इस संसार में सब कुछ अंतवंत है। पाप और पुण्य दोनों इस संसार से संबंधित हैं, इसलिए पाप और पुण्य भी अंतवंत हैं। पुण्य सुख देकर और पाप दुख देकर अंत को प्राप्त होता है। लेकिन पाप और पुण्य में थोड़ा अंतर यह है कि पुण्य का फल यदि हम नहीं चाहते तो उस फल को अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसलिए जो भी हम सत्कर्म करते हैं, अंत में प्रभु को समर्पित कर देते हैं लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या भगवान स्वीकार करेंगे? निश्चित स्वीकार करेंगे क्योंकि भगवान ने स्वयं गीता में अर्जुन से कहा है, हे कुंतीपुत्र! तुम जो भी करते हो, जो भी खाते हो, पवित्र यज्ञाग्नि में जो आहुति डालते हो, जो भी दान देते हो, जो भी तपस्या करते हो, वह सब मुझे अर्पित करते हुए करो।
इसलिए जो भी कर्म करें, भगवान को समर्पित करने के भाव से करें। हम संकल्प भी करते हैं तो प्रारंभ में तीन बार विष्णु कहते हैं। इसका अर्थ है कि मैं जो भी कर्म करता हूं उसमें विष्णु यानी व्यापक चेतना है। उसमें समष्टि के कल्याण की बात है। इस प्रकार हम जो भी पुण्य कर्म करेंगे ईश्वर को साथ रखकर समष्टि के कल्याण की भावना से करेंगे और उसे ईश्वर को समर्पित भी कर देंगे ताकि उस पुण्य का भी अभिमान न हो।
पाप का फल कब मिलता है
पाप का फल कब मिलता है यह जानने के लिये कुछ लोग लालायित रहते है। आखिर क्यों लोग पाप को अपराध समझते है जब कि पाप भी पुण्य की तरह ही एक कर्म है लेकिन लोग पुण्य को ही महत्व देते है। उसका कारण यह है कि पाप छिपकर धोखा देकर किया जाता है दूसरे पाप में दूसरे को कष्ट होता है। पुण्य को लोग खुल कर करते है ओर खूब करते है क्योंकि इस से दूसरों को सुख मिलता है । कुछ लोगो को दूसरों को कष्ट देकर भी सुख मिलता है आखिर ऐसा क्यो। यह अपनी अपनी समझ पर निर्भर करता है क्यो की जिसको जो चाहिये उसका सुख उसी में है चाहे वो पाप करे या पुण्य।
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पाप का फल कब मिलता है
पाप का फल इंसान को तब मिलता है जब उसके सारे पुण्य कर्म नष्ट हो जाते है। यह आसान सा जवाब है परंतु बिल्कुल सही है ओर शास्त्र सम्बत है । हमारे ऋषियों ने इसके बारे में अपने शास्त्रों में खूब वर्णन किया है। लेकिन क्या आज के युग मे भी हम इसको सही मान सकते है। मुझे तो लगता है यह बिल्कुल सही है क्योंकि लोगो को कहते सुना होगा कि वह पापी है फिर भी भगवान उसका कुछ नही कर रहे है आखिर क्यों। जवाब यही है कि उसके पुण्य अभी वाकि है जब उसके पुण्य समाप्त होंगे तो उसको दंड अवस्य ऊपर वाला देगा। बस जरूरत है तो सब्र की। जिसको सहने के लिये हिम्मत चाहिये।