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- Create Date October 3, 2023
- Last Updated October 3, 2023
अथर्ववेद AtharvaVed
अथर्ववेद हिंदू धर्म के चार वेदों में से एक है। यह ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के बाद सबसे अंत में लिखा गया वेद है। अथर्ववेद में मंत्रों के साथ विभिन्न प्रायोगिक उपयोग, उपचार, सुरक्षा और संपदा के लिए प्रार्थनाएं, व्याधि निवारण, वशीकरण और प्रभावशाली मंत्र आदि दिए गए हैं।
अथर्ववेद की रचना महर्षि अथर्वा ने की थी। यह वेद संस्कृत भाषा में लिखा गया है। अथर्ववेद में 20 अध्यायों में 5,900 मंत्र हैं।
अथर्ववेद की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- यह वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद से अलग है।
- इसमें मंत्रों के साथ विभिन्न प्रायोगिक उपयोग, उपचार, सुरक्षा और संपदा के लिए प्रार्थनाएं, व्याधि निवारण, वशीकरण और प्रभावशाली मंत्र आदि दिए गए हैं।
- इसमें ऋग्वेद के उच्च कोटि के देवताओं को भिन्न स्थान प्राप्त है।
- इसमें मन्त्र-तन्त्र सम्बन्धित राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियाँ का महत्वपूंर्ण विषय है।
अथर्ववेद का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है। यह वेद विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए उपयोगी है। यह वेद चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण है।
अथर्ववेद के कुछ प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं:
- चिकित्सा: अथर्ववेद में विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार के लिए मंत्र दिए गए हैं।
- विज्ञान: अथर्ववेद में खगोल विज्ञान, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान के बारे में जानकारी दी गई है।
- दर्शन: अथर्ववेद में ब्रह्मांड, आत्मा और जीवन के अर्थ के बारे में चर्चा की गई है।
अथर्ववेद हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह वेद विभिन्न प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए उपयोगी है। यह वेद चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण है।