Vikram Betaal एक बार की बात है, चित्रकूट नगर में चन्द्रवलोक नाम का राजा राज करता था। वह बहुत ही शौकीन शिकारी था। एक दिन, वो जंगल में शिकार करने निकला। घूमते-घूमते वो रास्ता भटक गया और अकेला रह गया। थककर वो एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा। आराम करते-करते वो सो गया।
सोते-सोते उसे एक खूबसूरत कन्या दिखाई दी। कन्या ने राजा से कहा, “तुमने मेरे पति को मार डाला है। मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी।”
राजा ने कहा, “मैंने किसी को नहीं मारा।”
कन्या ने कहा, “तुमने मेरे पति को मार डाला है। तुम उसकी बलि के लिए तैयार हो जाओ।”
राजा को बहुत डर लगा। उसने सोचा कि अब उसकी मृत्यु निश्चित है। तभी, उसने एक बालक को देखा। बालक बहुत ही सुंदर था। राजा ने बालक से कहा, “तुम मुझे बचा सकते हो।”
बालक ने कहा, “मैं तुम्हें बचा सकता हूं। लेकिन इसके लिए तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी।”
राजा ने कहा, “मैं तुम्हारी कोई भी शर्त मानने को तैयार हूं।”
बालक ने कहा, “तुम्हें मुझे अपनी जगह पर बलि देनी होगी।”
राजा को बहुत दुख हुआ। लेकिन उसने बालक की बात मान ली। राजा ने बालक को अपनी जगह पर खड़ा कर दिया और खुद भाग गया।
राक्षसी कन्या ने बालक को देखा तो बहुत खुश हुई। उसने बालक को मार डाला और फिर अपने पति के पास चली गई।
Vikram Betaal बेताल का सवाल
बेताल ने विक्रमादित्य से पूछा, “राजन, बताओ कि बालक क्यों हंसा?”
विक्रमादित्य ने कहा, “बालक इसलिए हंसा क्योंकि उसने राजा को बचाया। वह जानता था कि राजा एक अच्छा इंसान है। वह नहीं चाहता था कि राजा की मृत्यु हो।”
बेताल ने कहा, “तुमने सही कहा। बालक ने राजा को बचाया और इसलिए वह हंसा।”
बेताल ने विक्रमादित्य को छोड़ दिया और पेड़ पर लटक गया।
विचार
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अच्छे लोग हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। वे दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं।