Kalkistava

Kalkistava:कल्किस्तव भगवान विष्णु के अवतार कल्कि की स्तुति के लिए एक दिव्य ग्रंथ है। यह ग्रंथ भगवान कल्कि के गुणों, उनकी महिमा, और कलियुग में उनके अवतरण के महत्व का वर्णन करता है। इसका पाठ कलियुग के दोषों से मुक्ति, धर्म की पुनः स्थापना, और आध्यात्मिक जागृति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।

कल्किस्तव Kalkistava का महत्व

  1. धार्मिक और आध्यात्मिक जागरण:
    कल्कि भगवान धर्म की पुनः स्थापना और अधर्म के नाश के लिए प्रकट होते हैं। कल्किस्तव उनके इस महान कार्य की स्तुति करता है।
  2. कलियुग के दोषों से रक्षा:
    यह स्तव भगवान की कृपा प्राप्त करने और कलियुग के दोषों से मुक्ति पाने का एक अद्वितीय साधन है।
  3. भक्तों के लिए प्रेरणा:
    कल्कि भगवान की स्तुति से भक्तों में साहस, शक्ति और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।

Kalkistava ka pat:कल्किस्तव का पाठ

कल्किस्तव का पाठ प्रातः काल और सांयकाल में शुद्ध मन से करना चाहिए।
इससे सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक बल की प्राप्ति होती है।

क्या आप इससे जुड़ी कोई और जानकारी या विस्तार चाहते हैं?

Kalkistava (कल्किस्तवः)

॥ कल्किस्तवः अथवा दशावतारस्तवः ॥

श्रीगणेशाय नमः ।

राजान ऊचुः ।

गद्यानि ।

जय जय निजमायया कल्पिताशेषविशेषकल्पनापरिणामजलाप्लुतलोकत्रयोपकारणमाकलय

मनुनिशम्य पूरितमविजनाविजनाविर्भूतमहामीनशरीर त्वं निजकृतधर्मसेतुसंरक्षण कृतावतारः ॥ १॥

पुनरिह जलधिमथनादृतदेवदानवगणानां

मन्दराचलानयनव्याकुलितानां साहाय्येनादृतचित्तः ।

पर्वतोद्धरणामृतप्राशनरचनावतारः कूर्माकारः प्रसीद

परेश त्वं दीननृपाणाम् ॥ २॥

पुनरिह दितिजबलपरिलंघितवासवसूदनादृत

जितभुवनपराक्रमहिरण्याक्षनिधन

पृथिव्युद्धरणसङ्कल्पाभिनिवेशेन धृतकोलावतार पाहि नः ॥ ३॥

पुनरिह त्रिभुवनजयिनो महाबलपराक्रमस्य

हिरण्यकश्यपोरर्दितानां देववराणां भयभीतानां

कल्याणाय दितिसुतवधप्रेप्सुर्ब्रह्मणो वरदानादवध्यस्त न

शस्त्रास्त्रारात्रिदिवास्वर्गमर्त्यपातालतले

देवगन्धर्वकिन्नरनरनागैरिति विचिन्त्य नरहरिरूपेण

नखाग्रभिन्नोरुं दष्टदन्तच्छदं त्यक्तासुं कृतवानसि ॥ ४॥

पुनरिह त्रिजगज्जयिनो बलेः सत्रे शक्रानुजो बटुवामनो

दैत्यसंमोहनाय त्रिपदभूमियाञ्चाच्छलेन

विश्वकायस्तदुत्सृष्टजलसंस्पर्शविवृद्धमनोऽभिलाषस्त्वं

भूतले बलेर्दौवारिकत्वमङ्गीकृतमुचितं दानफलम् ॥ ५॥

पुनरिह हैहयादिनृपाणाममितबलपराक्रमाणां

नानामदोल्लंघितमर्यादावर्त्मनां निधनाय भृगुवंशजो

जामदग्न्यः पितृहोमधेनुहरणप्रवृद्धमन्युवशात्

त्रिःसप्तकृत्वो निःक्षत्रियां पृथिवीं कृतवानसि

परशुरामावतारः ॥ ६॥

पुनरिह पुलस्त्यवंशावतंसस्य विश्रवसः पुत्रस्य

निशाचरस्य रावणस्य लोकत्रयतापनस्य निधनमुररीकृत्य

रविकुलजातदशरथात्मजो विश्वामित्रादस्त्राण्युपलभ्य वने

सीताहरणवशात्प्रवृद्धमन्युनाऽम्बुधिंवानरैर्निबध्य

सगणं दशकन्धरं हतवानसि रामावतारः ॥ ७॥

पुनरिह यदुकुलजलधिकलानिधिः

सकलसुरगणसेवितपादारविन्दद्वन्द्वो

विविधदानवदैत्यदलनलोकत्रयदुरिततापनो वसुदेवात्मजो

कृष्णावतारो बलभद्रस्त्वमसि ॥ ८॥

पुनरिह विधिकृतवेदधर्मानुष्ठानविहितनानादर्शनसंघृणः

संसारकर्मत्यागविधिना ब्रह्माभासविलासचातुरीं

प्रकृतिविमाननामसम्पादयन् बुद्धावतारस्त्वमसि ॥ ९॥

अधुना कलिकुलनाशावतारो बौद्धपाषण्डम्लेंच्छादीनां च

वेदधर्मसेतुपरिपालनाय कृतावतारः कल्किरूपेणास्मान्

स्त्रीत्वनिरयादुद्धृतवानसि तवानुकम्पां किमिह कथयाम् ॥ १०॥

क्व ते ब्रह्मादीनामविजितविलासावतरणं क्व नः

कामवामाकलितमृगतृष्णार्तमनसाम् सुदुष्प्राप्यं

युष्मच्चरणजलजालोकनमिदं कृपापारावारः

प्रमुदितदृशाऽऽश्वासय निजान् ॥ ११॥

इति श्रीकल्किपुराणेऽनुभागवते भविष्ये द्वितीयांशे

नृपकृतकल्किस्तव सम्पूर्णः ॥

कल्किस्तव: विशेषताएं

कल्किस्तव: का पाठ करने साथ यदि विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा और नारायण अष्टकम का पाठ करते है, तो इस स्तोत्र का बहुत लाभ मिलता है। इस स्तोत्र का पाठ करने के साथ लक्ष्मी विष्णु मूर्ति की पूजा करते है तो साधक के वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है। इस स्तोत्र का पाठ करते समय विष्णु कवच धारण करते है, तो साधक के जीवन में नकारात्मक शक्तियों का विनाश होने लगते है।

Kalkistava

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