Ratha Saptami 2025 Date:माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर वसंत पंचमी मनाई जाती है। इस दिन मां शारदे की पूजा की जाती है। इसके दो दिन बाद सूर्य देव को समर्पित रथ सप्तमी (Ratha Saptami 2025 Date) मनाई जाती है। वहीं रथ सप्तमी के अगले दिन भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। भीष्म अष्टमी पर पितरों का तर्पण और पिंडदान भी किया जाता है।
Ratha Saptami 2025 Date: हर वर्ष माघ माह में रथ सप्तमी मनाई जाती है। यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन आत्मा के कारक सूर्य देव की पूजा की जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर सूर्य देव का अवतरण हुआ है। इस शुभ अवसर पर रथ सप्तमी मनाई जाती है।
Ratha Saptami 2025: हिंदू धर्म में Ratha Saptami 2025 रथ सप्तमी के दिन सूर्यदेव की पूजा-उपासना का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक को सुख-समृद्धि और खुशहाली का वरदान प्राप्त होता है और जीवन सुखमय रहता है।
क्यों खास है रथ सप्तमी?
रथ सप्तमी का दिन सूर्यदेव की पूजा-आराधना के लिए खास होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है और सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान प्राप्त होता है। रथ सप्तमी के दिन सूर्यदेव की पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही शारीरिक और मानसिक कष्टों से छुटकारा मिलता है।
रथ सप्तमी शुभ मुहूर्त (Ratha Saptami Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि की शुरुआत 04 फरवरी को सुबह 04 बजकर 37 मिनट पर होगी और अगले दिन 05 फरवरी को देर रात 02 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में सूर्योदय होने के बाद तिथि की गणना की जाती है। अत: 04 फरवरी को रथ सप्तमी मनाई जाएगी। रथ सप्तमी के दिन स्नान का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 23 मिनट से लेकर 07 बजकर 08 मिनट तक है।
रथ सप्तमी शुभ योग (Ratha Saptami Shubh Yoga)
ज्योतिषियों की मानें तो रथ सप्तमी तिथि पर शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का भी संयोग है। इन योग में सूर्य देव की पूजा-उपासना करने से साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होगी। साथ ही शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
रथ सप्तमी 2025 :पूजाविधि Ratha Saptami 2025 puja vidhi
रथ सप्तमी के दिन सुबह जल्दी उठें।
ब्रह्म मुहूर्त में पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
पीले रंग के वस्त्र धारण करें और सूर्यदेव की पूजा शुरू करें
सबसे पहले तांबे के लोटे जलभर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
सूर्यदेव की विधि-विधान से पूजा करें।
सूर्य मंत्र और सूर्य चालीसा का पाठ करें।
इसके बाद सूर्यदेव की आरती उतारें।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य है और सटीक है। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।