सनातन शास्त्रों की मानें तो कालांतर में बदरीनाथ में देवों के देव महादेव का निवास स्थान था। जगत का पालनहार भगवान विष्णु को यह स्थान बहुत पसंद आया। इसके लिए भगवान विष्णु ने महादेव से निवास के लिए मांग लिया। उस समय महादेव ने विष्णु जी को निवास हेतु बदरीनाथ देकर कैलाश पर चले गए

बदरीनाथ मंदिर को बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। जो अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम मेें से एक धाम है। ऋषिकेश से यह 294 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। ये पंच बदरी में से एक बद्री भी है। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिंदू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

देवों की भूमि उत्तराखंड स्थित बदरीनाथ धाम के कपाट आज सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर विधि पूर्वक श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। इस शुभ और पावन अवसर पर हेलीकॉप्टर के माध्यम से बदरीनाथ धाम में पुष्प वर्षा की गई। जिस समय जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु निवास स्थान के कपाट खोले गए। उस समय 10 हजार से अधिक श्रद्धालु उपस्थित थे। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलते ही श्रीहरि के नाम का उद्घोष होने लगा। श्रद्धालुओं ने नारायण का जयकारा लगाया। पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। इसके पश्चात, श्रद्धालुओं ने नारायण श्री हरि विष्णु और अखंड ज्योति के दर्शन किए। इसके साथ ही चारधाम यात्रा की शुरुआत हो गई। आइए, बदरीनाथ से जुड़ी कुछ रोचक बातें जानते हैं

कैसे नाम पड़ा बदरीनाथ

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, चिरकाल में एक बार भगवान श्रीहरि विष्णु से अप्रसन्न होकर माता लक्ष्मी अपने मायके चली गईं। उस समय भगवान विष्णु वियोग में क्षीर सागर से पृथ्वी पर तप करने आ गए। तत्कालीन समय में उस स्थान पर घना जंगल था। वहीं, चारों तरफ ऊंचे पहाड़ थे। इसके लिए भगवान विष्णु को एकांतवास के लिए यह स्थान उपयुक्त लगा। कालांतर में भगवान विष्णु ने कठिन तपस्या और साधना की। कुछ दिनों के बाद माता लक्ष्मी को अपनी गलती का अहसास हुआ। इसके पश्चात भगवान विष्णु को ढूंढते-ढूंढते मां इसी स्थान पर आ गईं। माता लक्ष्मी को देख भगवान प्रसन्न हुए। चारों तरफ बेर फल का पेड़ देख माता लक्ष्मी ने स्थान को बदरीनाथ नाम दिया

सीता नवमी

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