Indrakshi Stotram

Indrakshi Stotram:इन्द्राक्षी स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य स्तोत्र है, जिसका पाठ मुख्यतः रोग-निवारण, संकटों से मुक्ति, और शुभ लाभ की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र देवी Indrakshi Stotram इन्द्राक्षी को समर्पित है, जो माता पार्वती का ही एक स्वरूप मानी जाती हैं। इस स्तोत्र में देवी की महिमा, उनकी शक्तियों और उनके भक्तों को दिए गए आशीर्वाद का वर्णन है।

Indrakshi Stotram:इन्द्राक्षी स्तोत्र का महत्व

  1. रोगों का नाश: यह स्तोत्र विशेष रूप से रोग और विपदाओं को दूर करने में प्रभावी है।
  2. मनोकामना पूर्ति: भक्तजनों की इच्छाओं को पूर्ण करने में सहायक है।
  3. शत्रुनाशक: इसके पाठ से शत्रु शांत होते हैं और जीवन में सुरक्षा का भाव बढ़ता है।
  4. शांति और समृद्धि: इसका नियमित पाठ मानसिक शांति और घर में समृद्धि लाता है।

Indrakshi Stotram:इन्द्राक्षी स्तोत्र का पाठ

इन्द्राक्षी स्तोत्र का पाठ प्राचीन समय से ऋषियों और मुनियों द्वारा किया जाता रहा है। Indrakshi Stotram विभिन्न पुराणों और ग्रंथों में उल्लिखित है।

Indrakshi Stotram:पाठ करने की विधि

  1. स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें।
  2. स्नान करके शुद्ध कपड़े पहनें।
  3. देवी इन्द्राक्षी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  4. फूल, चंदन और नैवेद्य अर्पित करें।
  5. पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ स्तोत्र का पाठ करें।

विनियोग:

अस्य श्री इन्द्राक्षीस्तोत्रमहामन्त्रस्य,
शचीपुरन्दर ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
इन्द्राक्षी दुर्गा देवता, लक्ष्मीर्बीजं,
भुवनेश्वरीति शक्तिः, भवानीति कीलकम् ,
इन्द्राक्षीप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यानम्:
नेत्राणां दशभिश्शतैः परिवृतामत्युग्रचर्माम्बरां
हेमाभां महतीं विलम्बितशिखामामुक्तकेशान्विताम् ।
घण्टामण्डित-पादपद्मयुगलां नागेन्द्र-कुम्भस्तनीम्
इन्द्राक्षीं परिचिन्तयामि मनसा कल्पोक्तसिद्धिप्रदाम् ॥

इन्द्राक्षीं द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम् ।
वामहस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वरप्रदाम् ॥

इन्द्राक्षीं सहस्रयुवतीं नानालङ्कार-भूषिताम् ।
प्रसन्नवदनाम्भोजामप्सरोगण-सेविताम् ॥

द्विभुजां सौम्यवदनां पाशाङ्कुशधरां पराम् ।
त्रैलोक्यमोहिनीं देवीमिन्द्राक्षीनामकीर्तिताम् ॥

पीताम्बरां वज्रधरैकहस्तां नानाविधालङ्करणां प्रसन्नाम् ।
त्वामप्सरस्सेवित-पादपद्मामिन्द्राक्षि वन्दे शिवधर्मपत्नीम् ॥

इन्द्रादिभिः सुरैर्वन्द्यां वन्दे शङ्करवल्लभाम् ।
एवं ध्यात्वा महादेवीं जपेत् सर्वार्थसिद्धये ॥

लं पृथिव्यात्मने गन्धं समर्पयामि ।
हं आकाशात्मने पुष्पैः पूजयामि ।
यं वाय्वात्मने धूपमाघ्रापयामि ।
रं अग्न्यात्मने दीपं दर्शयामि ।
वं अमृतात्मने अमृतं महानैवेद्यं निवेदयामि ।
सं सर्वात्मने सर्वोपचार-पूजां समर्पयामि ।

वज्रिणी पूर्वतः पातु चाग्नेय्यां परमेश्वरी ।
दण्डिनी दक्षिणे पातु नैरॄत्यां पातु खड्गिनी ॥ १॥

पश्चिमे पाशधारी च ध्वजस्था वायु-दिङ्मुखे ।
कौमोदकी तथोदीच्यां पात्वैशान्यां महेश्वरी ॥ २॥

उर्ध्वदेशे पद्मिनी मामधस्तात् पातु वैष्णवी ।
एवं दश-दिशो रक्षेत् सर्वदा भुवनेश्वरी ॥ ३॥

इन्द्राक्षीं स्तोत्र:

इन्द्राक्षी नाम सा देवी दैवतैः समुदाहृता ।
गौरी शाकम्भरी देवी दुर्गा नाम्नीति विश्रुता ॥ ४॥

नित्यानन्दा निराहारा निष्कलायै नमोऽस्तु ते ।
कात्यायनी महादेवी चन्द्रघण्टा महातपाः ॥ ५॥

सावित्री सा च गायत्री ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी ।
नारायणी भद्रकाली रुद्राणी कृष्णपिङ्गला ॥ ६॥

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी ।
मेघस्श्यामा सहस्राक्षी विकटाङ्गी जडोदरी ॥ ७॥

महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।
अजिता भद्रदानन्ता रोगहर्त्री शिवप्रदा ॥ ८॥

शिवदूती कराली च प्रत्यक्ष-परमेश्वरी ।
इन्द्राणी इन्द्ररूपा च इन्द्रशक्तिः परायणा ॥ ९॥

सदा सम्मोहिनी देवी सुन्दरी भुवनेश्वरी ।
एकाक्षरी परब्रह्मस्थूलसूक्ष्म-प्रवर्धिनी ॥ १०॥

रक्षाकरी रक्तदन्ता रक्तमाल्याम्बरा परा ।
महिषासुर-हन्त्री च चामुण्डा खड्गधारिणी ॥ ११॥

वाराही नारसिंही च भीमा भैरवनादिनी ।
श्रुतिः स्मृतिर्धृतिर्मेधा विद्या लक्ष्मीः सरस्वती ॥ १२॥

अनन्ता विजयापर्णा मानस्तोकापराजिता ।
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यम्बिका शिवा ॥ १३॥

शिवा भवानी रुद्राणी शङ्करार्ध-शरीरिणी ।
ऐरावतगजारूढा वज्रहस्ता वरप्रदा ॥ १४॥

नित्या सकल-कल्याणी सर्वैश्वर्य-प्रदायिनी ।
दाक्षायणी पद्महस्ता भारती सर्वमङ्गला ॥ १५॥

कल्याणी जननी दुर्गा सर्वदुर्गविनाशिनी ।
इन्द्राक्षी सर्वभूतेशी सर्वरूपा मनोन्मनी ॥ १६॥

महिषमस्तक-नृत्य-विनोदन-स्फुटरणन्मणि-नूपुर-पादुका ।
जनन-रक्षण-मोक्षविधायिनी जयतु शुम्भ-निशुम्भ-निषूदिनी ॥ १७॥

सर्वमङ्गल-माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥ १८॥

ॐ ह्रीं श्रीं इन्द्राक्ष्यै नमः। ॐ नमो भगवति, इन्द्राक्षि,
सर्वजन-सम्मोहिनि, कालरात्रि, नारसिंहि, सर्वशत्रुसंहारिणि ।

अनले, अभये, अजिते, अपराजिते,
महासिंहवाहिनि, महिषासुरमर्दिनि ।

हन हन, मर्दय मर्दय, मारय मारय, शोषय
शोषय, दाहय दाहय, महाग्रहान् संहर संहर ॥ १९॥

यक्षग्रह-राक्षसग्रह-स्कन्धग्रह-विनायकग्रह-बालग्रह-कुमारग्रह-
भूतग्रह-प्रेतग्रह-पिशाचग्रहादीन् मर्दय मर्दय ॥ २०॥

भूतज्वर-प्रेतज्वर-पिशाचज्वरान् संहर संहर ।
धूमभूतान् सन्द्रावय सन्द्रावय ।

शिरश्शूल-कटिशूलाङ्गशूल-पार्श्वशूल-
पाण्डुरोगादीन् संहर संहर ॥ २१॥

य-र-ल-व-श-ष-स-ह, सर्वग्रहान् तापय
तापय, संहर संहर, छेदय छेदय ह्रां ह्रीं ह्रूं फट् स्वाहा ॥ २२॥

गुह्यात्-गुह्य-गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्मयि स्थिरा ॥ २३॥

फलश्रुतिः

॥ नारायण उवाच ॥

एवं नामवरैर्देवी स्तुता शक्रेण धीमता ।
आयुरारोग्यमैश्वर्यमपमृत्यु-भयापहम् ॥ १॥

वरं प्रादान्महेन्द्राय देवराज्यं च शाश्वतम् ।
इन्द्रस्तोत्रमिदं पुण्यं महदैश्वर्य-कारणम् ॥ २ ॥

क्षयापस्मार-कुष्ठादि-तापज्वर-निवारणम् ।
चोर-व्याघ्र-भयारिष्ठ-वैष्णव-ज्वर-वारणम् ॥ ३॥

माहेश्वरमहामारी-सर्वज्वर-निवारणम् ।
शीत-पैत्तक-वातादि-सर्वरोग-निवारणम् ॥ ४॥

शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधिबन्धनात्
आवर्तन-सहस्रात्तु लभते वाञ्छितं फलम् ॥ ५॥

राजानं च समाप्नोति इन्द्राक्षीं नात्र संशय ।
नाभिमात्रे जले स्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया ॥ ६॥

जपेत् स्तोत्रमिदं मन्त्रं वाचासिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ।
सायं प्रातः पठेन्नित्यं षण्मासैः सिद्धिरुच्यते ॥ ७॥

संवत्सरमुपाश्रित्य सर्वकामार्थसिद्धये ।
अनेन विधिना भक्त्या मन्त्रसिद्धिः प्रजायते ॥ ८॥

सन्तुष्टा च भवेद्देवी प्रत्यक्षा सम्प्रजायते ।
अष्टम्यां च चतुर्दश्यामिदं स्तोत्रं पठेन्नरः ॥ ९॥

धावतस्तस्य नश्यन्ति विघ्नसंख्या न संशयः ।
कारागृहे यदा बद्धो मध्यरात्रे तदा जपेत् ॥ १०॥

दिवसत्रयमात्रेण मुच्यते नात्र संशयः ।
सकामो जपते स्तोत्रं मन्त्रपूजाविचारतः ॥ ११॥

पञ्चाधिकैर्दशादित्यैरियं सिद्धिस्तु जायते ।
रक्तपुष्पै रक्तवस्त्रै रक्तचन्दनचर्चितैः ॥ १२॥

धूपदीपैश्च नैवेद्यैः प्रसन्ना भगवती भवेत् ।
एवं सम्पूज्य इन्द्राक्षीमिन्द्रेण परमात्मना ॥ १३॥

वरं लब्धं दितेः पुत्रा भगवत्याः प्रसादतः ।
एतत् स्त्रोत्रं महापुण्यं जप्यमायुष्यवर्धनम् ॥ १४॥

ज्वरातिसार-रोगाणामपमृत्योर्हराय च ।
द्विजैर्नित्यमिदं जप्यं भाग्यारोग्यमभीप्सुभिः ॥ १५॥

॥ इति इन्द्राक्षी-स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

इन्द्राक्षी स्तोत्र विशेषताएं | Indrakshi Stotram In Hindi

इन्द्राक्षी स्तोत्र के साथ यदि आप लक्ष्मी स्तोत्र और लक्ष्मी कवच का पाठ करते है तो आपको इस स्तोत्र का मनोवांछित फल प्राप्त होगा अगर आप इन्द्रा अप्सरा लक्ष्मी यन्त्र की पूजा के साथ इन्द्राक्षी स्तोत्र का रोज पाठ करते है तो आपको जीवन में कभी भी धन की समस्या का सामना नही करने पड़ेगा। साधक अपने जीवन में असाध्य रोगो और सभी कष्टों से मुक्ति पाना चाहता है। तो उसे Indrakshi Stotram इन्द्राक्षी गुटिका धारण करनी चाहिए।

Indrakshi Stotram

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