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  • Create Date October 8, 2023
  • Last Updated November 4, 2023

श्री गणेश चालीसा एक संस्कृत भजन है जो भगवान गणेश की प्रशंसा करता है। यह चालीसा 40 श्लोकों में विभाजित है, और प्रत्येक श्लोक में गणेश के विभिन्न रूपों और गुणों की प्रशंसा की जाती है।

चालिसा की शुरुआत में, गणेश को "गणपति" (गणों का स्वामी) के रूप में संबोधित किया जाता है। फिर, गणेश के विभिन्न रूपों का वर्णन किया जाता है, जैसे कि उनका लाल रंग, उनके हाथ में पाश और अंकुश, और उनके सिर पर चंद्रमा। चालिसा के अंत में, गणेश से प्रार्थना की जाती है कि वे भक्त को सभी बाधाओं से मुक्त करें और उन्हें सफलता प्रदान करें।

श्री गणेश चालीसा का पाठ करने का सबसे अच्छा समय सुबह का समय माना जाता है। भक्त चालीसा को घर पर या मंदिर में बैठे हुए पाठ कर सकते हैं। चालीसा को पाठ करते समय, भक्तों को गणेश की छवि या मूर्ति के सामने बैठना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।

श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ होने की उम्मीद है:

  • सभी बाधाओं से मुक्ति
  • सफलता और समृद्धि
  • आध्यात्मिक विकास

श्री गणेश चालीसा एक शक्तिशाली भजन है जो भक्तों को कई तरह से लाभ पहुंचा सकता है।

श्री गणेश चालीसा का पाठ निम्नलिखित है:

दोहा जय गणपति सद्गुण सदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल।।

चौपाई जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू।। जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता।। वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।। राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला।। पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं।। सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित।। धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता।। ऋद्धि सिद्धि तव चँवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्वारे।। कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी।। एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी।। भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब प्रकट भई गणपति रूपा।। अष्टदल कमल बिराजे मध्य। चार भुजा चारों दिशा छेदी।। मुख में चारों हाथ जोड़े। दक्षिण में पाश लिए शोभित।। पूर्व में वरद मुद्रा धारी। पश्चिम में अभयमुद्राकारी।। उत्तर में त्रिशूल लिए हाथ। दक्षिण में मोदक लिए हाथ।। धनि गणपति कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे।। तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई।। मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।। भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा।। अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै।। ॥ दोहा ॥ शुभ कार्य सिद्ध करहुं मोहि। जय जय जय गणपति देवा।।


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