Durga Chalisa:दुर्गा चालीसा: शक्ति की स्तुति
Durga Chalisa:दुर्गा चालीसा हिंदू धर्म में माँ दुर्गा की स्तुति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह चालीसा माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों और उनकी शक्ति का वर्णन करती है। इसे भक्तों द्वारा माँ दुर्गा को प्रसन्न करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गाया जाता है।
Durga Chalisa:दुर्गा चालीसा का महत्व
- शक्ति का प्रतीक: दुर्गा चालीसा माँ दुर्गा को शक्ति और शौर्य की देवी के रूप में दर्शाती है।
- बुराई पर अच्छाई की जीत: यह चालीसा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- मनोबल बढ़ाना: दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मनोबल बढ़ता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- आशीर्वाद प्राप्ति: माँ दुर्गा के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्त इस चालीसा का पाठ करते हैं।
Durga Chalisa ka Arth दुर्गा चालीसा का अर्थ
दुर्गा चालीसा में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों, जैसे कि महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी का वर्णन किया गया है। इसमें माँ दुर्गा के शौर्य, दया और करुणा का भी वर्णन है। यह चालीसा भक्तों को माँ दुर्गा के प्रति समर्पण और भक्ति भावना जगाती है।
Durga Chalisa:दुर्गा चालीसा का पाठ कब करें?
- नवरात्रि: नवरात्रि के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।
- अन्य शुभ अवसर: शादी, जन्मदिन या किसी भी शुभ अवसर पर दुर्गा चालीसा का पाठ किया जा सकता है।
- संकट के समय: संकट के समय में भी दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।
दुर्गा चालीसा का पाठ कैसे करें?
- शांत स्थान: एक शांत और साफ-सुथरे स्थान पर बैठें।
- दीपक: एक दीपक जलाएं।
- माला: आप माला का भी प्रयोग कर सकते हैं।
- ध्यान: माँ दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति के सामने ध्यान लगाएं।
- पाठ: धीरे-धीरे और भावना के साथ दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa)
नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४
तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८
रूप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६
केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४
अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६
शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४०
देवीदास शरण निज जानी ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक ॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा ॥