माना जाता है भगवान ब्रह्मा जी के कहने पर विश्वकर्मा ने ये दुनिया बनाई थी। हस्तिनापुर, द्वारका से लेकर, शिव जी का त्रिशूल भी विश्वकर्मा जी ने बनाया है। भगवान विश्वकर्मा इस ब्रह्मांड के रचयिता हैं, आज हम जो कुछ भी देखते हैं वो सब भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया है। माघ शुक्ल त्रयोदशी तिथि को विश्वकर्मा जी के पूजन का विशेष महत्व है। माना जाता है कि अगर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा- अर्चना की जाए तो जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं, व्यापार में आने वाली कठिनाई दूर होकर घर धन-संपदा से भरने लगता है। 

विश्वकर्मा जयंती के दिन स्नान करने के बाद एक चौकी पर नीले रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर विश्वकर्मा जी की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद अपने काम में इस्तेमाल होने वाले औजारों को उनके सामने रखें। फिर उन्हें फल, फूल, मिठाई और अक्षत अर्पित करें। उनकी आरती उतारे और मंत्रों का जाप करें।

पूजा विधि

सबसे पहले सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें।

– पूजा स्थान को साफ करके प्रतिमा रखें।

– हाथ में पुष्म, और अक्षत लेकर ध्यान लगाएं।

– भगवान को भोग लगाएं।

– विधिपूर्वक आरती उतारें।

– अपने औजारों और यंत्र की पूजा कर हवन करें।

भगवान विश्वकर्मा मंत्र

ॐ आधार शक्तपे नम:, ॐ कूमयि नम:, ॐ अनंतम नम:, ॐ पृथिव्यै नम: का जाप करें।

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