Mahavir Chalisa:श्री महावीर चालीसा: जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र
Mahavir Chalisa:श्री महावीर चालीसा जैन धर्म का एक प्रसिद्ध और भक्तिमय स्तोत्र है जो भगवान महावीर को समर्पित है। यह चालीसा भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
Mahavir Chalisa:चालीसा का महत्व
- आध्यात्मिक जागरण: यह चालीसा भक्तों में आध्यात्मिक जागरण लाती है और उन्हें अपने भीतर के देवत्व को पहचानने में मदद करती है।
- मन की शांति: नियमित रूप से चालीसा का पाठ करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है।
- पापों का नाश: यह माना जाता है कि चालीसा का पाठ करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- मोक्ष का मार्ग: यह चालीसा भक्तों को मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
Mahavir Chalisa:चालीसा का पाठ कैसे करें?
- शुद्ध मन से: चालीसा को शुद्ध मन से और एकाग्रचित होकर पढ़ना चाहिए।
- नियमित रूप से: नियमित रूप से चालीसा का पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।
- भावनाओं के साथ: चालीसा को भावनाओं के साथ पढ़ना चाहिए।
- पूजा के समय: चालीसा को पूजा के समय पढ़ना अधिक प्रभावी होता है।
निष्कर्ष
श्री Mahavir Chalisa महावीर चालीसा एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति और आशीर्वाद प्रदान करता है। यदि आप जैन धर्म के अनुयायी हैं, तो आपको नियमित रूप से इस चालीसा का पाठ करना चाहिए।
Shri Mahavir Chalisa:श्री महावीर चालीसा
श्री महावीर चालीसा एक भक्ति गीत है जो श्री Mahavir Chalisa महावीर पर आधारित है।
॥ दोहा॥
शीश नवा अरिहन्त को,सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का,ले सुखकारी नाम॥
सर्व साधु और सरस्वती,जिन मन्दिर सुखकार।
महावीर भगवान को,मन-मन्दिर में धार॥
॥ चौपाई ॥
जय महावीर दयालु स्वामी।वीर प्रभु तुम जग में नामी॥
वर्धमान है नाम तुम्हारा।लगे हृदय को प्यारा प्यारा॥
शांति छवि और मोहनी मूरत।शान हँसीली सोहनी सूरत॥
तुमने वेश दिगम्बर धारा।कर्म-शत्रु भी तुम से हारा॥
क्रोध मान अरु लोभ भगाया।महा-मोह तमसे डर खाया॥
तू सर्वज्ञ सर्व का ज्ञाता।तुझको दुनिया से क्या नाता॥
तुझमें नहीं राग और द्वेश।वीर रण राग तू हितोपदेश॥
तेरा नाम जगत में सच्चा।जिसको जाने बच्चा बच्चा॥
भूत प्रेत तुम से भय खावें।व्यन्तर राक्षस सब भग जावें॥
महा व्याध मारी न सतावे।महा विकराल काल डर खावे॥
काला नाग होय फन-धारी।या हो शेर भयंकर भारी॥
ना हो कोई बचाने वाला।स्वामी तुम्हीं करो प्रतिपाला॥
अग्नि दावानल सुलग रही हो।तेज हवा से भड़क रही हो॥
नाम तुम्हारा सब दुख खोवे।आग एकदम ठण्डी होवे॥
हिंसामय था भारत सारा।तब तुमने कीना निस्तारा॥
जन्म लिया कुण्डलपुर नगरी।हुई सुखी तब प्रजा सगरी॥
सिद्धारथ जी पिता तुम्हारे।त्रिशला के आँखों के तारे॥
छोड़ सभी झंझट संसारी।स्वामी हुए बाल-ब्रह्मचारी॥
पंचम काल महा-दुखदाई।चाँदनपुर महिमा दिखलाई॥
टीले में अतिशय दिखलाया।एक गाय का दूध गिराया॥
सोच हुआ मन में ग्वाले के।पहुँचा एक फावड़ा लेके॥
सारा टीला खोद बगाया।तब तुमने दर्शन दिखलाया॥
जोधराज को दुख ने घेरा।उसने नाम जपा जब तेरा॥
ठंडा हुआ तोप का गोला।तब सब ने जयकारा बोला॥
मन्त्री ने मन्दिर बनवाया।राजा ने भी द्रव्य लगाया॥
बड़ी धर्मशाला बनवाई।तुमको लाने को ठहराई॥
तुमने तोड़ी बीसों गाड़ी।पहिया खसका नहीं अगाड़ी॥
ग्वाले ने जो हाथ लगाया।फिर तो रथ चलता ही पाया॥
पहिले दिन बैशाख वदी के।रथ जाता है तीर नदी के॥
मीना गूजर सब ही आते।नाच-कूद सब चित उमगाते॥
स्वामी तुमने प्रेम निभाया।ग्वाले का बहु मान बढ़ाया॥
हाथ लगे ग्वाले का जब ही।स्वामी रथ चलता है तब ही॥
मेरी है टूटी सी नैया।तुम बिन कोई नहीं खिवैया॥
मुझ पर स्वामी जरा कृपा कर।मैं हूँ प्रभु तुम्हारा चाकर॥
तुम से मैं अरु कछु नहीं चाहूँ।जन्म-जन्म तेरे दर्शन पाऊँ॥
चालीसे को चन्द्र बनावे।बीर प्रभु को शीश नवावे॥
॥ सोरठा ॥
नित चालीसहि बार,पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार,वर्धमान के सामने।
होय कुबेर समान,जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं सन्तान,नाम वंश जग में चले।