आप सभी जानते ही होंगे शनिवार के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पीपल की पूजा कर रहे होते हैं। इस दिन लोग पीपल को जल देते हैं, दीप दिखाते हैं, काले तिल और गुड़ भी अर्पित करते हैं। लेकिन आपने सोचा है ऐसा क्यों? आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसका कारण।

जी दरअसल पीपल को लेकर श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि ‘अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:। अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूं। इससे भी इस वृक्ष की महत्‍ता पता चलती है। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। इसलिए पीपल को पूजनीय पेड़ माना जाता है।’

इसके अलावा यह भी मान्‍यता है क‍ि पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जिन जातकों की कुंडली में शनि दोष होता है। उन्हें इसके कुप्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। जी दरअसल इसे लेकर पौराणिक कथाएं भी म‍िलती हैं। इनमे पहली कथा के अनुसार ‘एक समय स्वर्ग पर असुरों ने कब्जा कर लिया था। कैटभ नाम का राक्षस पीपल वृक्ष का रूप धारण करके यज्ञ को नष्ट कर देता था। जब भी कोई ब्राह्मण समिधा के लिए पीपल के पेड़ की टहनियां तोड़ने पेड़ के पास जाता, तो यह राक्षस उसे खा जाता। ऋषियों को समझ ही नहीं आ रहा था क‍ि आख‍िर ब्राह्मण कुमार कहां गायब होते जा रहे हैं। ब्राह्मण कुमारों के वापस न लौटने पर ऋषियों ने शनिदेव से सहायता मांगी। इस पर शनिदेव ब्राह्मण बनकर पीपल के पेड़ के पास गए। कैटभ ने शनि महाराज को पकड़ने की कोशिश की, तो शनिदेव और कैटभ में युद्ध हुआ। शनि ने कैटभ का वध कर दिया। तब शनि महाराज ने ऋषियों को कहा कि आप सभी भयमुक्त होकर शनिवार के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें, इससे शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।’

वहीं एक अन्‍य पौराण‍िक कथा के अनुसार, ‘ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। बड़े होने इन्हें पता चला कि शनि की दशा के कारण ही इनके माता-पिता को मृत्यु का सामना करना पड़ा। इससे क्रोधित होकर पिप्लाद ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया। इससे प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी ने उनसे वर मांगने को कहा, तो पिप्लाद ने ब्रह्मदंड मांगा और पीपल के पेड़ में बैठे शनिदेव पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया। इससे शनि के पैर टूट गए। शनिदेव दुखी होकर भगवान शिव को पुकारने लगे। भगवान शिव ने आकर पिप्पलाद का क्रोध शांत किया और शनि की रक्षा की। तभी से शनि पिप्पलाद से भय खाने लगे। पिप्लाद का जन्म पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ था और पीपल के पत्तों को खाकर इन्होंने तप किया था इसलिए माना जाता है कि पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर होता है।’

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