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- Create Date November 17, 2023
- Last Updated November 17, 2023
श्रीवरजनावेनीयोग्यौदंड्वाष्टक एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र भगवान शिव की आराधना और उनकी महिमा का वर्णन करता है। इस स्तोत्र में भगवान शिव को एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ देवता के रूप में वर्णित किया गया है।
श्रीवरजनावेनीयोग्यौदंड्वाष्टक के छंद निम्नलिखित हैं:
shreevrjanaveenyoovadvandvaashtakam
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वरजनावेनीयोग्यौदंडावधि त्रिपुरान्तक महादेव शम्भो भक्तजनप्रिय नमस्ते
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जटाजूटधारी त्रिनेत्रधारी शूलपाणि कपालधारी गणेश कार्तिकेय नमस्ते
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नंदीवरवाही चंद्रमौली भस्मांगधारी त्रिपुरारी महादेव नमस्ते शंकर
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भवानीपति प्रणवशब्दस्वरूप ज्ञानसागर त्रिपुरांतक नमस्ते
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त्रिलोकनाथ दयानिधि वेदपुरुष रुद्र भवानीपति नमस्ते शंकर
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भक्तजनपालक पापविनाशक कालभैरव नमस्ते शंकर
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त्रिपुरारी महादेव नीललोहित सदा शुभकारक नमस्ते शंकर
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सदा प्रसन्नचित्त वेदपुरुष त्रिपुरान्तक नमस्ते शंकर
श्रीवरजनावेनीयोग्यौदंड्वाष्टक का अर्थ निम्नलिखित है:
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हे त्रिपुरा का अंत करने वाले, हे महादेव, हे शम्भु, हे भक्तों के प्रिय, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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हे जटाजूटधारी, हे तीन आंखों वाले, हे शूलधारी, हे कपालधारी, हे गणेश और कार्तिकेय, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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हे नंदी पर सवार, हे चंद्रमा को मुकुट के रूप में धारण करने वाले, हे भस्म से लिप्त, हे त्रिपुरा के विजेता, हे महादेव, हे शंकर, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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हे भवानी के पति, हे प्रणव शब्द के स्वरूप, हे ज्ञान के सागर, हे त्रिपुरा के विजेता, हे शंकर, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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हे तीनों लोकों के स्वामी, हे दया के सागर, हे वेदपुरुष, हे रुद्र, हे भवानी के पति, हे शंकर, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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हे भक्तों के पालक, हे पापों का नाश करने वाले, हे कालभैरव, हे शंकर, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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हे त्रिपुरा के विजेता, हे नीले और लाल रंग वाले, हे सदा शुभ फल देने वाले, हे शंकर, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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हे सदा प्रसन्न रहने वाले, हे वेदपुरुष, हे त्रिपुरा के विजेता, हे शंकर, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
श्रीवरजनावेनीयोग्यौदंड्वाष्टक एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान शिव के भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
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