Shri Lakshmi Chalisa:श्री लक्ष्मी चालीसा: धन और समृद्धि की देवी का स्तुति गान
Shri Lakshmi Chalisa:श्री लक्ष्मी चालीसा माँ लक्ष्मी, धन की देवी की स्तुति में गाया जाने वाला एक प्रसिद्ध चालीसा है। यह चालीसा भक्तों को धन, समृद्धि, सुख और शांति प्रदान करने के लिए माना जाता है। Shri Lakshmi Chalisa माना जाता है कि नियमित रूप से इस चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं और धन की देवी की कृपा प्राप्त होती है।
Shri Lakshmi Chalisa:श्री लक्ष्मी चालीसा का महत्व
- धन और समृद्धि: यह चालीसा धन और समृद्धि प्राप्त करने का एक शक्तिशाली साधन माना जाता है।
- सुख और शांति: यह व्यक्ति के जीवन में सुख और शांति लाने में मदद करती है।
- ऋण मुक्ति: यह ऋण से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है।
- व्यापार में वृद्धि: व्यापारियों के लिए यह व्यापार में वृद्धि और लाभ लाने का एक साधन है।
Shri Lakshmi Chalisa:श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ कैसे करें?
- शुद्ध मन से: चालीसा का पाठ करते समय मन को शुद्ध रखना चाहिए और माँ लक्ष्मी पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।
- नियमित पाठ: नियमित रूप से पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।
- विधि-विधान: कुछ भक्त विशेष विधि-विधानों के साथ चालीसा का पाठ करते हैं, Shri Lakshmi Chalisa जैसे कि दीपक जलाना, फूल चढ़ाना आदि।
Shri Lakshmi Chalisa:श्री लक्ष्मी चालीसा के कुछ लाभ
- धन वृद्धि: यह धन में वृद्धि करती है।
- सुख-समृद्धि: यह सुख और समृद्धि लाती है।
- कष्ट निवारण: यह कष्टों को दूर करती है।
- मन की शांति: यह मन को शांत करती है।
- श्रद्धा: चालीसा का पाठ करते समय श्रद्धा और विश्वास होना बहुत जरूरी है।
- अहंकार से बचें: चालीसा के प्रभाव के बारे में अहंकार नहीं करना चाहिए।
- अन्य साधनाएं: चालीसा के साथ-साथ अन्य साधनाएं भी करनी चाहिए, जैसे कि ध्यान और सेवा।
Shri Lakshmi Chalisa:क्या आप श्री लक्ष्मी चालीसा के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं? जैसे कि इसके कुछ विशेष मंत्र या माँ लक्ष्मी के विभिन्न रूप?
Shri Lakshmi Chalisa:श्री लक्ष्मी चालीसा
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा,
करो हृदय में वास ।
मनोकामना सिद्घ करि,
परुवहु मेरी आस ॥
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास,
हाथ जोड़ विनती करुं ।
सब विधि करौ सुवास,
जय जननि जगदंबिका ॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही ।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी ।
सब विधि पुरवहु आस हमारी ॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा ।
सबकी तुम ही हो अवलम्बा ॥
तुम ही हो सब घट घट वासी ।
विनती यही हमारी खासी ॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी ।
दीनन की तुम हो हितकारी ॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी ।
कृपा करौ जग जननि भवानी ॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी ।
सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी ।
जगजननी विनती सुन मोरी ॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता ।
संकट हरो हमारी माता ॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो ।
चौदह रत्न सिन्धु में पायो ॥ 10
चौदह रत्न में तुम सुखरासी ।
सेवा कियो प्रभु बनि दासी ॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा ।
रुप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा ।
लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं ।
सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी ।
विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी ।
कहं लौ महिमा कहौं बखानी ॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई ।
मन इच्छित वांछित फल पाई ॥
तजि छल कपट और चतुराई ।
पूजहिं विविध भांति मनलाई ॥
और हाल मैं कहौं बुझाई ।
जो यह पाठ करै मन लाई ॥
ताको कोई कष्ट नोई ।
मन इच्छित पावै फल सोई ॥ 20
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि ।
त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी ॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै ।
ध्यान लगाकर सुनै सुनावै ॥
ताकौ कोई न रोग सतावै ।
पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना ।
अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना ॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै ।
शंका दिल में कभी न लावै ॥
पाठ करावै दिन चालीसा ।
ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै ।
कमी नहीं काहू की आवै ॥
बारह मास करै जो पूजा ।
तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही ।
उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं ॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई ।
लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥ 30
करि विश्वास करै व्रत नेमा ।
होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा ॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी ।
सब में व्यापित हो गुण खानी ॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं ।
तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं ॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै ।
संकट काटि भक्ति मोहि दीजै ॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी ।
दर्शन दजै दशा निहारी ॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी ।
तुमहि अछत दुःख सहते भारी ॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में ।
सब जानत हो अपने मन में ॥
रुप चतुर्भुज करके धारण ।
कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई ।
ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई ॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी,
हरो वेगि सब त्रास ।
जयति जयति जय लक्ष्मी,
करो शत्रु को नाश ॥
रामदास धरि ध्यान नित,
विनय करत कर जोर ।
मातु लक्ष्मी दास पर,
करहु दया की कोर ॥