Kaal Bhairav Tandav Stotram

Kali Hridaya Stotra:काली हृदय स्तोत्र : काली हृदय स्तोत्र का पाठ करने से पुत्र हीन, दरिद्र को धन की प्राप्ति होती है। वह धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष का रक्षक बनता है तथा दूसरों को वर देता है। इसे देखकर संसार मोहित हो जाता है। Kali Hridaya Stotra क्रोध उससे दूर हो जाता है, वह गंगा तीर्थ राशि तथा अग्निस्तोमधि यज्ञ का फल भोगने वाला होता है। उसके सभी शत्रु स्वतः ही उसके दास बन जाते हैं, Kali Hridaya Stotra उसके दर्शन मात्र से सभी पाप ग्रह, भूत प्रेत आदि मिट जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असंभव नहीं है। महाकाली की कृपा से उसके सभी कार्य संकल्प मात्र से ही पूर्ण हो जाते हैं।

Kali Hridaya Stotra राज्य संबंधी समस्याओं या मुकदमेबाजी के मामलों में लोगों को लाभ मिलता है।Kali Hridaya Stotra लगातार होने वाली बीमारियों विशेषकर हड्डियों और आंखों से संबंधित बीमारियों में भी काली हृदय स्तोत्र लाभकारी है। पिता से बेहतर संबंधों के लिए भी आप काली हृदय स्तोत्र का जाप कर सकते हैं। Kali Hridaya Stotra करियर में सफलता पाने के लिए इसका जाप करना लाभकारी होता है।

Kali Hridaya Stotra प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी करने वालों के लिए काली हृदय स्तोत्र बहुत लाभकारी है। सूर्य के समान शक्ति प्राप्त करने, मुकदमे और युद्ध में विजय पाने के लिए यह बहुत लाभकारी है। सूर्य से संबंधित समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए भी काली हृदय स्तोत्र लाभकारी है। काली हृदय स्तोत्र के कुछ नियम हैं

जिनका पालन करना चाहिए। Kali Hridaya Stotra काली हृदय स्तोत्र के लाभ: काली हृदय स्तोत्र के निरंतर पाठ से पराक्रम, दुर्भाग्य, ब्रह्महत्या का पाप, दोष और दरिद्रता का नाश होता है। मानस के प्रभाव से तीर्थ यात्रा का फल प्राप्त होता है Kali Hridaya Stotra और यदि पाठक मूर्ख भी हो तो वह ध्यानी होता है। काली हृदय स्तोत्र अत्यंत गोपनीय है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति काली हृदय स्तोत्र का जाप करता है, Kali Hridaya Stotra उसे पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। उसे धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति होती है और Kali Hridaya Stotra वह दूसरों को वरदान देने वाला भी बन जाता है।

पूरी दुनिया उसकी ओर आकर्षित हो जाती है। Kali Hridaya Stotra उसके सभी शत्रु उसके दास बन जाते हैं। इस पूरी दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वह प्राप्त न कर सके। माँ काली की कृपा से उसके सभी कार्य केवल विचार मात्र से ही पूरे हो जाते हैं। Kali Hridaya Stotra इस स्तोत्र का पाठ किसे करना चाहिए
Kali Hridaya Stotra जिन व्यक्तियों के जीवन में बहुत अधिक पाप और अशुभ कर्म हैं, उन्हें नियमित रूप से काली हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

महाकौतूहल दक्षिणकाली ह्रदय

महाकौतूहल दक्षिणकाली ह्रदय स्तोत्रम्
महाकौतूहल दक्षिणकाली ह्रदय स्तोत्रम्

दक्षिण काली के इस स्तोत्र के उचयिता स्वयं महाकाल हैं । Kali Hridaya Stotra एक बार महाकाल ने प्रजापिता ब्रह्मा को दंडित करने के लिए उनका शीश काट डाल था । इस कृत्य के कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा था । इस दोष के निवारणार्थ ही उन्होंने इस स्तोत्र की रचना की थी । जो मनुष्य देवी पूजन के बाद इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, वह ब्रह्महत्या दोष से मुक्त हो जाता है । संकटकाल में इसका पाठ करने से पाठकर्ता के सभी कष्ट दूर होते हैं ।

महाकालोवाच:

महाकौतूहलं स्तोत्रं हृदयाख्यं महोत्तमम् ।
श्रृणु प्रिये महागोप्यं दक्षिणायः श्रृणोपितम् ॥
अवाच्येमपि वक्ष्यामि तव प्रीत्या प्रकाशितं ।
अन्येभ्यः कुरु गोप्यं च सत्यं सत्यं च शैलजे ॥

भावार्थः महाकाल बोले, हे प्रिये! अति गोपनीय, चमत्कारी काली ह्रदय स्तोत्र का तुम श्रवण करो । दक्षिणदेवी ने अब तक इसे गुप्त रखा था । इस स्तोत्र को केवल तुम्हारे कारण मैं कह रहा हूं । हे शैलकुमारी ! तुम इसे उजागर मत करना ।

देव्युवाच:

कस्मिन् युगे समुत्पन्नं केन स्तोत्रं कृतं पुरा ।
तत्सर्वं कथ्यतां शंभो दयानिधि महेश्वरः ॥

भावार्थः देवी ने पूछा, हे प्रभो ! इस स्तोत्र की रचना किस काल में और किसके द्वारा हुई? वह सब कृपया मुझे बताएं ।

महाकालोवाच:

पुरा प्रजापते शीर्षच्छेदनं च कृतावहन् ।

ब्रह्महत्या कृतेः पापैर्भैंरवं च ममागतम् ॥

ब्रह्महत्या विनाशाय कृतं स्तोत्रं मयाप्रिये ।

कृत्या विनाशकं स्तोत्रं ब्रह्महत्यापहारकम् ॥

भावार्थः महाकाल बोले, हे देवी ! सृष्टि से पूर्व जब मैंने ब्रह्मा का शिरविच्छेद किया तो मुझे ब्रह्महत्या का दोष लगा और मैं भैरव रूप होय गया । ब्रह्महत्या दोष के निवारणार्थ सर्वप्रथम मैंने ही इस स्तोत्र का पाठ किया था।

विनियोग:

ॐ अस्य श्री दक्षिणकाल्या हृदय स्तोत्र मंत्रस्य श्री महाकाल ऋषिरुष्णिक्छन्दः, श्री दक्षिण कालिका देवता, क्रीं बीजं, ह्नीं शक्तिः, नमः कीलकं सर्वत्र सर्वदा जपे विनियोगः।

हृदयादि न्यास:

ॐ क्रां ह्रदयाय नमः । ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ क्रूं शिखायै वषट्, ॐ क्रैं कवचाय हुं, ॐ क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्, ॐ क्रः अस्त्राय फट् ।

ध्यान:

ॐ ध्यायेत्कालीं महामायां त्रिनेत्रां बहुरूपिणीं ।

चतुर्भुजां ललज्जिह्वां पुर्णचन्द्रनिभानवाम् ॥

नीलोत्पलदल प्रख्यां शत्रुसंघ विदारिणीम् ।

नरमुण्डं तथा खङ्गं कमलं वरदं तथा ॥

विभ्राणां रक्तवदनां दंष्ट्रालीं घोररूपिणीं ।

अट्टाटहासनिरतां सर्वदा च दिगम्बराम् ।

शवासन स्थितां देवीं मुण्डमाला विभूषिताम् ॥

अथ ह्रदय स्तोत्रम्:

ॐ कालिका घोर रूपाढ्‌यां सर्वकाम फलप्रदा ।

सर्वदेवस्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु में ॥

ह्नीं ह्नीं स्वरूपिणी श्रेष्ठा त्रिषु लेकेषु दुर्लभा ।

तव स्नेहान्मया ख्यातं न देयं यस्य कस्यचित् ॥

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि निशामय परात्मिके ।

यस्य विज्ञानमात्रेण जीवन्मुक्तो भविष्यति ॥

नागयज्ञोपवीताञ्च चन्द्रार्द्धकृत शेखराम् ।

जटाजूटाञ्च संचिन्त्य महाकात समीपगाम् ॥

एवं न्यासादयः सर्वे ये प्रकुर्वन्ति मानवाः ।

प्राप्नुवन्ति च ते मोक्षं सत्यं सत्यं वरानने ॥

यंत्रं श्रृणु परं देव्याः सर्वार्थ सिद्धिदायकम् ।

गोप्यं गोप्यतरं गोप्यं गोप्यं गोप्यतरं महत् ॥

त्रिकोणं पञ्चकं चाष्ट कमलं भूपुरान्वितम् ।

मुण्ड पंक्तिं च ज्वालं च काली यंत्रं सुसिद्धिदम् ॥

मंत्रं तु पूर्व कथितं धारयस्व सदा प्रिये ।

देव्या दक्षिण काल्यास्तु नाम मालां निशामय ॥

काली दक्षिण काली च कृष्णरूपा परात्मिका ।

मुण्डमाला विशालाक्षी सृष्टि संहारकारिका ॥

स्थितिरूपा महामाया योगनिद्रा भगात्मिका ।

भगसर्पि पानरता भगोद्योता भागाङ्गजा ॥

आद्या सदा नवा घोरा महातेजाः करालिका ।

प्रेतवाहा सिद्धिलक्ष्मीरनिरुद्धा सरस्वती ॥

एतानि नाममाल्यानि ए पठन्ति दिने दिने ।

तेषां दासस्य दासोऽहं सत्यं सत्यं महेश्वरि ॥

ॐ कालीं कालहरां देवीं कंकाल बीज रूपिणीम् ।

कालरूपां कलातीतां कालिकां दक्षिणां भजे ॥

कुण्डगोलप्रियां देवीं स्वयम्भू कुसुमे रताम् ।

रतिप्रियां महारौद्रीं कालिकां प्रणमाम्यहम् ॥

दूतीप्रियां महादूतीं दूतीं योगेश्वरीं पराम् ।

दूती योगोद्भवरतां दूतीरूपां नमाम्यहम् ॥

क्रीं मंत्रेण जलं जप्त्वा सप्तधा सेचनेच तु ।

सर्वे रोगा विनश्यन्ति नात्र कार्या विचारणा ॥

क्रीं स्वाहान्तैर्महामंत्रैश्चन्दनं साधयेत्ततः ।

तिलकं क्रियते प्राज्ञैर्लोको वश्यो भवेत्सदा ॥

क्रीं हूं ह्नीं मंत्रजप्तैश्च ह्यक्षतैः सप्तभिः प्रिये ।

महाभयविनाशश्च जायते नात्र संशयः ॥

क्रीं ह्नीं हूं स्वाहा मंत्रेण श्मशानाग्नि च मंत्रयेत् ।

शत्रोर्गृहे प्रतिक्षिप्त्वा शत्रोर्मृत्युर्भविष्यति ॥

हूं ह्नीं क्रीं चैव उच्चाटे पुष्पं संशोध्य सप्तधा ।

रिपूणां चैव चोच्चाटं नयत्येव न संशयः ॥

आकर्षणे च क्रीं क्रीं क्रीं जप्त्वाक्षतान् प्रतिक्षिपेत् ।

सहस्त्रजोजनस्था च शीघ्रमागच्छति प्रिये ॥

क्रीं क्रीं क्रीं ह्नूं ह्नूं ह्नीं ह्नीं च कज्जलं शोधितं तथा ।

तिलकेन जगन्मोहः सप्तधा मंत्रमाचरेत् ॥

ह्रदयं परमेशानि सर्वपापहरं परम् ।

अश्वमेधादि यज्ञानां कोटि कोटिगुणोत्तमम् ॥

कन्यादानादिदानां कोटि कोटि गुणं फलम् ।

दूती योगादियागानां कोटि कोटि फलं स्मृतम् ॥

गंगादि सर्व तीर्थानां फलं कोटि गुणं स्मृतम् ।

एकधा पाठमात्रेण सत्यं सत्यं मयोदितम् ॥

कौमारीस्वेष्टरूपेण पूजां कृत्वा विधानतः ।

पठेत्स्तोत्रं महेशानि जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥

रजस्वलाभगं दृष्ट्‌वा पठदेकाग्र मानसः ।

लभते परमं स्थान देवी लोकं वरानने ॥

महादुःखे महारोगे महासंकटे दिने ।

महाभये महाघोरे पठेत्स्तोत्रं महोत्तमम् ॥

सत्यं सत्यं पुनः सत्यं गोपयेन्मातृजारवत् ।

भावार्थः

शत्रुओं का नाश करनेवाली, प्रचंडरूपधारिणी, Kali Hridaya Stotra मनोकामना पूरी करनेवाली वह महाकाली ह्नीं ह्नीं स्वरूपा, सर्वोत्तमा तथा कठिन प्रयास से ही सुलभ होनेवाली हैं । हे पार्वती! उनका यह स्तोत्र तुम्हारे प्रति प्रीति होने के कारण ही कह राहा हूं। हे वरानेने! उन महाकाली का ध्यान करने से प्राणी भवबंधन मुक्त हो जाता है । उनका ध्यान इस प्रकार करना चाहिए-उन देवी ने सर्पों का जनेऊ धारण कर रखा है, शशि पर दूज का चंद्रमा है तथा जटाओं से युक्त महाकाल के निकट वह स्थित हैं । जो इस प्रकार ध्यान करता है वह निश्चित ही मोक्ष पाता है ।

हे शैलकुमारी ! उस देवी का यंत्र भी गोपनीय है । उसमें पंद्रह त्रिकोण, अष्टदल कमल व भूपुर हैं । तदोपरांत मुंडों की पंक्ति व ज्वाला है । महाकाली का यह यंत्र सिद्धिदाता है । मंत्र के बारे में पहले ही बता चुका हूं । अब नाम के बारे में बताता हूं ।

हे पार्वती ! उन देवी के नाम हैं-काली, दक्षिणकाली, कृष्णरूपा, परात्मिका, विशालाक्षी, सृष्टिसहारिका, स्थितिरूपा, महामाया, योगनिद्रा, भगात्मिका, भागसर्पि, पानरता, भगांगजा, भगोद्योता, आद्या, सदानवा, घोरा, महातेजा, करालिका, प्रेतवाहा, सिद्धलक्ष्मी, अनिरुद्धा, सरस्वती ।

जो कोई उपरोक्त नामों को जपता है, मैं भी उसके वशीभूत हो जाता हूं । मैं स्वयं भी काली, कालहरा, कंकालबीज, काकरूपा, कलातीता व दक्षिणा तथा काली का ध्यान-जाप करता हूं ।

कुंडगोलप्रिया, ऋतुमती, रतिप्रिया, महारौद्ररूपा काली, दूतीप्रिया, महादूती, दूती, योगेश्वरी, पराम्बा, दूतीयोगद्‌भवरता व महाकाली कौ मैं नमस्कार करता हूं ।

क्रीं मंत्र से जल को सात बार अभिमंत्रित कर रोगी पर छिडकने से वह रोगमुक्त होता है । क्रीं स्वाहा मंत्र बोलते हुए चंदन घिसकर ललाट पर लगाने से वशीकरण होता है। क्रीं ह्नूं ह्नीं मंत्र को जपकर केवल सात अक्षत फेंक देने से भय नहीं लगता।

क्रीं ह्नीं ह्नूं स्वाहा बोलकर चिता की अग्नि (राख) को अभिमंत्रित कर शुत्र के घर की ओर फेंकने से वह मृत्यु को प्राप्त होता है । ह्नूं ह्नीं क्रीं मंत्र को पुष्प पर सात बार पढकर शत्रु पर फेंकने से उच्चाटन होता है । क्रीं क्रीं क्रीं मंत्र पढकर अक्षत चारों तरफ फेंकने से आकर्षण होता है । क्रीं क्रीं क्रीं ह्नूं ह्नूं ह्नीं ह्नीं मंत्र पढकर काजल का तिलक लगाने से हर कोई मोहित हो जाता है। हे देवी! यह स्तोत्र पापनाशक है । अश्वमेध यज्ञदान से भी यह करोडों गुना श्रेष्ठ है।

इस स्तोत्र का फल कन्यादान से भी करोडों गुना अधिक श्रेष्ठ है। देवी के यज्ञ आदि कर्मों, तीर्थफलों से भी अधिक फल इसके नित्य पाठ करने से मिलता है । हे देवी! जो प्राणी कौमारी देवी की विधिवत पूजा व पाठ करके इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, वे मुक्ति पाते हैं। हे पार्वती! रजस्वला स्त्री की भग (योनि) का दर्शन कर पवित्र मन से एकग्रचित्त होकर काली-ह्रदय का पाठ करने से साधक देवी के लोक में वास करता है। दुख, रोग, संकट, भय, अनिष्ट काल में इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए । सत्य, सत्य, पुनः सत्य कहता हूं कि इस स्तोत्र को गुप्त ही रखा जाना चाहिए।

Kali Hridaya Stotra

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