जैन समुदाय द्वारा किया जाने वाला रोहिणी व्रत पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध व्रत है। इसे देश के कोने कोने में मनाया जाता है। भगवान वासुपूज्य जी को रोहिणी व्रत समर्पित होता है। इस शुभ अवसर पर रोहिणी देवी के साथ साथ भगवान वासुपूज्य जी की विधिवत पूजा की जाती है। यह व्रत अन्य व्रतों से थोड़ा भिन्न होता है।
इस व्रत को क्यों करना चाहिए
रोहिणी व्रत प्रत्येक माह आने वाला व्रत है और कई बार संयोग से एक माह में दो बार किया जाता है। यह व्रत लिंग विशिष्ट नहीं है, इसे कोई भी कर सकता है। महिलाओ द्वारा रोहिणी व्रत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को व्रत रखकर इसे त्योहार की भांति मनाया जाता है। प्राचीन काल से इसे त्योहार के रूप में जैन समुदाय द्वारा मनाया जाता आ रहा है।Rohini Vrat 2023 – इस व्रत के साथ कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। जिनमें से सबसे लोकप्रिय कथा के बारे में हम आपको आगे बताएंगे। इससे पहले यह जान लेते हैं कि रोहिणी व्रत वर्ष के किस समय किया जाता है।
सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा
जानिए 2023 में कब है रोहिणी व्रत
दिनांक | वार | पक्ष | तिथि |
4 जनवरी 2023 | बुधवार | शुक्ल पक्ष | त्रियोदशी |
31 जनवरी 2023 | मंगलवार | शुक्ल पक्ष | दशमी |
27 फरवरी 2023 | सोमवार | शुक्ल पक्ष | अष्टमी |
27 मार्च 2023 | सोमवार | शुक्ल पक्ष | षष्ठी |
23 अप्रैल 2023 | रविवार | शुक्ल पक्ष | तृतीया |
21 मई 2023 | रविवार | शुक्ल पक्ष | द्वितीय |
17 जून 2023 | शनिवार | शुक्ल पक्ष | चतुर्दशी |
14 जुलाई 2023 | शुक्रवार | शुक्ल पक्ष | द्वादशी |
10 अगस्त 2023 | गुरुवार | कृष्ण पक्ष | दशमी |
7 सितम्बर 2023 | गुरुवार | कृष्ण पक्ष | अष्टमी |
4 अक्टूबर 2023 | बुधवार | कृष्ण पक्ष | षष्ठी |
31 अक्टूबर 2023 | मंगलवार | कृष्ण पक्ष | तृतीया |
28 नवंबर 2023 | मंगलवार | कृष्ण पक्ष | प्रतिपदा |
25 दिसम्बर 2023 | सोमवार | कृष्ण पक्ष | चतुर्दशी |
रोहिणी व्रत कब होता है
धार्मिक मान्ताओं के अनुसार नक्षत्रों की कुल संख्या 27 होती है। इन 27 नक्षत्रों में एक रोहिणी नक्षत्र होता है, जिसका संबंध इस व्रत से है। जब महीने में सूर्योदय के पश्चात रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है, उस समय इस व्रत को किया जाता है। एक वर्ष में कम से कम छह से सात बार यह व्रत आता है, और कई बार यह नक्षत्र माह में दो बार आ जाता है।
रोहिणी व्रत के नियम
इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना बहुत आवश्यक होता है।
माना जाता है तीन, पांच और सात साल निश्चित रूप से इस व्रत का पालन करना चाहिए। इस व्रत की उचित अवधि पांच वर्ष की मानी जाती है। जिन अनुयायियों द्वारा पांच वर्ष की अवधि तक व्रत का पालन करना संभव नहीं हो पाता। इसके लिए पांच माह का समय भी उत्तम माना गया है।
रोहिणी व्रत को कितने समय तक करना इसका निर्णय स्वंय लिया जाता है। इस समय अवधि में व्रत करने का संकल्प लेने के पश्चात, इस व्रत का उद्यापन तभी किया जाता है, जब अवधि पूर्ण होे जाती है। इसलिए दृढ़ निश्चय के बाद ही संकल्प लेना चाहिए।
व्रत का उद्यापन हो जाने के बाद गरीबों को भोजन कराना चाहिए और दान करना चाहिए। इसी के साथ साथ पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ वासुपूज्य की पूजा करनी चाहिए।
भगवान वासुपूज्य जी के दर्शनों के साथ ही व्रत का उद्यापन उचित माना जाता है।
इस दिन भगवान वासुपूज्य की ताम्र, पंचरत्न या स्वर्ण की मूर्ति की स्थापना की जाती है और पूरा दिन भगवान की आराधना करके स्थापित मूर्ति का पूजन किया जाता है।
पूजा के पूर्ण हो जाने के बाद नैवेद्य, वस्त्र और पुष्प अर्पित करके फल और मिठाई का भोग लगाया जाता है।
इस व्रत को करते समय मन में ईर्ष्या और द्वेष जैसे भावों को नहीं लाना चाहिए।