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  • Create Date October 6, 2023
  • Last Updated October 6, 2023

हनुमत् कवचम् (सुदर्शनसंहितान्तर्गतम्) एक शक्तिशाली रक्षा कवच है जो भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से बचाता है। यह कवच सुदर्शन संहिता में वर्णित है।

हनुमत् कवचम् के 21 श्लोक हैं, प्रत्येक श्लोक में 108 अक्षर हैं। प्रत्येक श्लोक हनुमान जी के एक विशेष गुण या विशेषता की स्तुति करता है।

हनुमत् कवचम् का पाठ करने से भक्तों को हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है। यह भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाता है और उन्हें सुख और समृद्धि प्रदान करता है।

हनुमत् कवचम् का पाठ करने की विधि इस प्रकार है:

  1. किसी भी शुभ दिन और शुभ समय पर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनें।
  2. एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर रखें।
  3. हनुमान जी को धूप, दीप, फूल आदि अर्पित करें।
  4. हनुमान चालीसा या अन्य हनुमान जी के भजनों का पाठ करें।
  5. अब, आप हनुमत् कवचम् का पाठ करें।
  6. पाठ को 108 बार, 1008 बार या अधिक बार किया जा सकता है।
  7. पाठ के बाद, हनुमान जी की आरती करें।

हनुमत् कवचम् का पाठ करने के लिए कुछ टिप्स इस प्रकार हैं:

  • साफ और शांत स्थान पर बैठें।
  • ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें।
  • प्रत्येक श्लोक का स्पष्ट और ध्यान से उच्चारण करें।
  • हनुमान जी के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा रखें।

हनुमत् कवचम् एक शक्तिशाली रक्षा कवच है जो भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से बचा सकता है। नियमित रूप से इसका पाठ करने से भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और वे सुख और समृद्धि प्राप्त करते हैं।

हनुमत् कवचम् के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

  • भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  • भक्तों को सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
  • भक्तों को शत्रुओं से रक्षा मिलती है।
  • भक्तों को दुर्घटनाओं से बचाव मिलता है।
  • भक्तों को मोक्ष प्राप्त होता है।

हनुमत् कवचम् का पाठ करना एक बहुत ही सरल और प्रभावी उपाय है जो भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से बचाने में मदद कर सकता है।

हनुमत् कवचम् के 21 श्लोक इस प्रकार हैं:

  1. ॐ नमो भगवते महाबलाय रामेष्टाय हनुमते।
  2. अंजनीसुताय वायुपुत्राय महावीराय स्वाहा।
  3. अष्टसिद्धि दशमहाविद्या परापुरुषाय स्वाहा।
  4. रामेष्टाय नमस्तुभ्यं मंत्रराजाय नमो नमः।
  5. रामायणार्थदायकाय नमस्तुभ्यं सदा।
  6. सकलशापोपशमनाय नमस्तुभ्यं सदा।
  7. सकलरोगनिवारणाय नमस्तुभ्यं सदा।
  8. सकलभयविनाशनाय नमस्तुभ्यं सदा।
  9. सकलपापनाशनाय नमस्तुभ्यं सदा।
  10. सकलदोषविनाशनाय नमस्तुभ्यं सदा।
  11. सकलसुखप्रदाताय नमस्तुभ्यं सदा।
  12. सकलकार्यसिद्धयर्थं नमस्तुभ्यं सदा।
  13. सर्वशत्रुवशकरणाय नमस्तुभ्यं सदा।
  14. सर्वदुष्टभ्रंशनाय नमस्तुभ्यं सदा।

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