Kaila Devi Chalisa:कैला देवी चालीसा: एक विस्तृत विश्लेषण
Kaila Devi Chalisa:कैला देवी चालीसा हिंदू धर्म में माता कैला देवी की स्तुति में गाया जाने वाला एक भक्ति गीत है। यह चालीसा देवी के विभिन्न रूपों और उनकी शक्तियों का वर्णन करता है। Kaila Devi Chalisa माता कैला देवी को शक्ति की देवी माना जाता है और उनसे भक्त विभिन्न प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
Kaila Devi Chalisa:कैला देवी चालीसा का महत्व
- धार्मिक महत्व: यह चालीसा हिंदू धर्म में विशेषकर राजस्थान क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है। इसे भक्त माता कैला देवी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गाते हैं।
- आध्यात्मिक महत्व: यह चालीसा भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है Kaila Devi Chalisa और उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देता है।
- सांस्कृतिक महत्व: यह चालीसा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे विभिन्न धार्मिक उत्सवों और समारोहों में गाया जाता है।
Kaila Devi Chalisa:कैला देवी चालीसा के प्रमुख बिंदु
- माता कैला देवी का वर्णन: चालीसा में माता कैला देवी को विभिन्न रूपों में वर्णित किया गया है, जैसे कि पार्वती, दुर्गा और काली।
- देवी की शक्तियों का वर्णन: चालीसा में देवी की असीम शक्तियों का वर्णन किया गया है, Kaila Devi Chalisa जैसे कि रक्षा करने की शक्ति, बुराई पर विजय प्राप्त करने की शक्ति और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने की शक्ति।
- भक्तों की प्रार्थना: चालीसा में भक्त माता कैला देवी से अपनी रक्षा करने, उन्हें सुख-समृद्धि देने और मोक्ष प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।
यहां कुछ टिप्स दिए गए हैं जो आपको कैला देवी चालीसा गाते समय मदद कर सकते हैं:
- शांत वातावरण: एक शांत और शांत वातावरण में चालीसा गाएं।
- ध्यान केंद्रित करें: चालीसा के शब्दों पर ध्यान केंद्रित करें और उनके अर्थ को समझने का प्रयास करें।
- भावनाओं को व्यक्त करें: चालीसा गाते समय अपनी भावनाओं को व्यक्त करें।
- नियमित अभ्यास करें: नियमित रूप से चालीसा का अभ्यास करने से आप इसमें अधिक निपुण हो जाएंगे।
Kaila Devi Chalisa:कैला देवी चालीसा
नवदुर्गा, नवरात्रि, नवरात्रे, नवरात्रि, माता की चौकी, देवी जागरण, Kaila Devi Chalisa जगराता, शुक्रवार दुर्गा तथा अष्टमी के शुभ अवसर पर श्री कैला देवी मंदिर करौली में गाये जाने वाला श्री कैला मैया का प्रसिद्ध चालीसा।
॥ दोहा ॥
जय जय कैला मात हे
तुम्हे नमाउ माथ ॥
शरण पडूं में चरण में
जोडूं दोनों हाथ ॥
आप जानी जान हो
मैं माता अंजान ॥
क्षमा भूल मेरी करो
करूँ तेरा गुणगान ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय कैला महारानी ।
नमो नमो जगदम्ब भवानी ॥
सब जग की हो भाग्य विधाता ।
आदि शक्ति तू सबकी माता ॥
दोनों बहिना सबसे न्यारी ।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ॥
शोभा सदन सकल गुणखानी ।
वैद पुराणन माँही बखानी ॥4॥
जय हो मात करौली वाली ।
शत प्रणाम कालीसिल वाली ॥
ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी ।
हिंगलाज में तू महतारी ॥
तू ही नई सैमरी वाली ।
तू चामुंडा तू कंकाली ॥
नगर कोट में तू ही विराजे ।
विंध्यांचल में तू ही राजै ॥8॥
धौलागढ़ बेलौन तू माता ।
वैष्णवदेवी जग विख्याता ॥
नव दुर्गा तू मात भवानी ।
चामुंडा मंशा कल्याणी ॥
जय जय सूये चोले वाली ।
जय काली कलकत्ते वाली ॥
तू ही लक्ष्मी तू ही ब्रम्हाणी ।
पार्वती तू ही इन्द्राणी ॥12॥
सरस्वती तू विद्या दाता ।
तू ही है संतोषी माता ॥
अन्नपुर्णा तू जग पालक ।
मात पिता तू ही हम बालक ॥
तू राधा तू सावित्री ।
तारा मतंग्डिंग गायत्री ॥
तू ही आदि सुंदरी अम्बा ।
मात चर्चिका हे जगदम्बा ॥16॥
एक हाथ में खप्पर राजै ।
दूजे हाथ त्रिशूल विराजै ॥
कालीसिल पै दानव मारे ।
राजा नल के कारज सारे ॥
शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी ।
महिषासुर को मारनवारी ॥
रक्तबीज रण बीच पछारो ।
शंखासुर तैने संहारो ॥20॥
ऊँचे नीचे पर्वत वारी ।
करती माता सिंह सवारी ॥
ध्वजा तेरी ऊपर फहरावे ।
तीन लोक में यश फैलावे ॥
अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै ।
चाँदी के चौतरा विराजै ॥
लांगुर घटूअन चलै भवन में ।
मात राज तेरौ त्रिभुवन में ॥24॥
घनन घनन घन घंटा बाजत ।
ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत ॥
अगनित दीप जले मंदिर में ।
ज्योति जले तेरी घर-घर में ॥
चौसठ जोगिन आंगन नाचत ।
बामन भैरों अस्तुति गावत ॥
देव दनुज गन्धर्व व किन्नर ।
भूत पिशाच नाग नारी नर ॥28॥
सब मिल माता तोय मनावे ।
रात दिन तेरे गुण गावे ॥
जो तेरा बोले जयकारा ।
होय मात उसका निस्तारा ॥
मना मनौती आकर घर सै ।
जात लगा जो तोंकू परसै ॥
ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावे ।
गुंगर लौंग सो ज्योति जलावै ॥32॥
हलुआ पूरी भोग लगावै ।
रोली मेहंदी फूल चढ़ावे ॥
जो लांगुरिया गोद खिलावै ।
धन बल विद्या बुद्धि पावै ॥
जो माँ को जागरण करावै ।
चाँदी को सिर छत्र धरावै ॥
जीवन भर सारे सुख पावै ।
यश गौरव दुनिया में छावै ॥36॥
जो भभूत मस्तक पै लगावे ।
भूत-प्रेत न वाय सतावै ॥
जो कैला चालीसा पढ़ता।
नित्य नियम से इसे सुमरता ॥
मन वांछित वह फल को पाता ।
दुःख दारिद्र नष्ट हो जाता ॥
गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी ।
रक्षा कर कैला महतारी ॥40॥
॥ दोहा ॥
संवत तत्व गुण नभ भुज सुन्दर रविवार ।
पौष सुदी दौज शुभ पूर्ण भयो यह कार ॥
॥ इति कैला देवी चालीसा समाप्त ॥