गंगा नदी के धरती पर अवतरण, उनके अस्तित्व और शिव जी के संबंध में कई कथाएँ हैं। उनमें से प्रसिद्ध कथा यह बताती है कि गंगा नदी का उद्गम देवी पार्वती के पसीने से हुआ था। 

पिछली कथा में हमने पढ़ा कि किस प्रकार देवी पार्वती ने अपने हाथों से शिव भगवान की आँखें बंद कर दी थीं जिससे संसार में अंधकार छा गया था और शिव भगवान ने अपने तृतीय नेत्र से जग उजागर कर दिया था। 

जब देवी पार्वती ने अचानक तृतीय नेत्र एवं उसके प्रकाश को देखा तो वह भयभीत हो उठीं। उन्होंने झट से शिवजी की आँखों से अपने हाथ हटा लिए। ताप और घबराहट के कारण उनके हाथों से पसीने की बूंदें निकलकर नीचे गिरने लगी और गंगा नदी में बदल गईं। आगे चलकर नदी की कई शाखाएँ हो गईं और सारी पृथ्वी जलमग्न होने लगी। यह देखकर ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र घबराए हुए शिव भगवान के पास गए और प्रार्थना करने लगे, “हे महादेव! यह धरती पर क्या हो रहा है? नदी तो सारी सृष्टि को जलमग्न कर रही है… इसे कैसे रोका जाए?” 

देवों को सांत्वना देकर शिव भगवान ने पूरी नदी को सोखकर अपनी जटा में रख लिया। अब जल के अभाव में तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। फलतः सभी देव पुनः शिव भगवान से जाकर प्रार्थना करने लगे, “हे महादेव! सम्पूर्ण नदी आपकी जटाओं में समाहित है… तीनों लोकों के लिए जल की तो आवश्यकता है… कृपया जल देने की अनुकंपा करें…” 

शिव भगवान ने कहा, “एवमस्तु!” 

तत्पश्चात् उन्होंने गंगा के एक भाग को मुक्त किया। इस प्रकार वैकुण्ठ में गंगा विरजा नदी के रूप में, सत्यलोक में मानस तीर्थ तथा इन्द्रलोक में देवगंगा के रूप में आईं। गंगा नदी के धरती पर अवतरण तथा शिव भगवान ने कैसे उन्हें अपनी जटाओं में संभाला इस बारे में एक अन्य कथा भी है। भागवत पुराण की यह कथा गंगा को वामन अवतार से जोड़ती है। उसके अनुसार धरती मापते समय वामन के पैर का नाखून धरती में घुस गया और वहीं से गंगा नदी का उद्गम हुआ। तीनों लोकों से होती हुई गंगा बह्मलोक पहुँचीं। बाद में राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मुक्ति दिलाने राजा भगीरथ गंगा को ब्रह्मलोक से शिवजी की जटाओं से होते हुए पृथ्वी पर लाए।

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