कई असफलताओं के बाद राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल को योगी के पास ले जाने की कोशिश में अपनी पीठ कर लादा और चल पड़े। रास्ता काटने के लिए बेताल ने फिर से राजा को एक नई कहानी सुनानी शुरू की।एक बार राजा विक्रमादित्य ने बेताल से पूछा, “दीवान की मृत्यु कैसे हुई?”

Vikram Betaal बेताल ने कहा, “एक बार एक राज्य में यशकेतु नाम का राजा राज्य करता था। उसका सत्यमणि नाम का एक दीवान था। सत्यमणि बड़ा ही समझदार और चतुर मंत्री था। वह राजा का सारा राज-पाठ संभालता था और विलासी राजा मंत्री पर सारा भार डालकर भोग में पड़ा रहता था। राजा के भोग-विलासिता में होते अधिक खर्च की वजह से राज कोष का धन कम होने लगा। प्रजा भी राजा से नाराज रहने लगी। जब मंत्री को इस बारे में पता चला कि सब राजा की निंदा कर रहे हैं, तो उसे बहुत दुःख हुआ।

एक दिन, राजा ने मंत्री से कहा कि वह एक सुंदर राजकुमारी से शादी करना चाहता है। मंत्री ने राजा को मना किया और कहा कि यह विवाह राजा और राज्य के लिए हानिकारक होगा। राजा ने मंत्री की बात नहीं सुनी और उसने उस राजकुमारी से शादी कर ली।

राजकुमारी बहुत ही सुंदर और गुणवान थी। वह राजा से बहुत प्यार करती थी। लेकिन राजा अभी भी भोग-विलास में डूबा हुआ था। वह राजकुमारी के साथ समय बिताने के बजाय अपने दोस्तों और रानियों के साथ समय बिताता था।

एक दिन, मंत्री ने राजा को बताया कि राजकुमारी गर्भवती है। राजा बहुत खुश हुआ और उसने मंत्री से कहा कि वह राजकुमारी की देखभाल करे। मंत्री ने राजकुमारी की बहुत अच्छी देखभाल की।

समय के साथ राजकुमारी ने एक पुत्र को जन्म दिया। राजकुमार बहुत ही सुंदर और स्वस्थ था। राजा और राजकुमारी बहुत खुश थे।

एक दिन, राजा को पता चला कि मंत्री ने उस राजकुमारी से शादी करने से राजा को मना किया था। राजा को बहुत गुस्सा आया और उसने मंत्री को मौत की सजा सुनाई।

Vikram Betaal मंत्री को मौत की सजा सुनकर बहुत दुःख हुआ। उसने सोचा कि अगर उसने राजा को उस राजकुमारी से शादी करने से नहीं रोका होता, तो राजा अभी भी भोग-विलास में नहीं डूबता और राजा और राज्य दोनों खुश होते।

मंत्री ने राजा से कहा, “महाराज, आपने मुझे बहुत ही गलत सजा सुनाई है। मैंने तो आपके लिए ही यह सब किया था। मैंने सोचा कि अगर मैं आप को उस राजकुमारी से शादी करने से नहीं रोकता, तो आप अभी भी भोग-विलास में डूबे रहते और राजा और राज्य दोनों बर्बाद हो जाते।”

राजा ने मंत्री की बात नहीं सुनी और उसने मंत्री को मार डाला।

मंत्री की मृत्यु से राजा को बहुत पछतावा हुआ। वह समझ गया कि मंत्री ने उसके लिए ही यह सब किया था। लेकिन अब सब कुछ बहुत देर हो चुकी थी।”

राजा विक्रमादित्य ने कहा, “बेताल, तुमने एक बहुत ही अच्छी कहानी सुनाई है। मंत्री ने राजा के लिए बहुत कुछ किया था, लेकिन राजा ने उसकी बात नहीं सुनी और उसे मार डाला। यह बहुत ही दुखद है।”

इसके बाद राजा ने उससे पूछा  बेताल ने कहा, “राजा, कभी-कभी लोग अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की बात नहीं सुनते। इससे बहुत नुकसान होता है।”

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें दूसरों की बात हमेशा ध्यान से सुननी चाहिए। हमें दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

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