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  • Create Date October 11, 2023
  • Last Updated October 11, 2023

सरस्वतीपंचकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो सरस्वती देवी की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 5 श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक में देवी सरस्वती के एक विशेष गुण या विशेषता की प्रशंसा की गई है।

सरस्वतीपंचकम् की रचना 14वीं शताब्दी के कवि विद्यापति ने की थी। यह स्तोत्र सरस्वती देवी की पूजा करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का एक लोकप्रिय तरीका है।

यहां सरस्वतीपंचकम् के कुछ श्लोक दिए गए हैं:

  • श्लोक 1:

सरस्वतीं भगवतीं वीणापाणिं सुधाकरां। वन्दे विद्याप्रदां देवीं नमोस्तु नमस्ते।।

अर्थ:

मैं उस सरस्वती देवी को नमस्कार करता हूं जो वीणा और अमृत का रूप हैं, और जो ज्ञान प्रदान करने वाली देवी हैं।

  • श्लोक 2:

चन्द्रकान्तिं हंसवाहिनीं वागीश्वरीं शारदाम्। विद्याप्रदां भगवतीं नमोस्तु नमस्ते।।

अर्थ:

मैं उस सरस्वती देवी को नमस्कार करता हूं जो चंद्रमा की तरह सुंदर हैं, जो हंस की सवारी करती हैं, जो वाणी की देवी हैं, और जो ज्ञान प्रदान करने वाली देवी हैं।

  • श्लोक 3:

सर्वशास्त्रेषु ज्ञातां सर्वविद्यासु निपुणाम्। वन्दे विद्याप्रदां देवीं नमोस्तु नमस्ते।।

अर्थ:

मैं उस सरस्वती देवी को नमस्कार करता हूं जो सभी शास्त्रों में जानकार हैं, सभी विद्याओं में निपुण हैं, और जो ज्ञान प्रदान करने वाली देवी हैं।

सरस्वतीपंचकम् का पाठ करने के लिए, सबसे पहले एक शुद्ध स्थान पर बैठें और अपने सामने एक सरस्वती प्रतिमा या तस्वीर रखें। फिर, 5 बार स्तोत्र का जाप करें। जाप करते समय, अपनी आंखें बंद करें और देवी सरस्वती की छवि अपने मन में ध्यान करें।

सरस्वतीपंचकम् का पाठ करने से ज्ञान, विद्या, बुद्धि, और कला में सफलता प्राप्त होती है। यह स्तोत्र छात्रों, शिक्षकों, और कलाकारों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।

यहां सरस्वतीपंचकम् का पूरा पाठ दिया गया है:

सरस्वतीपंचकम्

सरस्वतीं भगवतीं वीणापाणिं सुधाकरां। वन्दे विद्याप्रदां देवीं नमोस्तु नमस्ते।।

चन्द्रकान्तिं हंसवाहिनीं वागीश्वरीं शारदाम्। विद्याप्रदां भगवतीं नमोस्तु नमस्ते।।

सर्वशास्त्रेषु ज्ञातां सर्वविद्यासु निपुणाम्। वन्दे विद्याप्रदां देवीं नमोस्तु नमस्ते।।

वन्दे वाग्देवीं सरस्वतीं वाणीं विद्यादायिनीम्। वन्दे वाग्देवीं सरस्वतीं वाणीं विद्यादायिनीम्।।

वन्दे वाग्देवीं सरस्वतीं वाणीं विद्यादायिनीम्।।


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