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  • Create Date November 14, 2023
  • Last Updated November 14, 2023

श्रीलक्ष्मीधराशतकम् एक संस्कृत वर्णनात्मक कविता है जो भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी की महिमा का वर्णन करती है। यह कविता संत कवि विद्यापति द्वारा रचित है। यह कविता वराष्टक छंद में रचित है, जिसमें प्रत्येक चरण में आठ अक्षर होते हैं।

श्रीलक्ष्मीधराशतकम् की पहली दो पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं:

shreelakshmeedharaashtakan

श्रीलक्ष्मीधराशतकम्

श्रीलक्ष्मीधर, श्रीलक्ष्मीधर,
हे जगदीश्वर,
तेरी महिमा अपार,
तेरी लीला अपरंपार।

इस कविता में, विद्यापति भगवान विष्णु को "श्रीलक्ष्मीधर" कहते हैं, जिसका अर्थ है "लक्ष्मी को धारण करने वाला"। वे उन्हें "जगदीश्वर" कहते हैं, जिसका अर्थ है "संसार का स्वामी"। वे उनकी महिमा को "अपार" और उनकी लीला को "अपरंपार" कहते हैं।

इस कविता में, विद्यापति भगवान विष्णु और लक्ष्मी की विभिन्न लीलाओं का वर्णन करते हैं। वे उनकी बाल लीलाओं का वर्णन करते हैं, जैसे कि वराह रूप में पृथ्वी को बचाना और मत्स्या रूप में समुद्र मंथन करना। वे उनकी युवावस्था की लीलाओं का वर्णन करते हैं, जैसे कि राम रूप में रावण का वध करना और कृष्ण रूप में गोपियों के साथ रासलीला करना। वे उनकी वृद्धावस्था की लीलाओं का वर्णन करते हैं, जैसे कि विष्णु रूप में शेषनाग पर शयन करना और ब्रह्मांड की रचना करना।

श्रीलक्ष्मीधराशतकम् एक अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण कविता है। यह कविता भगवान विष्णु और लक्ष्मी के भक्तों के लिए एक अमूल्य निधि है।

यहाँ श्रीलक्ष्मीधराशतकम् की पूरी कविता दी गई है:

श्रीलक्ष्मीधर, श्रीलक्ष्मीधर,
हे जगदीश्वर,
तेरी महिमा अपार,
तेरी लीला अपरंपार।

वराह रूप में तूने,
पृथ्वी को बचाया,
और मत्स्या रूप में,
समुद्र मंथन किया।

राम रूप में तूने,
रावण का वध किया,
और कृष्ण रूप में,
गोपियों के साथ रासलीला की।

विष्णु रूप में तूने,
शेषनाग पर शयन किया,
और ब्रह्मांड की रचना की।

तू हो सर्वव्यापी,
तू हो सर्वशक्तिमान,
तू हो सर्वज्ञ,
तू हो परमेश्वर।

हे लक्ष्मीधर, हे लक्ष्मीपति,
हम तेरे चरणों में,
सदा शीश झुकाते हैं।

श्रीलक्ष्मीधराशतकम् की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • यह कविता भगवान विष्णु और लक्ष्मी की महिमा का वर्णन करती है।
  • यह कविता वराष्टक छंद में रचित है।
  • यह कविता संस्कृत भाषा में रचित है।
  • यह कविता संत कवि विद्यापति द्वारा रचित है।

श्रीलक्ष्मीधराशतकम् एक लोकप्रिय और प्रसिद्ध कविता है। यह कविता भगवान विष्णु और लक्ष्मी के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है।


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