देशभर में कृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियां जोरो-शोरों से शुरू हो गई हैं। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस साल जनमाष्टमी तिथि की शुरुआत 6 सिंतबर को दोपहर 3 बजकर 37 मिनट से शुरू होगी और 7 सिंतबर को शाम 4 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी। लेकिन जन्माष्टमी को लेकर लोगों के बीच अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। चलिए जन्माष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त और जन्माष्टमी की कथा जानते हैं।
जन्माष्टमी की व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण ने माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया था। कृष्ण जी का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था। माता देवकी राजा कंस की बहन थी। कंस को सत्ता का लालच था। उसने अपने पिता राजा उग्रसेन की राजगद्दी छीनकर उन्हें जेल में बंद कर दिया था और स्वंय को मथुरा का राजा घोषित कर दिया था। राजा कंस अपनी बहद देवकी से बहुत प्रेम करते थे। उन्होंने अपनी बहन का विवाह वासुदेव से कराया था, लेकिन जब वह मां देवकी को विदा कर रहा था। तभी एक आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवा पुत्र कंस की मौत का कारण बनेगा। यह सुनकर कंस डर गया, उसने तुरंत अपनी बहन और उनके पति वासुदेव को जेल में बंद कर दिया। उनके आसपास सैनिकों की कड़ी पहरेदारी लगा दी। कंस अपनी मौत के डर से देवकी और वासुदेव की 7 संतानों को मार चुका था।
कृष्णजी का जन्म
इसके बाद भाद्रपद माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र अंधेरी रात में भगवान कृष्ण ने जानकी के आठवें संतान के रूप में जन्म लिया। श्री कृष्ण के जन्म लेते ही कोठरी प्रकाशमय हो गई। आकाशवाणी हुई कि विष्णुजी ने कृष्ण जी के अवतार में देवकी के कोख में जन्म लिया है उन्हें गोकुल में बाबा नंद के पास छोड़ आएं और उनके घर एक कन्या जन्मी है, उसे मथुरा ला कर कंस को सौंप दें।
कान्हा चले गोकुलधाम
आकाशवाणी सुनते हैं वासुदेव के हाथों की हथकड़ी खुल गई। सभी पहरेदार सोने लगे। कान्हा ने एक टोकरी में बाल गोपाल को रखकर सिर पर रख लिया और गोकुल की ओर चल पड़े। कान्हा को गोकुलधाम ले जाने में वासुदेव को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। यमुना नदी कृष्ण जी के चरणों को स्पर्श करने के लिए उफान पर आ गई, लेकिन चरण स्पर्श के बाद वह फिर से शांत पड़ गई। वह कान्हा को बाबा नंद के पास छोड़ आए और गोकुल से कन्या को लेकर वापस लौट आए। जेल अपने आप बंद हो गया और उनके हाथों में हथकड़ियां लग गई। कन्या की रोने की आवाज सुनते ही सभी पहरेदार उठ गए। कंस बंदीगृह आया। वह कन्या को देवकी और वासुदेव की आठवीं कन्या समझ उसे मारने चला। लेकिन वह आकाश में उड़ गई और फिर से आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाला अब इस दुनिया में पैदा हो चुका है।
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बाबा नंद और उनकी पत्नी मां यशोदा ने कृष्ण जी का पालन-पोषण किया। राजा कंस ने कृष्ण जी का पता लगाकर उन्हें मारने की खूब कोशिश की। लेकिन कंस की सारी कोशिशें विफल हुई और कृष्ण जी को कोई मार नहीं सका। अंत में श्री कृष्ण ने कंस का वध किया। राजा उग्रसेन को फिर मथुरा की राजगद्दी सौंप दी। इस तरह से जन्माष्टमी की व्रत कथी पूरी हुई।