बच्चों, आपने कई बार देखा होगा कि गणेश जी की पूजा करते समय दूर्वा का इस्तेमाल किया जाता है। दूर्वा एक प्रकार की घास होती है, जिसे कलावे यानी लाल धागे के साथ बांधकर गणेश जी को चढ़ाया जाता है। दरअसल, गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने के पीछे एक रोचक कहानी है।
तो कहानी ऐसे है कि प्राचीन काल में हर जगह राक्षसों का आतंक फैला हुआ था। राक्षस देवताओं और ऋषि मुनियों को बहुत परेशान किया करते थे। ऐसा ही एक राक्षस था अनलासुर। अनलासुर ने हर जगह हाहाकार मचा रखा था। सभी देवतागण उससे बहुत डरते थे। जब अनलासुर के पाप बहुत बढ़ गए तब सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे। शिव जी ने कहा कि अनलासुर का विनाश सिर्फ गणेश जी कर सकते हैं।
शिव भगवान की यह बात सुनकर सभी देवतागण श्री गणेश जी के पास पहुंचे। गणेश जी के सामने सभी हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले हे प्रभु! हमें इस निर्दयी राक्षस से बचा लो। देवताओं की ऐसी दैन्य स्थिति को देखकर श्रीगणेश उनकी मदद के लिए तैयार हो गए।
इस घटना के बाद अनलासुर और श्री गणेश जी के बीच भयानक युद्ध होता है। क्रोध में आकर श्री गणेश अनलासुर को निगल जाते हैं। अनलासुर का अंत हो जाता है, लेकिन गणेश जी के पेट में बहुत जलन होने लगती है। इस जलन को ठीक करने के लिए सभी देवता और ऋषि-मुनि उपचार खोजने में लग जाते हैं, लेकिन किसी भी उपचार से श्री गणेश जी के पेट की जलन कम नहीं होती।
तब कश्यप ऋषि दूर्वा की 21 गांठ खाने के लिए गणेश जी को देते हैं। गणेश जी को दूर्वा के सेवन से आराम मिलता है और उनके पेट की जलन शांत हो जाती है। इससे खुश होकर गणेश जी कहते हैं कि आज के बाद जो कोई भी मुझे दूर्वा चढ़ाएगा, मैं उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करूंगा।