- Version
- Download 93
- File Size 0.00 KB
- File Count 1
- Create Date October 24, 2023
- Last Updated July 29, 2024
श्रीरुद्रदशनामस्तोत्रम् एक स्तोत्र है जो भगवान शिव के दश नामों की स्तुति करता है। ये नाम हैं:
- रुद्र
- शम्भू
- शिव
- भव
- कपाली
- महाकाल
- महेश्वर
- त्रिलोचन
- नीलकंठ
- श्मशानवासी
स्तोत्र का प्रारंभ भगवान शिव के दश नामों की स्तुति से होता है। भक्त इन नामों का उच्चारण करते हैं और भगवान शिव से अपनी रक्षा और आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं।
स्तोत्र का पाठ इस प्रकार है:
श्रीरुद्रदशनामस्तोत्रम्
अथ श्रीरुद्रदशनामस्तोत्रम्
नमस्ते रुद्राय शम्भवे शिवाय भवाय। कपालि महाकालाय महेश्वराय त्रिलोचनाय। नीलकंठाय श्मशानवासाय तव दशनाम्नः। स्तोत्रं पठेन्नित्यं भक्त्या सर्वसिद्धिमवाप्नुयात्।
अर्थ:
हे रुद्र, हे शम्भू, हे शिव, हे भव, हे कपाली, हे महाकाल, हे महेश्वर, हे त्रिलोचन, हे नीलकंठ, हे श्मशानवासी!
मैं तुम्हारे इन दश नामों का स्तवन करता हूँ। जो कोई भी भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह सभी सिद्धियों को प्राप्त करता है।
श्रीरुद्रदशनामस्तोत्रम् की रचना किसने की है, यह ज्ञात नहीं है। यह स्तोत्र प्राचीन काल से ही प्रचलित है, और इसे कई संतों और आचार्यों ने प्रतिपादित किया है।
स्तोत्र का अर्थ:
पहला श्लोक:
नमस्ते रुद्राय शम्भवे शिवाय भवाय।
हे रुद्र, हे शम्भू, हे शिव, हे भव!
इन चार नामों में, रुद्र भगवान शिव के उग्र रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं, शम्भू उनके शांतिपूर्ण रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं, शिव उनके सर्वव्यापी रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं, और भव उनके सृष्टिकर्ता रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं।
दूसरा श्लोक:
कपालि महाकालाय महेश्वराय त्रिलोचनाय।
हे कपाली, हे महाकाल, हे महेश्वर, हे त्रिलोचन!
इन चार नामों में, कपाली भगवान शिव के एक रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं जो मृतकों के सिर काटते हैं, महाकाल भगवान शिव के एक रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं जो समय और मृत्यु के देवता हैं, महेश्वर भगवान शिव के सर्वोच्च रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं, और त्रिलोचन भगवान शिव के तीन नेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
तीसरा श्लोक:
नीलकंठाय श्मशानवासाय तव दशनाम्नः।
हे नीलकंठ, हे श्मशानवासी!
इन दो नामों में, नीलकंठ भगवान शिव के एक रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्होंने विष पीया था, और श्मशानवासी भगवान शिव के एक रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं जो श्मशान में निवास करते हैं।
चौथा श्लोक:
स्तोत्रं पठेन्नित्यं भक्त्या सर्वसिद्धिमवाप्नुयात्।
जो कोई भी भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह सभी सिद्धियों को प्राप्त करता है।
स्तोत्र का अर्थ यह है कि जो कोई भी भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं, जैसे कि ज्ञान, शक्ति, और मोक्ष।
Download