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Lord Rama

Lord Rama: रामायण की कथा अनुसार जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई के साथ 14 वर्षों के वनवास पर निकल गए थे तब उन्होंने यह समय भिन्न-भिन्न स्थानों पर व्यतीत किया था। आइए जानते हैं उन स्थानों के विषय में जहां श्रीराम ने अपना वनवास बिताया था।

बस कुछ ही दिनों में भगवान श्रीराम का राजतिलक होने जा रहा था…. उनकी प्रजा में हर्ष की एक लहर जैसी थी…. लेकिन तब महारानी कैकेयी की दासी मंथरा ने अपनी धूर्त मानसिकता का परिचय देते हुए कैकेयी के मस्तिष्क में विष घोल दिया। उस धूर्त दासी ने कैकेयी को महाराज दशरथ का वो वरदान याद दिलवाया जिसके अनुसार वह उनसे कोई भी दो वरदान मांगने को कहा जिसे वह मना नहीं कर सकते।

कैकेयी अपनी दासी मंथरा की बातों में आकर उसके भ्रम जाल में फंस गई और उसने राजा से वे वरदान मांगे जो कहीं ना कहीं रामायण का आधार बने…. पहला वरदान अपने पुत्र भरत को राजगद्द्दी और दूसरा और शायद सबसे कठोर राम को 14 वर्ष का वनवास…. !!

कैकेयी के इन दो वरदान मांगने के पीछे भी कई रहस्य हैं… कुछ कहते हैं ईर्ष्या और लालच की वजह से कैकेयी ने अपने पुत्र के लिए राजगद्दी मांगी तो कुछ यह कहते हैं कि कैकेयी यह जानती थी कि राजा दशरथ की मृत्यु पुत्र वियोग की वजह से होगी…..या तो भगवान राम की मृत्यु या फिर वनवास। राम को बचाने के लिए ही कैकेयी ने उनके लिए वनवास मांगा था।

Where Does Lord Rama Stayed During 14 Years Of Exile

अनुज लक्ष्मण और माता सीता भी प्रभु राम Lord Rama के साथ वनवास के कष्ट भोगने साथ चले थे… इस दौरान उनके साथ क्या-क्या घटनाएं घटित हुई बहुत से लोग इन सभी बातों से अवगत हैं लेकिन शायद आप इस बात से अवगत ना हों कि ये 14 वर्ष उन्होंने कहां-कहां बिताए थे। तो चलिए आपको बताते हैं वनवस का समय प्रभु राम ने कहां-कहां बिताया था।

अयोध्या से विदा लेने के पश्चात भगवान Lord Rama राम अपने अनुज और पत्नी के साथ रथ पर बैठकर आर्य सुमंत के साथ तमसा नदी के तट तक पहुंचे थे। तट तक छोड़ने के लिए अयोध्या की प्रजा भी उनके साथ आई थी क्योंकि वह अपने प्रभु को अकेले जाने नहीं दे रही। रात को अपनी प्रजा के साथ प्रभु राम ने वहीं विश्राम किया और सुबह बिना किसी को जगाए मता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ नगर छोड़कर चले गए।

कौशल नगरी से प्रस्थान करने के बाद भगवान राम Lord Rama अपने मित्र निषादराज गुह की नगरी श्रृंगवेरपुर के नजदीक वनों में पहुंचे और वहां एक दिन का विश्राम किया। उनके मित्र गुह ने उनका सत्कार किया और अगले दिन उन्होंने सुमंत को रथ लेकर अयोध्या लौट जाने का आदेश दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पैदल यात्रा आरंभ की… तत्पश्चात उन्होंने केवट के सहारे गंगा नदी को पार किया और कुरई गांव में उतरे।

गंगा पार करने के बाद श्रीराम माता सीता, लक्ष्मण तथा निषादराज गुह के साथ प्रयाग की ओर प्रस्थान कर गए…जहां से वे आगे ऋषि भारद्वाज के आश्रम पहुंचे। उन्होंने भारद्वाज ऋषि से अपने रहने के लिए उत्तम स्थान पूछा जिन्होंने यमुना पार चित्रकूट का नाम उन्हें सुझाया।

भारद्वाज ऋषि के आश्रम से ही उन्होंने अपने मित्र निषादराज को वापिस लौट जाने का आदेश दिया और स्वयं अपने भाई लक्ष्मण और देवी सीता के साथ चित्रकूट की ओर चल पड़े। चित्रकूट पहुंचने पर उन्होंने वाल्मीकि आश्रम में उनसे भेंट की और मंदाकिनी नदी के किनारे कल्पवास किया। भरत इसी स्थान पर उनसे मिलने पहुंचे थे। इसके कुछ समय पश्चात श्रीराम चित्रकूट से भी चले गए क्योंकि उन्हें यह भय था कि अयिध्या की प्रजा उनसे मिलने यहां आ सकती है, जिससे ऋषि-मुनियों की तपस्या में विघ्न पड़ेगा।

दंडकारण्य में पहुंचकर सर्वप्रथम उन्होंने ऋषि अत्री तथा माता अनुसूया के आश्रम पहुंचकर उनसे भेंट की। माता अनुसूया से माता सीता को विभिन्न प्रकार के आभूषण और वस्त्र प्रदान किए… उनसे मिलने के पश्चात वे पुन: अपनी यात्रा के लिए निकल पड़े। Lord Rama श्रीराम ने अपने वनवास काल का ज्यादातर समय दंडकारण्य के वनों में ही बिताया था…यहां उनकी भेंट महान ऋषि अगस्त्य से हुई। अगस्त्य मुनि ने ही उन्हें प6चवटी जाकर निवास करने को कहा था।

ऋषि अगस्त्य से आज्ञा पाकर Lord Rama भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण पंचवटी की ओर निकल गए जहां एक कुटीया बनाकर वे रहने लगे। यहां उनकी भेंट जटायु से हुई…जो उनकी कुटिया की रक्षा में प्रहरी के तौर पर तैनात रहते थे। यहीं शूर्पनखा ने Lord Rama श्रीराम और लक्ष्मण को देखा था और यहीं से माता सीता का हरण राक्षस राज रावण द्वारा हुआ था। Lord Rama श्रीराम और लक्ष्मण माता सीता को ढूंढते हुए फिर यहां से निकल गए थे।

Lord Rama

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