Rawan Dwara shree ram रावण द्वारा श्रीराम के शांति प्रस्ताव को अस्वीकार करना । राम अंगद संवाद। युद्ध का आरंभ (रामायण की संपूर्ण कहानी)

रावण को शांति प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक रात का समय देकर युवराज अंगद वापस आ जाते हैं

युवराज अंगद रावण के दरबार में शांति प्रस्ताव लेकर जाते हैं। वे रावण को बताते हैं कि श्री राम चाहते हैं कि सीता को वापस कर दिया जाए और युद्ध से बचा जा सके। रावण अंगद की बात सुनकर हंसता है और कहता है कि वह सीता को कभी नहीं छोड़ेगा।

रावण के दरबार में हुई सभी गतिविधियों के कारण लंका के सभी प्रियजन सोचने पर मजबूर हो जाते हैं

रावण के दरबार में हुई सभी गतिविधियों के कारण लंका के सभी प्रियजन सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि श्री राम का एक दूत हनुमान पूरी लंका को जला कर चला गया था और दूसरा दूत अंगद सभी योद्धाओं को चुनौती देकर चला गया था, लेकिन कोई उसकी चुनौती का सामना नहीं कर पाया और वह पूरी सभा को लज्जित करके चला गया।

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लंका के प्रियजनों को चिंता होती है

लंका के प्रियजनों को चिंता होती है कि श्री राम की सेना बहुत शक्तिशाली है और रावण को पराजित करना बहुत मुश्किल होगा। वे रावण को समझाते हैं कि वह सीता को वापस कर दे और युद्ध से बच जाए।

रावण हार मानने को तैयार नहीं होता

लेकिन रावण हार मानने को तैयार नहीं होता। वह कहता है कि वह सीता को कभी नहीं छोड़ेगा और वह श्री राम से युद्ध करके ही दम लेगा।

लंका में युद्ध की आशंका बढ़ जाती है

रावण के इस कथन से लंका में युद्ध की आशंका बढ़ जाती है। सभी लोग भयभीत हो जाते हैं।

लंका के प्रियजनों की चिंता का कारण

लंका के प्रियजनों की चिंता का कारण यह था कि श्री राम की सेना बहुत शक्तिशाली थी। हनुमान ने पूरी लंका को जला दिया था और अंगद ने सभी योद्धाओं को चुनौती देकर लज्जित कर दिया था। इससे स्पष्ट था कि श्री राम की सेना रावण की सेना से कहीं अधिक शक्तिशाली थी।

Rawan रावण के हार मानने से इंकार

रावण हार मानने को तैयार नहीं था। वह सीता को कभी नहीं छोड़ना चाहता था। वह जानता था कि श्री राम से युद्ध करना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था।

लंका में युद्ध की आशंका

रावण के हार मानने से इंकार करने से लंका में युद्ध की आशंका बढ़ गई। सभी लोग भयभीत थे। वे नहीं जानते थे कि युद्ध में क्या होगा।

नाना माल्यवान द्वारा रावण को समझाना

इसी विचार से महाराजा रावण के नानाजी माल्यवान ने रावण को समझाने का प्रयत्न किया कि, हे दशानन,  जिनके केवल दो दूत लंका के सभी योद्धाओं का सर शर्म से झुका कर चले गए हो वह कोई साधारण मानव तो नहीं हो सकता। इसलिए मेरा मत आपको यही है कि इस युद्ध का जो मुख्य कारण आपका सीता को अपनी पत्नी बनाने हठ है, उसे त्याग दीजिए। इसी में लंका तथा असुर जाति की भलाई है । एक सफल राजा वही होता है जो को केवल अपने हित के स्थान पर अपनी प्रजा का हित सर्वोपरी रखे। साथ ही यह भी सोचने योग्य बात है कि शांति प्रस्ताव शत्रु की तरफ से आया है इसलिए तुम्हारा पलड़ा अभी भी भारी माना जाएगा यदि तुम शांति प्रस्ताव स्वीकार कर लेते हो । लेकिन अहंकार के वश में लंकेश रावण तथा उनका पराक्रमी पुत्र इंद्रजीत माल्यवान जी के परामर्श को नकार देते हैं।

Rawan रावण का उसके ससुर से संवाद (मय दानव)

वहीं दूसरी ओर रावण की पत्नी मंदोदरी अपने पति को लेकर बहुत चिंतित थी इसलिए उन्होंने अपने पिता मय दानव से रावण को समझाने का आग्रह किया। अपनी पुत्री के आग्रह पर रावण के ससुर, मय दानव,  रावण को आने वाली विपत्ति से सचेत करते हुए कहते है की, हे रावण, श्रीराम कोई साधारण मानव नहीं है स्वयं नारायण का अवतार है जोकि असुरों का अंत करने के लिए इस पृथ्वी पर आए हैं। आप यह सपष्ट देख चुके हैं कि समुद्र पर सेतु बंधन जैसे असंभव कार्य को भी उन्होंने संभव करके दिखाया है। उनका केवल एक वानर दूत हनुमान लंका को जलाकर तथा आपके पुत्र अक्षय कुमार का अंत करके चला गया। उनका एक वानर अंगद आपके सभी योद्धाओं के मस्तक अपने पैरों में झुका कर चला गया और कोई कुछ भी नहीं कर पाया। आपको सुमति देने वाला आपका छोटा भाई विभीषण आपके त्याग के कारण आपके शत्रुओं से जा मिला है। यह कोई छोटी बात नहीं है। इसीलिए अभी भी समय है हम चाहे तो स्थिति को सुधार सकते हैं। सीता का मोह त्याग कर उसे उसके पति के पास पहुंचा दीजिए तो यह आने वाला संकट टल जाएगा। अन्यथा उनका सर्वनाश होने को है। लेकिन  अपने अहंकार के कारण रावण ने उनके परामर्श को भी ठुकरा दिए । 

अंत में रावण की माता कैकसी ने भी उसे समझाने का बहुत प्रयत्न किया और कहां की तुम्हारे पिता ने भविष्यवाणी की थी कि भगवान विष्णु एक मानव का अवतार लेकर पृथ्वी पर आयेंगे तब तुम्हारे पुत्र रावण का अहंकार टूट जाएगा किंतु विभीषण के कारण असुर जाति का पूर्ण नाश होने से बच जाएगा। लेकिन अपने प्रतिष्ठा और शान के खिलाफ समझकर रावण ने अपने नाना माल्यवान, ससुर मय दानव और अपनी माताजी कैकसी के परामर्श को ठुकरा दिया।

Rawan राम अंगद संवाद । युद्ध का निश्चय 

वहीं दूसरी ओर श्रीराम अंगद की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि तुमने एक दूत के कुशल गुणों को सार्थक किया है किस तरह तुमने अपने प्रभावी संचार कौशल द्वारा रावण के सभी योद्धाओं को चुनौती दी तथा अपने स्वामी का संदेश इतने प्रभावी तरीके से उन्हें सुनाया की उनके सभी योद्धाओं को लज्जित करके अपने पैरो में उनके सर झुका दिए। यहां तक लंकापति रावण सबसे उसका मुकुट उसके मस्तक से उतारकर हमारे चरणों में ले आए। लक्ष्मण जी ने भी अंगद के इस साहसपूर्ण कार्य कि बहुत सराहना की। वही सभा में विभीषण के गुप्तचरो द्वारा दिए गए समाचार में यह पता चलता है कि रावण ने शांति प्रस्ताव तथा अपने सभी संबंधियों के परामर्श को मानने से इनकार कर दिया है और यह निश्चित है कि कल युद्ध अवश्य होगा।

युद्ध का आरंभ। रामायण युद्ध का आरंभ

अगले दिन प्रातः श्री राम और लक्ष्मण सूर्य देव को प्रणाम करके उन्हें जल अर्पण करते हैं। तभी हनुमान द्वारा युद्ध का शंखनाद कर दिया जाता है । श्री राम की वानर सेना हर हर महादेव का नारा लगाते हुए जयघोष करती हुई लंका पर चढ़ाई कर देते हैं। सबसे पहले लंका के पूर्व के द्वार जोकि लंका सबसे मुख्य द्वार है उसपर आक्रमण किया जाता है। अभी तक लंका की तरफ से कोई लंका की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं की गई थी। इसीलिए लंका के सभी द्वार अभी भी बंद थे जिन्हें तोड़ने के लिए वानर सैनिक बड़े-बड़े लकड़ी के टुकड़े को साथ ले जाकर उन पर टक्कर मारते थे। कुछ वानर सेना की बड़े-बड़े पत्थर से लंका के दुर्ग पर मौजूद सैनिकों पर वार कर रहे थे तथा लंका के भीतरी भागों में भी पत्थरों से हमला कर रहे थे। यह समाचार बाढ़ का लंका के राजा रावण ने भी अपनी सेना को श्री राम की सेना का जवाब देने के लिए प्रतिक्रमण करने का आदेश दिया। लंका के सभी द्वार खोल दिए जाते हैं और लंका की सेना बाहर निकल कर ल राम की सेना के साथ प्रतिक्रमण करने लगती है।

प्रथम दिन के युद्ध में लंका की सेना में वज्रमुष्टि नमक असुर योद्धा आता है। जोकि वानर सैनिकों को रोंदते हुए आगे बड़ रहा था। वही दूसरी तरफ लंका की सेना में रावण का एक पुत्र प्रहस्थ युद्ध  के लिए आया था तथा साथ में लंका की सेना का सेनानायक दुर्मुख भी प्रथम दिन के युद्ध के लिए चुना गया था।

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