उत्तर भारत में यह पर्व नवरात्रि के नाम से जाना जाता है जिसमें 9 दिन तक मां शक्ति की आराधना कर दसवें दिन विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है जो रावण पर भगवान श्री राम बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। उत्तर भारत में जहां इस दौरान रामलीला का मंचन हो रहा होता है, वहीं पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में दृश्य परिवर्तन हो जाता है। यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई के रूप में ही मनाते हैं लेकिन यहां पर मुख्य रूप से मां दुर्गा से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो दो कथाएं प्रचलित हैं, जो इस प्रकार हैं
उत्तर भारत में प्रचलित कथा : जब राजा दशरथ ने भगवान श्री राम और माता सीता को वनवास का आदेश दिया, तब एक दिन वन में रहते हुए रावण ने माता सीता का हरण कर लिया। रावण को उसके अपराध का दंड देने के लिए और माता सीता को वापस लाने के लिए राम भगवान ने रावण पर आक्रमण किया। श्री राम और रावण में कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। श्री राम ने विजय प्राप्ति के लिए माता दुर्गा की आराधना की और दसवीं तिथि को रावण का वध किया। इसी उपलक्ष्य में विजयदशमी का उत्सव मनाया जाता है।
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पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में प्रचलित कथा : वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जो कथा प्रचलित है वह मां दुर्गा से जुड़ी है। एक बार महिषासुर ने तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन किया। ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर महिषासुर को वरदान मांगने के लिए कहा, तब महिषासुर ने अमर होने का वरदान मांगा। इस पर ब्रह्माजी ने जवाब दिया कि जो इस संसार में आया है उसकी मृत्यु भी अवश्य होगी, इसलिए चाहो तो कोई दूसरा वरदान मांग सकते हो। तब महिषासुर ने बहुत सोचा और कहा मुझे यह वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही हो। तब ब्रह्माजी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। महिषासुर सोचने लगा कि एक स्त्री भला मेरा क्या बिगाड़ सकती है, अब तो मैं अमर हो गया। उसने सारे देवताओं को अधिकारहीन और पराजित करके स्वर्ग से निकाल दिया। सभी देवता एकत्रित होकर भगवान विष्णु और भगवान शिव के पास गए। महिषासुर की ऐसी करतूत सुनकर उन दोनों ने बड़ा क्रोध प्रकट किया। तब उनके शरीर से एक तेज निकला। सभी देवताओं के भीतर से जो शक्तियां निकली, उसने एक स्त्री का रूप धारण कर लिया जिसे दुर्गा कहा गया। महिषासुर और माता दुर्गा में घोर संग्राम छिड़ गया। यह 10 दिनों तक चला और दशमी तिथि को माता दुर्गा में ने महिषासुर का वध कर दिया और महिषासुरमर्दिनि कहलाईं।
इस प्रकार मान्यता या कथा चाहे जो भी हो लेकिन यह पर्व हर रूप में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।