भगवान सूर्य का अवतरण संसार के कल्याण के लिए हुआ है इसलिए पंचदेवोपासना में उनका विशिष्ट स्थान है। शास्त्र कहते हैं कि ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत्’ अर्थात् आरोग्य की कामना भगवान सूर्य से करनी चाहिए। सूर्य की उपासना से मनुष्य का तेज, बल, आयु एवं नेत्रों की ज्योति की वृद्धि होती है; मनुष्य दीर्घायु होता है। सूर्य समस्त नेत्र-रोग व चर्म-रोग को दूर करने वाले देवता हैं। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने अपने कोढ़ के रोग को सूर्य की उपासना से दूर किया था।

भगवान श्रीकृष्ण और जाम्बवती के पुत्र साम्ब बलवान होने के साथ ही अत्यन्त रूपवान भी थे। अपनी सुन्दरता का अभिमान ही उनके पतन का कारण बना। एक बार रुद्रावतार दुर्वासामुनि द्वारकापुरी में आए। तप से अत्यन्त क्षीण हुए दुर्वासा को देखकर साम्ब ने उनका उपहास किया। इससे क्रोध में आकर दुर्वासामुनि ने साम्ब को शाप दे दिया कि ‘तुम कोढ़ी हो जाओ।’ उपहास बुरा होता है; और वही हुआ।

भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब अत्यन्त भयंकर कुष्ठरोग से ग्रस्त हो गए। रोग दूर करने के लिए अनेक उपचार किए पर उनका कुष्ठ नहीं मिटा। तब भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से साम्ब चन्द्रभागा नदी के तट पर सूर्य की आराधना में लग गए। रोग से मुक्ति के लिए साम्ब नित्य भगवान सूर्य के सहस्त्रनाम का पाठ करते थे। एक दिन भगवान सूर्य ने साम्ब को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा–’तुम्हें सहस्त्रनाम से मेरी स्तुति करने की आवश्यकता नहीं है। मैं तुम्हें अपने अत्यन्त प्रिय एवं पवित्र इक्कीस नाम बताता हूँ, उनके पाठ से सहस्त्रनाम के पाठ का फल प्राप्त होगा। जो मनुष्य दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र का पाठ करेंगे, वे समस्त पापों से छूटकर धन, आरोग्य, संतान आदि वांछित फल प्राप्त करेंगे और समस्त रोगों से मुक्त हो जाएंगे।’

तब भगवान सूर्य ने श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब को अपने 21 नाम बताये जो ‘स्तवराज’ के नाम से भी जाने जाते हैं। ये नाम भगवान सूर्य के सर्वरोगनाशक श्रीसूर्यस्तवराजस्तोत्र के रूप में आज भी विद्यमान है –
॥ सर्वरोगनाशक श्रीसूर्यस्तवराजस्तोत्रम् ॥
विनियोगः – ॐ श्री सूर्यस्तवराजस्तोत्रस्य श्रीवसिष्ठ ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः । श्रीसूर्यो देवता ।
सर्वपापक्षयपूर्वकसर्वरोगोपशमनार्थे पाठे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः – श्रीवसिष्ठऋषये नमः शिरसि ।
अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे । श्रीसूर्यदेवाय नमः हृदि ।
सर्वपापक्षयपूर्वकसर्वरोगापशमनार्थे पाठे विनियोगाय नमः अञ्जलौ ।
ध्यानं –
ॐ रथस्थं चिन्तयेद् भानुं द्विभुजं रक्तवाससे ।
दाडिमीपुष्पसङ्काशं पद्मादिभिः अलङ्कृतम् ॥
मानस पूजनं एवं स्तोत्रपाठः –
ॐ विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः ।
लोकप्रकाशकः श्रीमान् लोकचक्षु ग्रहेश्वरः ॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा ।
तपनः तापनः चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः ॥
गभस्तिहस्तो ब्रध्नश्च सर्वदेवनमस्कृतः ।
एकविंशतिः इत्येष स्तव इष्टः सदा मम ॥
॥ फलश्रुतिः ॥
श्रीः आरोग्यकरः चैव धनवृद्धियशस्करः ।
स्तवराज इति ख्यातः त्रिषु लोकेषु विश्रुतः ॥
यः एतेन महाबहो द्वे सन्ध्ये स्तिमितोदये ।
स्तौति मां प्रणतो भूत्वा सर्व पापैः प्रमुच्यते ॥
कायिकं वाचिकं चैव मानसं यच्च दुष्कृतम् ।
एकजप्येन तत् सर्वं प्रणश्यति ममाग्रतः ॥
एकजप्यश्च होमश्च सन्ध्योपासनमेव च ।
बलिमन्त्रोऽर्घ्यमन्त्रश्च धूपमन्त्रस्तथैव च ॥
अन्नप्रदाने स्नाने च प्रणिपाति प्रदक्षिणे ।
पूजितोऽयं महामन्त्रः सर्वव्याधिहरः शुभः ॥
एवं उक्तवा तु भगवानः भास्करो जगदीश्वरः ।
आमन्त्र्य कृष्णतनयं तत्रैवान्तरधीयत ॥
साम्बोऽपि स्तवराजेन स्तुत्वा सप्ताश्ववाहनः ।
पूतात्मा नीरुजः श्रीमान् तस्माद्रोगाद्विमुक्तवान् ॥
भगवान् सूर्यनामावली
१. विकर्तन २. विवस्वान् ३. मार्तण्ड ४. भास्कर ५. रवि
६. लोकप्रकाशक ७. श्रीमान् ८. लोकचक्षु ९. ग्रहेश्वर
१०. लोकसाक्षी ११. त्रिलोकेश १२. कर्ता १३. हर्ता १४. तमिस्रहा
१५. तपन १६. तापन १७. शुचि १८. सप्ताश्ववाहन
१९. गभस्तिहस्त २०. ब्रघ्न ( ब्रह्मा ) २१. सर्वदेवनमस्कृत
इति ।

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