दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और वह हर समय श्रीहरि की भक्ति में लीन रहता था। ऐसे में अपने पुत्र की भक्ति को समाप्त करने के लिए और उसकी हत्या के लिए दैत्यराज भक्त प्रहलाद को होलाष्टक के इन आठ दिनों में कठोर यातनाओं का दंड देता रहा। अंतिम दिन जब हिरण्यकश्यप की बहन होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर चिता में बैठी तो भगवान विष्णु की कृपा से वह बच गया, लेकिन होलिका उस आग में भस्म हो गई। यही कारण है कि इन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है और होलाष्टक के अंतिम दिन होलिका दहन कर अधर्म पर हुई धर्म की जीत का उत्सव मनाया जाता है।

इस बार 7 मार्च को होलिका दहन होगी और इसके 8 दिन पहले यानी 27 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 8 दिनों तक किसी भी तरह का शुभ कार्य जैसे विवाह , गृह प्रवेश, सगाई, मुंडन और नई गाड़ी की खरीदारी करना जैसे शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं.

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि होलाष्टक की अवधि में आठ ग्रह उग्र अवस्था में रहते हैं। पहले दिन यानि अष्टमी तिथि को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी तिथि पर शनि, एकादशी पर शुक्र, द्वादशी पर गुरु, त्रयोदशी तिथि पर बुध, चतुर्दशी पर मंगल और पूर्णिमा तिथि के दिन राहु उग्र स्थिति में रहते हैं। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार इस अवधि में किए गए मांगलिक कार्यों पर इन ग्रहों का दुष्प्रभाव पड़ता है, जिसका असर सभी राशियों के जीवन पर भी पड़ सकता है। जिस वजह से जीवन में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यही कारण है कि होली से पहले इन आठ (इस वर्ष नौ) दिनों में सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है।

इस साल होलिका दहन 7 मार्च को होगी फिर अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाएगी. होली के 8 दिनों पहले तक होलाष्टक शुरू हो जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 8 दिनों तक किसी भी तरह का शुभ कार्य जैसे विवाह , गृह प्रवेश, सगाई, मुंडन और नई गाड़ी की खरीदारी करना जैसे शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं. यहां तक की जमीन या मकान से जुड़ा हुआ सौदा भी करना शुभ नहीं माना जाता है. इस बार 7 मार्च को होलिका दहन होगी और इसके 8 दिन पहले यानी 27 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे. आइए जानते हैं आखिरकार होली के 8 दिन पहले के समय को किसी शुभ कार्य करने के लिए वर्जित माना जाता है.

होलाष्टक अशुभ क्यों ?

होली के 8 दिनों पहले के समय को होलाष्टक कहते हैं. दरअसल होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह बहुत ही उग्र स्वभाव में रहते हैं जिस कारण से किसी भी तरह का कोई भी शुभ कार्य करने पर उसका शुभ फल अच्छे प्राप्त नहीं होता है. होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में रहते हैं. ग्रह के स्वभाव में उग्रता आने पर जब व्यक्ति किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य करता है या फिर कोई फैसला लेता है वह शांत मन से नहीं लेता है जिसके कारण उसके द्वारा लिए गए निर्णय गलत साबित हो सकते हैं. वहीं ज्योतिष में बताया गया है जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा नीच के हो या वृश्चिक राशि वाले जातक, या चंद्रमा 6ठें या 8वें भाव में हो उन्हें ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने जीवन को साकार करें उपनिषद पढ़कर 60 से भी अधिक उपनिषद PDF