गीता के अनुसार भोजन किस प्रकार करें (श्लोक सहित)

गीता में भोजन के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। यहाँ कुछ मुख्य बातें और उनके संबंधित श्लोक दिए गए हैं:

1. सात्विक भोजन ग्रहण करें:

  • गीता 17.8: “यज्ञ-शिष्ट-अशिष्ट-अन्नान: चतुर्विधा भोजन: शृंखला” – इसका अर्थ है कि चार प्रकार के भोजन होते हैं: यज्ञ-शिष्ट (जो भगवान को अर्पित किया गया हो), अशिष्ट (जो अशुद्ध या बासी हो), भक्ष्याभक्ष्य (जो खाने योग्य और अखाद्य हो), और अमृत (जो जीवनदायी हो)। हमें यज्ञ-शिष्ट और अमृत भोजन ग्रहण करना चाहिए।

2. भोजन को पवित्र भावना से ग्रहण करें:

  • गीता 3.13:यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।
    भुज्यते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ॥13॥” –
    • यज्ञशिष्ट यज्ञ में अर्पित भोजन के अवशेष; अशिनः-सेवन करने वाले; सन्तः-संत लोग; मुच्यन्ते–मुक्ति पाते हैं; सर्व-सभी प्रकार के; किल्बिशैः-पापों से; भुञ्जते–भोगते हैं; ते-वे; तु–लेकिन; अघम्-घोर पाप; पापा:-पापीजन; ये-जो; पचन्ति-भोजन बनाते हैं; आत्मकारणात्-अपने सुख के लिए।

3. भोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:

  • गीता 6.17:युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
    युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥17॥” –
    • इसका अर्थ है कि हमें युक्त-सामान्य; आहार-भोजन ग्रहण करना; विहारस्य–मनोरंजन; युक्त-चेष्टस्य-कर्मसु कार्यों में संतुलन; युक्त-संयमित; स्वप्न-अवबोधस्य–सुप्त और जागरण अवस्था; योगः-योगः भवति–होता है; दु:ख-हा-कष्टों का विनाश करने वाला।

4. भोजन के बाद धन्यवाद देना:

  • गीता 3.10: “यज्ञार्थं कर्मणोऽन्यत्र कर्मफलं सदा त्यक्त्वा कर्मफलं त्यक्त्वा कर्म करो जय” –
    • इसका अर्थ है कि हमें कर्म का फल त्यागकर कर्म करना चाहिए और भोजन के बाद ईश्वर का धन्यवाद देना चाहिए।

इन श्लोकों के अलावा, गीता में भोजन के बारे में कई अन्य महत्वपूर्ण बातें भी बताई गई हैं। हमें इन बातों का पालन करके स्वस्थ और पवित्र जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार भोजन

शास्त्रों में भोजन को बहुत महत्व दिया गया है। यह सिर्फ पेट भरने का जरिया नहीं, बल्कि स्वस्थ और सार्थक जीवन जीने का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। आइए देखें शास्त्र भोजन के बारे में क्या कहते हैं:

भोजन का चुनाव:

  • सात्विक भोजन ग्रहण करें: शास्त्रों में सात्विक भोजन को सबसे उत्तम माना गया है। सात्विक भोजन वह होता है जो ताजा, सात्विक गुणों वाला (पचने में आसान और शुद्ध) और शाकाहारी होता है।
  • तामसिक भोजन से बचें: शास्त्रों में तामसिक भोजन से बचने की सलाह दी जाती है। इसमें मांस, मदिरा, बासी भोजन आदि शामिल हैं। ऐसा भोजन मन और बुद्धि को थ सुस्त बना सकता है।
  • रजसिक भोजन का संतुलन रखें: रजसिक भोजन में तीखा, खट्टा और ज्यादा मसालेदार भोजन आता है। शास्त्रों में इसे संतुलित मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है।

भोजन ग्रहण करने की विधि:

  • पवित्रता: भोजन करने से पहले और बाद में हाथ धोना जरूरी माना जाता है। साथ ही शांत और सकारात्मक वातावरण में भोजन ग्रहण करना चाहिए।
  • मनःस्थिति: भोजन करते समय मन को शांत रखना चाहिए। गुस्से या तनाव में भोजन नहीं करना चाहिए।
  • भोजन ग्रहण करने का समय: शास्त्रों में दिन में एक बार भोजन करने की सलाह दी जाती है। अगर दो बार भोजन करते हैं तो रात का भोजन सूर्यास्त से पहले करना चाहिए।
  • भोजन करना एक यज्ञ है: भोजन को ईश्वर का प्रसाद समझ कर ग्रहण करना चाहिए। कुछ ग्रंथों में भोजन ग्रहण करने से पहले भगवान को भोग लगाने की भी बात कही गई है।
  • अन्न का सम्मान: भोजन की बर्बादी को शास्त्रों में महापाप माना जाता है। जितना खा सकें उतना ही भोजन लेना चाहिए।

शास्त्रों में भोजन से जुड़े कुछ अन्य नियम:

  • भोजन करते समय दिशा का ध्यान रखें: कुछ शास्त्रों में भोजन करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह रखने की सलाह दी जाती है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों के लिए भोजन नियम: कुछ धर्म ग्रंथों में ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों के लिए भोजन संबंधी विशेष नियम बताए गए हैं।

यह ध्यान रखना जरूरी है कि हर शास्त्र में भोजन से जुड़े नियमों में थोड़ा बहुत भिन्नता हो सकती है। आपको जो धर्म या संप्रदाय मानते हैं, उसके अनुसार विस्तृत जानकारी के लिए अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए।

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