Vindhyeshvari Chalisa:विन्ध्येश्वरी चालीसा
Vindhyeshvari Chalisa:विन्ध्येश्वरी माता को शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। वे विंध्य पर्वत की अधिष्ठात्री देवी हैं और माता पार्वती का एक स्वरूप मानी जाती हैं। विन्ध्येश्वरी माता की पूजा विशेष रूप से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में की जाती है।
Vindhyeshvari Chalisa:विन्ध्येश्वरी चालीसा का महत्व
विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ करने से मन में शक्ति और शांति का अनुभव होता है। यह माना जाता है कि चालीसा का नियमित पाठ करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वे मोक्ष प्राप्त करते हैं।
Vindhyeshvari Chalisa:विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ कैसे करें?
- शुद्ध मन से: चालीसा का पाठ करते समय मन को शांत रखें और विन्ध्येश्वरी माता पर पूरा विश्वास रखें।
- ध्यान लगाकर: चालीसा के प्रत्येक चरण का अर्थ समझने का प्रयास करें और माता के चरणों में ध्यान लगाएं।
- नियमित रूप से: विन्ध्येश्वरी माता की कृपा पाने के लिए नियमित रूप से चालीसा का पाठ करें।
Vindhyeshvari Chalisa:विन्ध्येश्वरी चालीसा के लाभ
- मन की शांति: चालीसा का पाठ करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है।
- भय का निवारण: विन्ध्येश्वरी माता भक्तों को सभी तरह के भय से मुक्त करती हैं।
- शत्रुओं का नाश: विन्ध्येश्वरी माता अपने भक्तों के शत्रुओं का नाश करती हैं।
- सफलता: विन्ध्येश्वरी माता अपने भक्तों को सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती हैं।
Vindhyeshvari Chalisa:विन्ध्येश्वरी चालीसा
॥ दोहा ॥
नमो नमो विन्ध्येश्वरी,
नमो नमो जगदम्ब ।
सन्तजनों के काज में,
करती नहीं विलम्ब ॥
जय जय जय विन्ध्याचल रानी।
आदिशक्ति जगविदित भवानी ॥
सिंहवाहिनी जै जगमाता ।
जै जै जै त्रिभुवन सुखदाता ॥
कष्ट निवारण जै जगदेवी ।
जै जै सन्त असुर सुर सेवी ॥
महिमा अमित अपार तुम्हारी ।
शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥
दीनन को दु:ख हरत भवानी ।
नहिं देखो तुम सम कोउ दानी ॥
सब कर मनसा पुरवत माता ।
महिमा अमित जगत विख्याता ॥
जो जन ध्यान तुम्हारो लावै ।
सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥
तुम्हीं वैष्णवी तुम्हीं रुद्रानी ।
तुम्हीं शारदा अरु ब्रह्मानी ॥
रमा राधिका श्यामा काली ।
तुम्हीं मातु सन्तन प्रतिपाली ॥
उमा माध्वी चण्डी ज्वाला ।
वेगि मोहि पर होहु दयाला ॥ 10
तुम्हीं हिंगलाज महारानी ।
तुम्हीं शीतला अरु विज्ञानी ॥
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता ।
तुम्हीं लक्ष्मी जग सुख दाता ॥
तुम्हीं जाह्नवी अरु रुद्रानी ।
हे मावती अम्ब निर्वानी ॥
अष्टभुजी वाराहिनि देवा ।
करत विष्णु शिव जाकर सेवा ॥
चौंसट्ठी देवी कल्यानी ।
गौरि मंगला सब गुनखानी ॥
पाटन मुम्बादन्त कुमारी ।
भाद्रिकालि सुनि विनय हमारी ॥
बज्रधारिणी शोक नाशिनी ।
आयु रक्षिनी विन्ध्यवासिनी ॥
जया और विजया वैताली ।
मातु सुगन्धा अरु विकराली ॥
नाम अनन्त तुम्हारि भवानी ।
वरनै किमि मानुष अज्ञानी ॥
जापर कृपा मातु तब होई ।
जो वह करै चाहे मन जोई ॥ 20
कृपा करहु मोपर महारानी ।
सिद्ध करहु अम्बे मम बानी ॥
जो नर धरै मातु कर ध्याना ।
ताकर सदा होय कल्याना ॥
विपति ताहि सपनेहु नाहिं आवै ।
जो देवीकर जाप करावै ॥
जो नर कहँ ऋण होय अपारा ।
सो नर पाठ करै शत बारा ॥
निश्चय ऋण मोचन होई जाई ।
जो नर पाठ करै चित लाई ॥
अस्तुति जो नर पढ़े पढ़अवे ।
या जग में सो बहु सुख पावे ॥
जाको व्याधि सतावे भाई ।
जाप करत सब दूर पराई ॥
जो नर अति बन्दी महँ होई ।
बार हजार पाठ करि सोई ॥
निश्चय बन्दी ते छुट जाई ।
सत्य वचन मम मानहु भाई ॥
जापर जो कछु संकट होई ।
निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ॥ 30
जा कहँ पुत्र होय नहिं भाई ।
सो नर या विधि करे उपाई ॥
पाँच वर्ष जो पाठ करावै ।
नौरातन महँ विप्र जिमावै ॥
निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी ।
पुत्र देहिं ता कहँ गुणखानी ॥
ध्वजा नारियल आन चढ़ावै ।
विधि समेत पूजन करवावै ॥
नित प्रति पाठ करै मन लाई ।
प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा ।
रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥
यह जन अचरज मानहु भाई ।
कृपा दृश्टि जापर होइ जाई ॥
जै जै जै जग मातु भवानी ।
कृपा करहु मोहि निज जन जानी ॥ 40