हर एक नाम के साथ उन्होंने एक कमल का फूल चढ़ाने का संकल्प लिया। वहीं, भगवान शिव ने विष्णु जी की परीक्षा लेने की सोची।
विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने एक हजार कमल के फूलों में से एक फूल गायब कर दिया। विष्णु जी तपस्या में लीन थे, इसलिए उन्हें इस बात की खबर नहीं हुई। विष्णु जी, भगवान शिव का एक नाम पुकारते और कमल का एक फूल चढ़ाते जाते। जब अंतिम नाम की बारी आई तो विष्णु जी ने देखा कि कमल तो बचा ही नहीं। अगर कमल नहीं चढ़ाते, तो तपस्या और संकल्प भंग हो जाता, इसलिए भगवान विष्णु ने कमल की जगह अपनी एक आंख चढ़ा दी।
भगवान शिव, विष्णु जी के इस भक्ति भाव से बहुत प्रसन्न हो गए। वह श्रीहरि के सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। विष्णु जी ने राक्षसों का संहार करने के लिए अजय शस्त्र मांगा, तो उन्होंने विष्णु जी को सुदर्शन चक्र प्रदान किया, जिससे विष्णु जी ने राक्षसों को मार गिराया। इस तरह भगवान विष्णु ने अपनी भक्ति का परिचय देकर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया।