एक बार राजा विक्रमादित्य ने बेताल से पूछा, “सबसे अधिक त्यागी कौन है?”
बेताल ने कहा, “एक बार एक नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। उसके पास बहुत सारा धन-संपत्ति था। वह अपने धन-संपत्ति से बहुत ही खुश था। एक दिन, वह अपने धन-संपत्ति से घबराया और उसने सोचा कि अगर वह मर गया तो उसका धन-संपत्ति किसके पास जाएगा? उसने सोचा कि वह अपना धन-संपत्ति किसी ऐसे व्यक्ति को दे देगा जो उसका उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करे।
उसने अपने धन-संपत्ति का दान एक साधु को कर दिया। साधु ने उस धन-संपत्ति का उपयोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने में किया। व्यापारी ने साधु को धन-संपत्ति देने के बाद बहुत ही खुश महसूस किया। उसने सोचा कि उसने सबसे अच्छा काम किया है।
एक दिन, व्यापारी की मृत्यु हो गई। स्वर्ग में, व्यापारी को एक देवता ने बताया कि वह सबसे अधिक त्यागी व्यक्ति है। व्यापारी को यह सुनकर बहुत ही खुशी हुई।”
राजा विक्रमादित्य ने बेताल से कहा, “बेताल, तुमने एक बहुत ही अच्छी कहानी सुनाई है। व्यापारी ने अपने धन-संपत्ति का त्याग करके दूसरों की भलाई के लिए एक अच्छा काम किया।”
Vikram Betaal बेताल ने कहा, “राजा, त्याग का अर्थ है अपने लिए कुछ भी ना रखना। जो व्यक्ति अपने लिए कुछ भी नहीं रखता है, वह सबसे अधिक त्यागी होता है।”
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि त्याग एक महान गुण है। जो व्यक्ति त्याग करता है, वह दूसरों की भलाई के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करता है।