Shri Krishna Chalisa:श्री कृष्ण चालीसा: भक्ति का अमृत
श्री कृष्ण चालीसा भगवान श्री कृष्ण की स्तुति में लिखा गया एक भक्ति गीत है। यह चालीसा भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपों, लीलाओं और गुणों का वर्णन करती है। इसे पढ़ने या सुनने से मन शांत होता है और भक्ति भाव जागृत होता है।
Shri Krishna Chalisa:श्री कृष्ण चालीसा का महत्व
- धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- आध्यात्मिक लाभ: यह चालीसा मन को शांत करती है और तनाव को कम करती है। यह व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है।
- भावनात्मक लाभ: श्री कृष्ण चालीसा को पढ़ने से भक्तों में भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और श्रद्धा बढ़ती है।
Shri Krishna Chalisa:श्री कृष्ण चालीसा के कुछ प्रमुख बिंदु
- विभिन्न रूपों का वर्णन: चालीसा में भगवान कृष्ण के बाल रूप, युवा रूप और वृद्ध रूप का वर्णन किया गया है।
- लीलाओं का वर्णन: गोवर्धन पर्वत उठाने, राक्षसों का वध करने और गीता का उपदेश देने जैसी उनकी लीलाओं का वर्णन किया गया है।
- गुणों का वर्णन: भगवान कृष्ण के दयालु, करुणामय, ज्ञानी और शक्तिशाली होने का वर्णन किया गया है।
Shri Krishna Chalisa:श्री कृष्ण चालीसा का पाठ कैसे करें?
Shri Krishna Chalisa:श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करते समय मन को शांत रखें और भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन हो जाएं। आप इसे सुबह या शाम के समय कर सकते हैं।
यहां एक उदाहरण दिया गया है:
- शांति से बैठें: एक शांत जगह पर बैठें और अपनी आंखें बंद करें।
- भगवान कृष्ण का ध्यान करें: भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर उनका ध्यान करें।
- चालीसा का पाठ करें: धीरे-धीरे और ध्यान से श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करें।
- भावनाओं को महसूस करें: पाठ करते समय अपनी भावनाओं को महसूस करें।
Shri Krishna Chalisa:श्री कृष्ण चालीसा
॥ दोहा॥
बंशी शोभित कर मधुर,
नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बफल,
नयन कमल अभिराम ॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख,
पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि,
कृष्णचन्द्र महाराज ॥
॥ चौपाई ॥
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन ।
जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥
जय नट-नागर नाग नथैया ।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥
वंशी मधुर अधर धरी तेरी ।
होवे पूर्ण मनोरथ मेरो ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो ।
आज लाज भारत की राखो ॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥
रंजित राजिव नयन विशाला ।
मोर मुकुट वैजयंती माला ॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे ।
कटि किंकणी काछन काछे ॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।
छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥10
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले ।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो ।
अका बका कागासुर मारयो ॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला ।
भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला ॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई ।
मसूर धार वारि वर्षाई ॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो ।
गोवर्धन नखधारि बचायो ॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।
मुख महं चौदह भुवन दिखाई ॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें ॥
करि गोपिन संग रास विलासा ।
सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥
केतिक महा असुर संहारयो ।
कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ॥20
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई ।
उग्रसेन कहं राज दिलाई ॥
महि से मृतक छहों सुत लायो ।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।
लाये षट दश सहसकुमारी ॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥
असुर बकासुर आदिक मारयो ।
भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो ।
तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो ॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे ।
दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥
लखि प्रेम की महिमा भारी ।
ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥
भारत के पारथ रथ हांके ।
लिए चक्र कर नहिं बल ताके ॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये ।
भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये ॥30
मीरा थी ऐसी मतवाली ।
विष पी गई बजाकर ताली ॥
राना भेजा सांप पिटारी ।
शालिग्राम बने बनवारी ॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो ।
उर ते संशय सकल मिटायो ॥
तब शत निन्दा करी तत्काला ।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई ।
दीनानाथ लाज अब जाई ॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला ।
बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥
अस नाथ के नाथ कन्हैया ।
डूबत भंवर बचावत नैया ॥
सुन्दरदास आस उर धारी ।
दयादृष्टि कीजै बनवारी ॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो ।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै ।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥40
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का,
पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,
लहै पदारथ चारि॥