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  • Create Date October 24, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

श्री शिवगुरुस्तोत्रम एक स्तोत्र है जो भगवान शिव को गुरु के रूप में दर्शाता है। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा और उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले ज्ञान और मार्गदर्शन का वर्णन करता है।

स्तोत्र का प्रारंभ भगवान शिव के गुरु रूप की स्तुति से होता है। भगवान शिव को सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान माना जाता है। वे भक्तों को सही मार्ग पर चलने में मदद करते हैं, और वे उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं।

दूसरा श्लोक भगवान शिव द्वारा प्रदान किए जाने वाले ज्ञान और मार्गदर्शन का वर्णन करता है। भगवान शिव भक्तों को ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में मदद करते हैं, और वे उन्हें जीवन के उद्देश्य को खोजने में मदद करते हैं।

अंतिम श्लोक भक्तों को भगवान शिव को अपना गुरु मानने के लिए प्रोत्साहित करता है। भगवान शिव के मार्गदर्शन में, भक्त अपने जीवन में सफलता और मोक्ष दोनों प्राप्त कर सकते हैं।

श्री शिवगुरुस्तोत्रम एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह स्तोत्र शांति, समृद्धि और मोक्ष प्रदान करने में सक्षम है।

स्तोत्र का पाठ इस प्रकार है:

संविद्रूपाय शान्ताय शम्भवे सर्वसाक्षिणे । शेमुषी-सिद्धरूपाय शिवाय गुरवे नमः ॥

त्रैलोक्यसम्पदालेख्य-समुल्लेखनभित्तये । सच्चिदानन्दरूपाय शिवाय गुरवे नमः ॥

देशकालानवच्छिन्न-दृष्टिमात्रस्वरूपिणे । देशिकौघत्रयान्ताय शिवाय गुरवे नमः ॥

विश्वात्मने तैजसाय प्राज्ञाय परमात्मने । विश्वावस्थाविहीनाय शिवाय गुरवे नमः ॥

विवेकिनां विवेकाय विमर्शाय विमर्शिनाम् । प्रकाशानां प्रकाशाय शिवाय गुरवे नमः ॥

परतन्त्राय भक्तानां स्वतन्त्राय दयालवे । शरणागतानामुपकारिणे शिवाय गुरवे नमः ॥

सर्वागममोक्तिकलितं स्तोत्रं शिवगुरोः परम् । संवित्साधनसारांशं यः पठेत् सिद्धिभाग् भवेत् ॥

अर्थ:

हे शान्त रूप, हे सर्वज्ञ, हे सर्व साक्षी, हे शेमुषी सिद्ध रूप, हे शिव गुरु, आपको नमस्कार।

हे त्रैलोक्य के संपदा के लेखक, हे समस्त ज्ञान के भंडार, हे सच्चिदानंद रूप, हे शिव गुरु, आपको नमस्कार।

हे देश, काल और वस्तुओं से परे, हे दृष्टिमात्र स्वरूप, हे देशिकौघत्रयान्त, हे शिव गुरु, आपको नमस्कार।

हे विश्व आत्मा, हे तेजस्वी, हे ज्ञानस्वरूप, हे परमात्मा, हे विश्वावस्था से रहित, हे शिव गुरु, आपको नमस्कार।

हे विवेकियों के विवेक, हे विमर्श करने वालों के विमर्श, हे प्रकाशकों के प्रकाश, हे शिव गुरु, आपको नमस्कार।

हे भक्तों के परम गुरु, हे स्वतन्त्र, हे दयालु, हे शरणागतों के उपकार करने वाले, हे शिव गुरु, आपको नमस्कार।

हे शिव गुरु का यह स्तोत्र, जो सभी शास्त्रों में वर्णित है, संवित् साधना का सार है। जो कोई इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह सिद्धि प्राप्त करता है।

स्तोत्र का विश्लेषण:

स्तोत्र का प्रारंभ भगवान शिव के गुरु रूप की स्तुति से होता है। भगवान शिव को सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान माना जाता है। वे भक्तों को सही मार्ग पर चलने में मदद करते हैं, और वे उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं।

दूसरा श्लोक भगवान शिव द्वारा प्रदान किए जाने वाले ज्ञान और मार्गदर्शन का वर्णन करता है। भगवान शिव भक्तों को ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने में मदद करते हैं, और वे उन्हें जीवन के उद्देश्य को खोजने में मदद करते हैं।

अंतिम श्लोक भक्तों को भगवान शिव को अपना गुरु मानने के लिए प्रोत्साहित करता है। भगवान शिव के मार्गदर्शन में, भक्त अपने जीवन में सफलता


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