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  • Create Date October 24, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

नहीं, श्री शिव स्तोत्र कालभैरवकृत नहीं है। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है, जो आठवीं शताब्दी के हिंदू दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु थे। यह स्तोत्र शिवाष्टकम् के नाम से भी जाना जाता है।

कालभैरव शिव के एक रूप हैं, जो भयंकर और क्रूर के रूप में वर्णित हैं। वे तंत्र और योग के देवता हैं। कालभैरव को अक्सर शिव के रक्षक के रूप में देखा जाता है।

श्री शिव स्तोत्र में, आदि शंकराचार्य भगवान शिव की महिमा की स्तुति करते हैं। वे भगवान शिव को सृष्टि, पालन और संहार के देवता के रूप में वर्णित करते हैं। वे भगवान शिव को ज्ञान, शक्ति और दया के देवता के रूप में भी वर्णित करते हैं।

स्तोत्र के कुछ अंश इस प्रकार हैं:

  • श्लोक 1:

हे शिव, आपके गले में मुंडमाला है, आपके शरीर पर सर्प है, आप महाकाल हैं, आप गणेश के स्वामी हैं। आपके जटाजूट से गंगा नदी बहती है, आप विशाल हैं। मैं आपको शिव, शंकर, और शंभु के रूप में नमस्कार करता हूं।

  • श्लोक 2:

हे शिव, आप आनंद से खिलखिलाते हैं, आप महामंडल में मंडित हैं, आप अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। आप अनादि हैं, आप पारमार्थिक हैं, आप मोह का नाश करते हैं। मैं आपको शिव, शंकर, और शंभु के रूप में नमस्कार करता हूं।

  • श्लोक 3:

हे शिव, आप वट वृक्ष के नीचे निवास करते हैं, आपका हास्य बहुत भयानक है, आप महापापों का नाश करते हैं, आप हमेशा प्रकाशमान हैं। आप गिरिराज, गणेश, महेश, और सुरेश हैं। मैं आपको शिव, शंकर, और शंभु के रूप में नमस्कार करता हूं।

श्री शिव स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को भगवान शिव के साथ एक गहरा संबंध बनाने में मदद कर सकता है। यह भक्तों को अपने भीतर के भगवान को खोजने और अपनी आंतरिक शक्ति और ज्ञान को जागृत करने में मदद कर सकता है।


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