भगवान विश्वकर्मा को प्राचीन काल का सबसे पहला इंजीनियर कहा जाता है। उन्होंने भगवान शिव के त्रिशूल से लेकर कई और भी चीजों का निर्माण किया था। आइए जानते हैं इस साल कब है विश्वकर्मा जयंती और पूजा के लिए शुभ मुहूर्त कब से कब तक रहेगा।

विश्वकर्मा की जयंती हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।। भगवान विश्वकर्मा ने ही भगवान शिव की त्रिशूल, लंका महल, द्वारका और देवताओं के अस्त्र और शस्त्र का निर्माण किया था। आइए जानते हैं इस साल कब मनाई जाएगी भगवान विश्वकर्मा की जयंती।

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कब मनाई जाएगी विश्वकर्मा जयंती

विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी। इसी के साथ पूजा के लिए सुबह 7 बजकर 50 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक का शुभ मुहूर्त है।

विश्वकर्मा पूजा महत्व

ऋषियों-मुनियों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ विश्वकर्मा जी की पूजा आराधना का प्रावधान है। विश्वकर्मा जी को ही प्राचीन काल का पहला इंजीनियर माना जाता है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़े उपकर औजार, की पूजा की करने से कार्य में कुशलता आती है। साथ ही आपके कारोबार में बढ़ोतरी होती है। इतना ही नहीं आपके घर में धन धान्य और सुख समृद्धि का आगमन होता है।

विश्वकर्मा ने की थी पुष्पक विमान की रचना

विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की थी। ब्रह्माजी के दिशा निर्देश के अनुसार, ही उन्होंने पुष्पक विमान की रचना की थी। इन सबके अलावा भगवान विश्वकर्मा को वास्तु शास्त्र का ज्ञान, यंत्र का निर्माण, विमान विद्या आदि के बारे में भी कई जानकारी प्राप्त हैं।

विश्वकर्मा पूजन विधि

विश्वकर्मा जयंती के दिन प्रतिमा को विराजित करके पूजा की जाती है। जिस व्यक्ति के प्रतिष्ठान में पूजा होनी है, वह प्रात:काल स्नान आदि करने के बाद अपनी पत्नी के साथ पूजन करें। हाथ में फूल, चावल लेकर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए घर और प्रतिष्ठान में फूल व चावल छिड़कने चाहिए।

इसके बाद पूजन कराने वाले व्यक्ति को पत्नी के साथ यज्ञ में आहुति देनी चाहिए। पूजा करते समय दीप, धूप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि का प्रयोग करना चाहिए। पूजन से अगले दिन प्रतिमा का विसर्जन करने का विधान है। 

पूजन के मंत्र

भगवान विश्वकर्मा की पूजा में ‘ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:’, ‘ॐ अनन्तम नम:’, ‘पृथिव्यै नम:’ मंत्र का जप करना चाहिए। जप के लिए रुद्राक्ष की माला होना चाहिए। 

जप शुरू करने से पहले ग्यारह सौ, इक्कीस सौ, इक्यावन सौ या ग्यारह हजार जप का संकल्प लें। चूंकि इस दिन प्रतिष्ठान में छुट्टी रहती है तो आप किसी पुरोहित से भी जप संपन्न करा सकते हैं।

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