प्राचीन काल में राक्षस अपनी तपस्या के बल पर ऐसी शक्तियां प्राप्त कर लेते थे, जिनके सामने टिकना देवताओं के लिए भी मुश्किल हो जाता था। राक्षस अपनी शक्तियों का प्रयोग करके आतंक और भय फैलाते थे। ऐसी ही एक घटना रक्तबीज नाम से राक्षस से जुड़ी है। रक्तबीज का अंत मां काली के हाथों हुआ, लेकिन इस दौरान गलती से मां काली का पांव भगवान शिव के ऊपर आ गया था। आइये, जानते हैं उस घटना के बारे में
एक बार रक्तबीज नाम के एक राक्षस ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान हासिल कर लिया। रक्तबीज को यह वरदान मिला था कि उसका खून जहां भी गिरेगा, वहां से उसी के समान राक्षस पैदा हो जाएगा। रक्तबीज को अपने इस गुण पर बहुत अभिमान था, इसलिए उसने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। घमंड में चूर रक्तबीज ने देवताओं को युद्ध के लिए ललकारा। देवता रक्तबीज से लड़ने के लिए आ गए, लेकिन जहां भी रक्त बीज का रक्त गिरता, वहां से एक और रक्त बीज पैदा हो जाता। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत सारे रक्तबीज पैदा हो गए, जिन्हें हराने का कोई रास्ता देवताओं को दिखाई नहीं दे रहा था।
दुर्गा अथवा पार्वती के प्रचंड अवतार को ही कहा निकाली कहते हैं। असुरों से युद्ध करते समय दुर्गा ने सोचा कि चंद और मुंड नाम के असुरों को मारने के लिए हिंसक और विनाशक रूप धारण करना चाहिए।
गुस्से में आकर दुर्गा ने अपने तीसरे नेत्र से तेज बिजली निकाल दी। इस बिजली से नारी की एक काली आकृति प्रकट हुई। उसकी आंखें सुलग रही थी और बाल बिखरे हुए थे। उसकी लाल जीव चमक रही थी। हीरे या सोने के गहनों के बजाय वह मनुष्य की खोपड़ी की माला पहने हुए थी।
उसके तीन हाथों में त्रिशूल तलवार और मनुष्य की खोपड़ी थी। चौथे हाथ से वह आशीर्वाद दे रही थी। पूरी तरह से रक्त पिपासु दिख रही वह देवी असुरों को मारने चल पड़ी। उसने चंद और मुंड को मार डाला। इस तरह उसका नाम चामुंडा पड़ गया।
इसके बाद शिव जी प्रकट हुए और उन्होंने काली के विनाश को रोकने के लिए अपने आप को उसके पैरों पर गिरा दीया। शिव को अपने पैरों के नीचे गिरा दे काली को अपनी गलती महसूस हुई और उसने मारकाट बंद कर दी।