Vishwakarma Chalisa:विश्वकर्मा चालीसा भगवान विश्वकर्मा की स्तुति और उनकी महानता का वर्णन करती है। भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि के निर्माता और शिल्पकला, वास्तुकला, और निर्माण कार्यों के देवता के रूप में पूजा जाता है। उन्हें सभी प्रकार के शिल्पकारों, इंजीनियरों, और वास्तुकारों के आराध्य देव माना जाता है। विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जो उनके जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता लेकर आते हैं।
Vishwakarma Chalisa:विश्वकर्मा चालीसा के लाभ:
- कर्म में सिद्धि और सफलता:
भगवान विश्वकर्मा को सभी प्रकार के निर्माण कार्यों, शिल्प और यांत्रिकी का देवता माना जाता है। विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के कार्यों में सिद्धि और सफलता प्राप्त होती है। Vishwakarma Chalisa जो लोग निर्माण, शिल्प या तकनीकी कार्यों से जुड़े होते हैं, उन्हें विशेष रूप से इसका लाभ मिलता है। इसके पाठ से कार्यों में रुकावटें दूर होती हैं और मनोवांछित परिणाम प्राप्त होते हैं। - व्यापार और उद्योग में प्रगति:
जो लोग उद्योग या व्यवसाय में संलग्न होते हैं, उनके लिए Vishwakarma Chalisa विश्वकर्मा चालीसा का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है। इसका नियमित पाठ व्यापार में वृद्धि और आर्थिक उन्नति दिलाने में सहायक होता है। इससे व्यापारिक समस्याओं का समाधान होता है और व्यक्ति को अपने उद्योग में तरक्की मिलती है। - यांत्रिकी और मशीनरी में कुशलता:
भगवान विश्वकर्मा को सभी यंत्रों और उपकरणों का जनक माना जाता है। Vishwakarma Chalisa का पाठ करने से यांत्रिकी, मशीनरी और औद्योगिक उपकरणों के संचालन में कुशलता बढ़ती है। इससे नई तकनीकों और यंत्रों का उपयोग करने की योग्यता प्राप्त होती है और व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त करता है।
- सुरक्षा और दुर्घटनाओं से बचाव:
विश्वकर्मा चालीसा का पाठ व्यक्ति को कार्यस्थल पर सुरक्षा प्रदान करता है। खासकर उन लोगों के लिए जो भारी मशीनरी, औजार, और उपकरणों के साथ काम करते हैं, इसका पाठ सुरक्षा और दुर्घटनाओं से बचाव के लिए किया जाता है। भगवान विश्वकर्मा की कृपा से व्यक्ति को कार्य के दौरान किसी भी प्रकार की हानि या चोट से मुक्ति मिलती है। - रचनात्मकता और नवीनता का विकास:
भगवान विश्वकर्मा को सृजन और निर्माण के देवता के रूप में पूजा जाता है। Vishwakarma Chalisa का पाठ करने से व्यक्ति की रचनात्मकता और नवाचार की क्षमता में वृद्धि होती है। इससे व्यक्ति नए विचारों और तकनीकों को विकसित कर पाता है, जिससे वह अपने कार्यक्षेत्र में अग्रणी बनता है। - शांति और समृद्धि:
विश्वकर्मा चालीसा का नियमित पाठ परिवार और कार्यस्थल में शांति और समृद्धि लाता है। Vishwakarma Chalisa भगवान विश्वकर्मा की कृपा से सभी कार्य सफल होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इससे आर्थिक स्थिरता बनी रहती है और जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति मिलती है। - मानसिक शांति और आत्मविश्वास में वृद्धि:
विश्वकर्मा चालीसा का पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। इसका नियमित पाठ व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाता है और उसे जीवन के कठिन समय में धैर्य और साहस प्रदान करता है। इससे व्यक्ति अपने कार्यों में ध्यान केंद्रित कर पाता है और कठिनाइयों को सफलता से पार कर सकता है।
निष्कर्ष:
विश्वकर्मा चालीसा का पाठ न केवल शिल्पकारों और तकनीकी कर्मियों के लिए बल्कि हर व्यक्ति के लिए लाभकारी होता है। यह पाठ जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, सुरक्षा, और समृद्धि प्रदान करता है। विश्वकर्मा जी की कृपा से व्यक्ति के कार्य सुचारू रूप से संपन्न होते हैं और उसे जीवन में यश, कीर्ति, और सम्मान प्राप्त होता है।
Vishwakarma Chalisa विश्वकर्मा चालीसा
॥ दोहा ॥
श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं,
चरणकमल धरिध्यान ।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण,
दीजै दया निधान ॥
॥ चौपाई ॥
जय श्री विश्वकर्म भगवाना ।
जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ॥
शिल्पाचार्य परम उपकारी ।
भुवना-पुत्र नाम छविकारी ॥
अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर ।
शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ॥
अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता ।
सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता ॥ ४ ॥
अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं ।
कोई विश्व मंह जानत नाही ॥
विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा ।
अद्भुत वरण विराज सुवेशा ॥
एकानन पंचानन राजे ।
द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ॥
चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे ।
वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ॥ ८ ॥
शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा ।
सोहत सूत्र माप अनुरूपा ॥
धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे ।
नौवें हाथ कमल मन मोहे ॥
दसवां हस्त बरद जग हेतु ।
अति भव सिंधु मांहि वर सेतु ॥
सूरज तेज हरण तुम कियऊ ।
अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ॥ १२ ॥
चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका ।
दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ॥
विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं ।
अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ॥
इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा ।
तुम सबकी पूरण की आशा ॥
भांति-भांति के अस्त्र रचाए ।
सतपथ को प्रभु सदा बचाए ॥ १६ ॥
अमृत घट के तुम निर्माता ।
साधु संत भक्तन सुर त्राता ॥
लौह काष्ट ताम्र पाषाणा ।
स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ॥
विद्युत अग्नि पवन भू वारी ।
इनसे अद्भुत काज सवारी ॥
खान-पान हित भाजन नाना ।
भवन विभिषत विविध विधाना ॥ २० ॥
विविध व्सत हित यत्रं अपारा ।
विरचेहु तुम समस्त संसारा ॥
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका ।
विविध महा औषधि सविवेका ॥
शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला ।
वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ॥
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ ।
करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ॥ २४ ॥
भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका ।
कियउ काज सब भये अशोका ॥
अद्भुत रचे यान मनहारी ।
जल-थल-गगन मांहि-समचारी ॥
शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही ।
विज्ञान कह अंतर नाही ॥
बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा ।
सकल सृष्टि है तव विस्तारा ॥ २८ ॥
रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा ।
तुम बिन हरै कौन भव हारी ॥
मंगल-मूल भगत भय हारी ।
शोक रहित त्रैलोक विहारी ॥
चारो युग परताप तुम्हारा ।
अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ॥
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता ।
वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ॥ ३२ ॥
मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा ।
सबकी नित करतें हैं रक्षा ॥
पंच पुत्र नित जग हित धर्मा ।
हवै निष्काम करै निज कर्मा ॥
प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई ।
विपदा हरै जगत मंह जोई ॥
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा ।
करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ॥ ३६ ॥
इक सौ आठ जाप कर जोई ।
छीजै विपत्ति महासुख होई ॥
पढाहि जो विश्वकर्म-चालीसा ।
होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ॥
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे ।
हो प्रसन्न हम बालक तेरे ॥
मैं हूं सदा उमापति चेरा ।
सदा करो प्रभु मन मंह डेरा ॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
करहु कृपा शंकर सरिस,
विश्वकर्मा शिवरूप ।
श्री शुभदा रचना सहित,
ह्रदय बसहु सूर भूप ॥