जगन्नाथ रथ यात्रा

जगन्नाथ रथ यात्रा भारत के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। यह भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की वार्षिक यात्रा का उत्सव है। यह यात्रा ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती है और गुंडीचा मंदिर तक जाती है।

यह यात्रा 10 दिनों तक चलती है और इस दौरान लाखों भक्त रथों को खींचने के लिए इकट्ठा होते हैं।

रथ यात्रा का महत्व:

  • भगवान जगन्नाथ का दर्शन: यह भक्तों के लिए भगवान जगन्नाथ के दर्शन का एक अनूठा अवसर है।
  • धार्मिक महत्व: यह यात्रा भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी कई घटनाओं का प्रतीक है।
  • सांस्कृतिक महत्व: यह यात्रा ओडिशा की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का प्रदर्शन है।

रथ यात्रा का कार्यक्रम:

  • प्रथम दिन: रथ यात्रा का शुभारंभ जगन्नाथ मंदिर से होता है।
  • दूसरा से नौवां दिन: रथ विभिन्न मार्गों से गुजरते हुए गुंडीचा मंदिर की ओर बढ़ते हैं।
  • दसवां दिन: भगवान जगन्नाथ वापस जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं।

यहां कुछ रोचक तथ्य दिए गए हैं जो आपको जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में जानना चाहिए:

  • जगन्नाथ रथ यात्रा दुनिया की सबसे पुरानी रथ यात्राओं में से एक है।
  • रथों को लकड़ी से बनाया जाता है और इन्हें भव्य तरीके से सजाया जाता है।
  • रथ यात्रा के दौरान लाखों भक्त भोजन, पानी और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करते हैं।
  • यह यात्रा यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है।

भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद
भगवान जगन्नाथ जी छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है. भोजन में सात विभिन्न प्रकार के चावल, चार प्रकार की दाल, नौ प्रकार की सब्जियां और अनेक प्रकार की मिठाइयां परोसी जाती हैं. मीठे व्यंजन तैयार करने के लिए यहां शक्कर की बजाए अच्छे किस्म का गुड़ प्रयोग में लाया जाता है. आलू टमाटर और फूलगोभी का उपयोग मंदिर में नहीं होता है.

कब से शुरू होगी यात्रा
-वैदिक पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा 07 जुलाई को सुबह 08 बजकर 05 मिनट से शुरू होगी.
– यह यात्रा सुबह 09 बजकर 27 मिनट तक निकाली जाएगी.
– इसके बाद यात्रा दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से फिर से शुरू होगी.
– इस बार यात्रा 01 बजकर 37 मिनट पर विश्राम लेगी.
– इसके बाद शाम 04 बजकर 39 मिनट से यात्रा शुरू होगी.
– अब यह यात्रा 06 बजकर 01 मिनट तक चलेगी.

कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत
भगवान जगन्नाथ की यात्रा सदियों से चली आ रही है. ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 12वीं शताब्‍दी में हुई थी. एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्‍ण और बलराम से कहा कि वे नगर को देखना चाहती हैं. इसके बाद अपनी बहन की इच्छा पूरी करने के​ लिए दोनों भाइयों ने बड़े ही प्‍यार से एक रथ तैयार करवाया. इस रथ में तीनों भाई- बहन सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले थे और भ्रमण पूरा करने के बाद वापस पुरी लौटे. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.

मौसी के घर कितने दिन रुकते हैं?
जब भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं तो रास्ते में गुंडिचा में मौसी के घर भी जाते हैं. माना जाता है कि मौसी के घर पर तीनों भाई- बहन खूब पकवान खाते हैं. जिससे उनकी तबियत खराब हो जाती है और वो अज्ञातवास में चले जाते हैं. वे मौसी के यहां पूरे 7 दिनों तक रुकते हैं और स्वस्थ्य होने के बाद पुरी वापस लौटते हैं.

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