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Durva Ashtami

Durva Ashtami 2025 Date: दूर्वा अष्टमी 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व – पाएं सुख-समृद्धि का आशीर्वाद!

Kab Hai Durva Ashtami: हर साल भाद्रपद मास में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, राधा अष्टमी और अनंत चतुर्दशी प्रमुख हैं। इसी कड़ी में एक और महत्वपूर्ण पर्व है दूर्वा अष्टमी। यह पर्व दूर्वा घास को समर्पित है, जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। दूर्वा घास को केवल घास नहीं माना जाता, बल्कि इसे अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है, जिसका प्रयोग लगभग सभी हिंदू अनुष्ठानों में किया जाता है।

आइए जानते हैं दूर्वा अष्टमी 2025 की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसके धार्मिक महत्व को विस्तार से।

दूर्वा अष्टमी 2025 कब है? (Durva Ashtami 2025 Date)

वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 30 अगस्त 2025 को देर रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगा। यह तिथि 31 अगस्त 2025 को देर रात 12 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है, इसलिए दूर्वा अष्टमी का पर्व 31 अगस्त 2025 (रविवार) को मनाया जाएगा।

दूर्वा अष्टमी 2025 के शुभ योग (Durva Ashtami 2025 Shubh Yog)

दूर्वा अष्टमी के दिन कई शुभ योगों का निर्माण हो रहा है, जो इस पर्व के महत्व को और बढ़ा देते हैं।

अनुराधा नक्षत्र: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर अनुराधा नक्षत्र का संयोग शाम 05 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।

ज्येष्ठा नक्षत्र: इसके बाद ज्येष्ठा नक्षत्र का संयोग बनेगा।

भद्रावास योग: इस शुभ अवसर पर भद्रावास योग का निर्माण हो रहा है, जो दिन में 11 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भद्रा स्वर्ग में रहेंगी, और भद्रा के स्वर्ग में रहने के दौरान पृथ्वी वासियों का कल्याण होता है।

दूर्वा अष्टमी का धार्मिक महत्व(Religious significance of Durva Ashtami)

दूर्वा अष्टमी Durva Ashtami का दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु की भक्ति-भाव से पूजा की जाती है। दूर्वा घास को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है और हिंदू धर्म में कई पूजाएं इसके बिना अधूरी मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन पर व्रत रखने और दूर्वा घास की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और रौनक आती है, साथ ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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पौराणिक कथा और दूर्वा घास का महत्व: प्राचीन कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के सिर से कुछ बाल गिरे थे, जिन्हें दूर्वा घास माना जाता है। यह भी माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूँदें इस पर गिरी थीं, जिससे यह अत्यंत शुद्ध हो गई। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को दूर्वा घास का महत्व बताया था।

दूर्वा अष्टमी के दिन किए जाने वाले अनुष्ठान(Rituals performed on the day of Durva Ashtami)

दूर्वा अष्टमी का त्योहार विशेष रूप से महिलाओं के बीच काफी प्रसिद्ध है। इस दिन किए जाने वाले प्रमुख अनुष्ठान इस प्रकार हैं:

स्नान और वस्त्र धारण: महिलाएं इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और नए वस्त्र धारण करती हैं।

विशेष पूजा: दूर्वा अष्टमी के दिन विशेष प्रकार की पूजा और अन्य रीति-रिवाज किए जाते हैं।

भोग और सामग्री: पूजा में फल, फूल, चावल, धूपबत्ती, दही और अन्य आवश्यक पूजन सामग्री के साथ भोग चढ़ाया जाता है।

व्रत का संकल्प: इस दिन महिलाएं पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखती हैं और ईश्वर को भोग अर्पित करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।

दूर्वा अष्टमी और पर्यावरण संरक्षण (Durva Ashtami and environmental protection)

Durva Ashtami: दूर्वा अष्टमी का पर्व हमें पर्यावरण को सहेजने का भी महत्वपूर्ण संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि प्रकृति से जुड़ी हर एक चीज बहुत महत्वपूर्ण है। दूर्वा घास को घर में भी आसानी से लगाया जा सकता है, और इसे उगाने के लिए विशेष मेहनत की आवश्यकता नहीं पड़ती। सबसे बड़ी बात यह है कि दूर्वा घास को घर में लगाने से शुद्धता और पवित्रता का आगमन होता है। यह त्यौहार हमें यह भी याद दिलाता है कि पेड़-पौधे लगाना कितना आवश्यक है, क्योंकि इनके बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है।

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पंचांग (31 अगस्त 2025 के लिए)

• सूर्योदय – सुबह 05 बजकर 19 मिनट पर

• सूर्यास्त – शाम 05 बजकर 55 मिनट पर

• चंद्रोदय – दोपहर 12 बजकर 08 मिनट से…

• चंद्रास्त – रात 10 बजकर 52 मिनट तक

• ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 03 बजकर 48 मिनट से 04 बजकर 33 मिनट तक

• विजय मुहूर्त – दोपहर 01 बजकर 43 मिनट से 02 बजकर 33 मिनट तक

• गोधूलि मुहूर्त – शाम 05 बजकर 55 मिनट से 06 बजकर 17 मिनट तक

• निशिता मुहूर्त – रात 11 बजकर 14 मिनट से 12 बजे तक

दूर्वा अष्टमी का यह पावन पर्व हमें प्रकृति के प्रति आदर और भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन सच्ची निष्ठा से पूजा-अर्चना और व्रत करने से जीवन में सकारात्मकता और खुशहाली आती है।

अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई है और केवल सामान्य सूचना के लिए है। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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