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Maa Tara Devi Stotram

Maa Tara Devi Stotram:मातर्नीलसरस्वति प्रणमतां सौभाग्यसम्पत्प्रदे
प्रत्यालीढपदस्थिते शवहृदि स्मेराननाम्भोरुहे ।
फुल्लेन्दीवरलोचनत्रययुते कर्तीकपालोत्पले खड्गं
चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥ १ ॥

वाचामीश्वरि भक्तकल्पलतिके सर्वार्थसिद्धीश्वरि
सद्यः प्राकृतगद्यपद्यरचनासर्वार्थसिद्धिप्रदे ।
नीलेन्दीवरलोचनत्रययुते कारुण्यवारांनिधे
सौभाग्यामृतवर्षणेन कृपया सिञ्च त्वमस्मादृशम् ॥ २ ॥

खर्वे गर्वसमहपूरिततनो सर्पादिभूषोज्ज्वले
व्याघ्रत्वक्परिवीतसुन्दरकटिव्याधूतघण्टाङ्किते ।
सद्यःकृत्तगलद्रजःपरिलसन्मुण्डद्वयीमूर्धज
ग्रन्थिश्रेणिनृमुण्डदामललिते भीमे भयं नाशय ॥ ३ ॥

मायानङ्गविकाररूपललनाबिन्द्वर्धचन्द्रात्मिकेहुंफट्कारमयि
त्वमेव शरणं मन्त्रात्मिके मादृशः ।
मूर्तिस्ते जननि त्रिधामघटिता स्थूलातिसूक्ष्मा परावेदनां
नहि गोचरा कथमपि प्राप्तां नु तामाश्रये ॥ ४ ॥

त्वत्पादाम्बुजसेवया सुकृतिनो गच्छन्ति सायुज्यतांतस्य
श्रीपरमेश्वरी त्रिनयनब्रह्मादिसौम्यात्मनः ।
संसाराम्बुधिमज्जने पटुतनून् देवेन्द्रमुख्यान्
सुरान्मातस्त्वत्पदसेवने हि विमुखान् को मन्दधीः सेवते ॥ ५ ॥

Maa Tara Devi Stotram
Maa Tara Devi Stotram

मातस्त्वत्पदपङ्कजद्वयरजोमुद्राङ्ककोटीरिणस्ते
देवासुरसंगरे विजयिनो निःशङ्कमङ्के गताः ।
देवोऽहं भुवने न मे सम इति स्पर्द्धां वहन्तः
परेतत्तुल्या नियतं तथा चिरममी नाशं व्रजन्ति स्वयम् ॥ ६ ॥

त्वन्नामस्मरणात् पलायनपरा द्रष्टुं च शक्ता न ते
भूतप्रेतपिशाचराक्षसगणा यक्षाश्च नागाधिपाः ।
दैत्या दानवपुङ्गवाश्च खचरा व्याघ्रादिका जन्तवोडाकिन्यः
कुपितान्तकाश्च मनुजा मातः क्षणं भूतले ॥ ७ ॥

लक्ष्मीः सिद्धगणाश्च पादुकमुखाः सिद्धास्तथा
वारिणांस्तम्भश्चापि रणाङ्गणे गजघटास्तम्भस्तथा मोहनम् ।
मातस्त्वत्पदसेवया खलु नृणां सिद्ध्यन्ति ते ते गुणाः
कान्तिः कान्ततरा भवेच्च महती मूढोऽपि वाचस्पतिः ॥ ८ ॥

ताराष्टकमिदं रम्यं भक्तिमान् यः पठेन्नरः ।
प्रातर्मध्याह्नकाले च सायाह्ने नियतः शुचिः ॥ ९ ॥

लभते कवितां दिव्यां सर्वशास्त्रार्थविद् भवेत् ।
लक्ष्मीमनश्वरां प्राप्य भुक्त्वा भोगान् यथेप्सितान् ॥ १० ॥

कीर्ति कान्तिं च नैरुज्यं सर्वेषां प्रियतां व्रजेत् ।
विख्यातिं चैव लोकेषु प्राप्यान्ते मोक्षमाप्नुयात् ॥ ११ ॥

।। इति माँ तारा स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।

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