भगवान शिव को कालों के काल महाकाल हैं। साक्षात् मृत्यु में भी उनका सामना करने का साहस नहीं है। वे मृत्युंजय हैं, अविनाशी हैं, आदि हैं, अनंत हैं। भगवान शिव इतने भोले हैं कि वे अपने भक्त की पुकार पर दौड़े चले आते हैं। उसे मनचाहा वरदान देते हैं और उसके मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। आज हम आपको लिंगपुराण की एक कथा के बारे में बताते हैं, जिसमें काल को भगवान शिव ने प्राण दान दिया और अपने भक्त के विश्वास को टूटने नहीं दिया।
भगवान शिव के परमभक्त श्वेतमुनि पर्वत पर एकांत में अपने आराध्य का ध्यान करते और उनकी पूजा करते थे। वे कहते थे कि मृत्यु उनका क्या कर सकती है? उन्होंने तो साक्षात् महाकाल की शरण ली हुई है। उनके आश्रम में शांति और आत्मविश्वास की पवित्रता झलकती थी। उनके तप के बल से आश्रम दिव्यमान था।
श्वेतमुनि अपने जीवन काल के अंतिम पड़ाव पर थे। वे मृत्यु से निडर होकर रुद्र अध्याय का पाठ कर रहे थे। उनके जीवन का अंतिम श्वास चल रहा था। अचानक वे चौंक पड़े, उनके समक्ष एक विकराल आकृति खड़ी थी। पूरा शरीर काला था और उसने काले वस्त्र धारण कर रखे थे। श्वेतमुनि ने अपने आश्रम के शिव लिंग को करुणामय होकर देखा और ओम नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण किया। उन्होंने शिव लिंग को स्पर्श किया और उस विकराल आकृति से पूछा कि तुमने इस पवित्र आश्रम को अपवित्र करने की हिम्मत कैसे की? इस आश्रम को तो भगवान शिव की कृपा से अभय का आशीष प्राप्त है। उन्होंने दोबारा शिव लिंग को स्पर्श किया।
विकराल आकृति वाले काल ने अपना परिचय देते हुए कहा कि अब आप पृथ्वी पर नहीं रह सकते हैं। आपको यमलोक चलना है। इस पर श्वेतमुनि ने शिवलिंग को अपने हाथों से कसकर पकड़ लिया और कहा कि तुमने शिव की भक्ति को चुनौती दी है, क्या तुम्हें नहीं पता है कि भगवान शिव तो स्वयं ही काल के भी काल महाकाल हैं। इस पर काल ने कहा कि शिवलिंग शक्तिविहीन है, निश्चेतन है, पत्थर में महादेव की कल्पना एक भूल है। काल ने श्वेतमुनि को पाश में बांध लिया।
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मुनि ने कहा कि ये तुम्हारी भूल है। महादेव तो कण कण में व्याप्त हैं। विश्वास के साथ उनका आवाहन करने पर वे अपने भक्त की रक्षा करने आते हैं। तभी भगवान शिव माता पार्वती के साथ वहां प्रकट हो गए। उन्होंने काल को चेताते हुए कहा कि ठहरो! श्वेतमुनि का बात सत्य है। उनका प्रकट होना विश्वास के ही अधीन है। भगवान शिव को देखकर काल प्राणहीन समान हो गया। वह शक्तिहीन हो गया। श्वेतमुनि भगवान शिव की स्तुति करने लगे। इस महादेव ने कहा कि आपकी लिंग उपासना धन्य है। विश्वास की विजय होती है। नंदी के निवेदन करने पर महाकाल शिव ने काल को प्राण दान दे दिया और वे वहां से अंतर्धान हो गए।