वेद और पुराणों की मानें तो हिंदू धर्म में हमारे 33 कोटि देवी-देवता हैं जिन्हें कुछ लोग 33 करोड़ मानते हैं तो कुछ कोटि को प्रकार. संख्या चाहे जो हो इनमें त्रिमूर्ति यानी 3 देवताओं को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. ब्रह्मा विष्णु और महेश यानी भगवान शिव ब्रह्मदेव को संसार का रचनाकार माना जाता है, विष्णु को पालनहार और महेश यानी शिव को संहारक. लेकिन हैरानी की बात है कि जिन्होंने सृष्टि की रचना की, उसका निर्माण किया उनकी संसार में पूजा नहीं की जाती

ब्रह्मा जी का मंदिर कहां है?

भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर ज़िले के पवित्र स्थल पुष्कर में ब्रह्मा जी का मंदिर बना हुआ है. इस मन्दिर में जगत पिता ब्रह्मा जी की मूर्ति को स्थापित किया गया है. इस मंदिर का निर्माण लगभग 14वी शताब्दी में हुआ था जो कि लगभग 700 वर्ष पुराना है.

यह मन्दिर संगमरमर के पत्थरों से बना है. ब्रह्मा जी के इस मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही यह यज्ञ किया था. यही कारण है कि हर साल अक्टूबर, नवंबर के बीच पड़ने वाले कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पुष्कर में मेला लगता है.

मंदिर से जुड़ी कथा

भगवान ब्रह्मा इस संसार के पालनहार है. फिर भी उनका सिर्फ एक ही मंदिर है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कहा जाता है कि ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री में ब्रह्मा जी को श्राप दिया था. सावित्री ने अपने पति ब्रह्मा को ऐसा श्राप क्यों दिया था. इसका उल्लेख पद्म पुराण में मिलता है.

कहा जाता है कि धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने बहुत उत्पात मचाया हुआ था. उसके बढ़ते अत्याचारों को देख ब्रह्मा जी ने उसका वध कर दिया था. परंतु जब उस राक्षक का बध किया था तब वध करते समय ब्रह्मा जी के हाथों से तीन जगहों पर कमाल का फूल गिरा.जिसके कारण इन तीन जगहों पर तीन झीलें बन गई.

वहीं कहा जाता हैं कि इसी घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ा गया. संसार की भलाई के लिए ब्रह्मा जी ने यज्ञ करने का फैसला किया. ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए पुष्कर आए परंतु उनकी पत्नी सावित्री जी ठीक समय पर नहीं पहुंच पाई. इस यज्ञ को पूरा करने के लिए उनकी पत्नी का होना जरुरी था. पर सावित्री जी के यज्ञ में नहीं पहुंच पाने के कारण ब्रह्मा जी ने गुर्जर समुदाय की एक कन्या गायत्री के साथ विवाह कर यज्ञ को शुरू किया.

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तभी उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंच गई और ब्रह्मा जी के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गई. उनहोंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद भी उनकी कभी भी पूजा नहीं होगी. सावित्री का यह रूप को देख सभी देवता डर गए और सावित्री जी से अपना श्राप वापस लेने की विनती करने लगे.

लेकिन उन्होंने किसी की न सुनी और जब उनका गुस्सा शांत हुआ तब सावित्री जी ने कहा कि इस धरती पर केवल सिर्फ पुष्कर में ही आपकी पूजा होगी. कहते हैं कि भगवान भगवान विष्णु जी ने भी ब्रह्मा जी की मदद की थी लेकिन देवी सरस्वती ने विष्णु जी को श्राप दे दिया कि उन्हें पत्नी से अलग होने का कष्ट सहना पड़ेगा. इसी कारण भगवान विष्णु ने राम में 14 साल के वनवास के दौरान उन्हें पत्नी सीता से अलग रहना पड़ा था. आशा करते है कि यह लेख ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर कहां है?

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