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  • Create Date October 4, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की रक्षा प्रदान करता है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों का वर्णन करता है जो साधक की रक्षा करते हैं।

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र में 40 श्लोक हैं। स्तोत्र की शुरुआत में, साधक भगवान विष्णु से उनकी रक्षा करने की प्रार्थना करता है। भगवान विष्णु उनकी प्रार्थना सुनते हैं और उन्हें अपनी रक्षा प्रदान करते हैं। स्तोत्र में, भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों का वर्णन है जो साधक की रक्षा करते हैं।

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र का पाठ करने से साधक को कई लाभ होते हैं। यह स्तोत्र साधक को सभी बुराईयों से बचाता है, उसे आध्यात्मिक सिद्धि प्रदान करता है, और उसे लंबी और सुखी जीवन देता है।

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

  1. सबसे पहले, एक साफ और पवित्र स्थान पर बैठें।
  2. फिर, एक दीपक जलाएं और भगवान विष्णु की पूजा करें।
  3. अब, श्रीविष्णुकवचस्तोत्र का पाठ करें।
  4. स्तोत्र का पाठ करते समय, भगवान विष्णु पर ध्यान केंद्रित करें।
  5. स्तोत्र का पाठ करने के बाद, भगवान विष्णु से आशीर्वाद मांगें।

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र का पाठ करने से पहले, किसी योग्य गुरु से निर्देश लेना उचित है।

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:

  • सभी बुराईयों से सुरक्षा
  • आध्यात्मिक सिद्धि
  • लंबी और सुखी जीवन
  • धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति
  • सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति
  • ऋणों से मुक्ति
  • भय से मुक्ति
  • मनोकामनाओं की पूर्ति

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र का पाठ करने से साधक को आध्यात्मिक उन्नति होती है और वह भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है।

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र के कुछ संस्कृत श्लोक निम्नलिखित हैं:

॥ श्रीविष्णुकवचस्तोत्रम् ॥

अथ श्रीविष्णुकवचस्तोत्रम्।

ॐ केशवाय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।

ॐ नारायणाय तर्जनीभ्यां नमः।

ॐ माधवाय मध्यमाभ्यां नमः।

ॐ गोविन्दाय अनामिकाभ्यां नमः।

ॐ विष्णवे कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

ॐ मधुसूदनाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

ॐ त्रिविक्रमाय हृदयाय नमः।

ॐ वामनाय शिरसे स्वाहा।

ॐ श्रीधराय शिखायै वषट्।

ॐ हृषीकेशाय कवचाय हुं।

ॐ पद्मनाभाय नेत्रत्रयाय वौषट्।

ॐ दामोदराय अस्त्राय फट्।

भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः।

इस स्तोत्र का अर्थ है:

"हे केशव, मैं आपको अपने अंगूठों से नमस्कार करता हूं। हे नारायण, मैं आपको अपने तर्जनीओं से नमस्कार करता हूं। हे माधव, मैं आपको अपने मध्यमाओं से नमस्कार करता हूं। हे गोविंद, मैं आपको अपने अनामिकाओं से नमस्कार करता हूं। हे विष्णु, मैं आपको अपने कनिष्ठिकाओं से नमस्कार करता हूं। हे मधुसूदन, मैं आपको अपने हथेलियों और हथेलियों के पीछे नमस्कार करता हूं। हे त्रिविक्रम, मैं आपको अपने हृदय को नमस्कार करता हूं। हे वामन, मैं आपको अपने सिर को नमस्कार करता हूं। हे श्रीधर, मैं आपको अपने शिखा को नमस्कार करता हूं। हे हृषीकेश, मैं आपको अपनी कवच को नमस्कार करता हूं। हे पद्मनाभ, मैं आपको अपनी तीन आंखों को नमस्कार करता हूं। हे दामोदर, मैं आपको अपने अस्त्र को नमस्कार करता हूं।"

श्रीविष्णुकवचस्तोत्र


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