
स्कन्दपुराण में वर्णित है यह मंदिर
गढ़कालिका मंदिर भारत के मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। कालजयी कवि कालिदास गढ़ कालिका देवी के उपासक थे। कालिदास रचित ‘श्यामला दंडक’ महाकाली स्तोत्र एक सुंदर रचना है। ऐसा कहा जाता है कि महाकवि के मुख से सबसे पहले यही स्तोत्र प्रकट हुआ था। यहाँ प्रत्येक वर्ष कालिदास समारोह के आयोजन के पूर्व माँ कालिका की आराधना की जाती है। ‘स्कन्दपुराण’ में चौबीस मातृकाओं में देवी गढ़कालिका का उल्लेख है। गढ़कालिका मंदिर में माँ कालिका के दर्शन के लिए रोज हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है।
मंदिर का इतिहास
गढ़कालिका मंदिर के पास जब पुरातत्व विभाग ने खुदाई कराई थी, तो बड़ी ईंट, टकसाल और सकड़ें निकली थीं। अनुमान है कि यह स्थान ईसा पूर्व 500 साल पुराना है। कुछ इतिहासकार गढ़कालिका मंदिर को महाभारतकाल का बताते हैं, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया।
मंदिर का महत्व
ऐसी मान्यता है कि काकड़ा आरती के बाद मां बाल स्वरूप में दर्शन देती हैं इसलिए यहां रात 2.30 बजे से श्रद्धालुओं की दर्शन के लिए कतार लग जाती है। रावण दहन के बाद श्री राम लौटते समय रुद्रसागर के किनारे रुके थे, तब रात्रि के समय मां और हनुमान जी के बीच युद्ध हुआ था, उस वक्त माता का एक अंश गलित होकर गिर गया। माता का जो अंश गिर गया, वही अंश गढ़कालिका के नाम से विख्यात हुआ।
मंदिर की वास्तुकला
परमार शासन काल में भी इसके जीर्णोद्धार के प्रमाण मिलते हैं रियासतकाल में सिंधिया राजवंश ने भी मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। नौंवी सदी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हर्ष विक्रमादित्य ने करवाया था। ‘गढ़’ नामक स्थान पर होने के कारण देवी को गढ़कालिका कहा जाता है। मंदिर परिसर मे अति प्राचीन दीप स्तंभ है। इस दीप स्तंभ में 108 दीप विद्यमान है, इसे नवरात्रि के दिनों में प्रज्वलित किया जाता है।
मंदिर का समय
मंदिर खुलने का समय
03:00 AM – 11:00 AM
काकड़ आरती का समय
04:00 AM – 05:00 AM
महाआरती का समय
09:00 AM – 10:00 AM
शयन आरती का समय
10:00 PM – 11:00 PM
मंदिर का प्रसाद
गढ़कालिका मंदिर में मां को हलवे और खीर-पूड़ी का भोग लगाते हैं। इसके अलावा श्रद्धालु पूरणपोली, दाल, चावल व सब्जी-रोटी का भोग भी लगाते हैं।
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